श्री सारथी उवाच ................. "गुरु मात्र वही नहीं जो ज्ञान और धैर्य और विनम्रता की प्रतिमूर्ति हो।
गुरु तो संकेत भी होता है। गुरु तो परिवर्तन भी होता है। गुरु तो संकेत और
परिवर्तन का कारण भी होता है। यदि तुम निष्ठा में हो और गुरु की अनुकम्पा
के प्रतीक्षक हो तो कहीं कोई मानव, जीव, पेड़, पौधा, जल, वायु, पृथ्वी,
अग्नि, आकाश, नारी, पिता, वैश्या कोई भी गुरु का स्थान प्राप्त कर सकता है।
विल्वमंगल और तुलसीदास के जीवन का आमूल परिवर्तन इस तथ्य का साक्षी है कि
गुरु कोई भी, कहीं भी और कैसे भी हो सकता है"
Joginder Singhमहर्षि
दत्तात्रेय जी के 24 गुरुओं की कथा याद दिलाने के लिए धन्यवाद
मित्र...बचपन में माँ के श्रीमुख से सुनी हुई कथाओं में समुद्र-मंथन और 24
गुरुओं की कथाएँ मुझे अतिप्रिय हैं...