सारथी कला निकेतन (सकलानि)
श्री सारथी उवाच ……………
"समाज अनुदान पर आधारित है । समाज को सदैव हर व्यक्ति से अनुदान चाहिए तभी इस का मूल ढांचा खड़ा रह सकता है । समाज से मांगों नहीं समाज को देते चले जाओ । एक आदमी साधक बन कर समाज को जो कुछ दे सकता है वह बहुत बड़ा वैज्ञानिक और कलाकार बन कर कभी नहीं दे सकता । हर व्यक्ति जो कि शांतिमय, सुखमय, पीड़ारहित, अभावरहित समाज में रहने का इच्छुक हो वह वैज्ञानिक बाद में बने, खगोलशास्त्री, भूगोल विशेषज्ञ बाद में बने पहले वह समर्पण के लिए साधना करे और यह जान जाए कि समर्पण का अर्थ जीवित ही जगत और जगत के कर्ता के लिए मर जाना है और स्वयं को मृत घोषित कर देना है । यह सम्भव कभी नहीं हो सकता कि आदमी स्वयं भी जीवित रहे और समाज के मूल्यों को भी जीवित रख सके "।