सारथी कला निकेतन (सकलानि)

Tuesday, 10 December 2013

श्री सारथी उवाच ……………
"समाज अनुदान पर आधारित है । समाज को सदैव हर व्यक्ति से अनुदान चाहिए तभी इस का मूल ढांचा खड़ा रह सकता है । समाज से मांगों नहीं समाज को देते चले जाओ । एक आदमी साधक बन कर समाज को जो कुछ दे सकता है वह बहुत बड़ा वैज्ञानिक और कलाकार बन कर कभी नहीं दे सकता । हर व्यक्ति जो कि शांतिमय, सुखमय, पीड़ारहित, अभावरहित समाज में रहने का इच्छुक हो वह वैज्ञानिक बाद में बने, खगोलशास्त्री, भूगोल विशेषज्ञ बाद में बने पहले वह समर्पण के लिए साधना करे और यह जान जाए कि समर्पण का अर्थ जीवित ही जगत और जगत के कर्ता के लिए मर जाना है और स्वयं को मृत घोषित कर देना है । यह सम्भव कभी नहीं हो सकता कि आदमी स्वयं भी जीवित रहे और समाज के मूल्यों को भी जीवित रख सके "।
Like ·  ·  · Unfollow Post · October 29 at 5:08pm
  • Ashwani Kumar absolutely true
  • Shivdev Manhas विशेषज्ञ बाद में बने पहले वह समर्पण के लिए साधना करे और यह जान जाए कि समर्पण का अर्थ जीवित ही जगत और जगत के कर्ता के लिए मर जाना है और स्वयं को मृत घोषित कर देना है ।
  • Shivdev Manhas यह सम्भव नहीं कि आदमी स्वयं भी जीवित रहे और समाज के मूल्यों को भी जीवित रख सके ।
  • Kapil Anirudh मिटा दे अपनी हस्ती को गर कुछ मर्तबा चाहे
    कि दाना खाक में मिलकर, गुले-गुलजार होता है
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