वह एक बिन्दु
जिस का आकर शून्य,
परन्तु सर्वस्व वही,
शरीर नहीं जिस का
शरीर सभी परन्तु उस के हैं,
आँख नहीं जिस की,
उसी में दृष्टि दृश्य द्रष्टा सभी,
श्रवण नहीं उस के हैं,
परन्तु 'तू' और 'मैं' के समस्त
स्वर नाद ताल लय संगति में,
लगे हुए हैं, लगे हुए हैं
जिब्हा नहीं है जिस की,
परन्तु
उदय अस्त हर क्षण,
बोल रहा है,
सुन रहा है,
सुना रहा है,
वह एक बिन्दु, वह एक धुर्रा
आगे बहुत सूर्य के ताप से,
किरणों से ऊंचा,
सूर्य जिस का अंश मात्र,
सूर्य की गरिमा का रक्षक,
सूर्य की गरिमा का चालक,
सूर्य के मंडल का स्वामी,
सूर्य की गरिमा का भीतर,
सूर्य की गरिमा का बाहर,
वह एक बिंदु ! ( गुरुदेव 'सारथी' जी के हिंदी काव्य 'तंतु' से उद्धृत)
जिस का आकर शून्य,
परन्तु सर्वस्व वही,
शरीर नहीं जिस का
शरीर सभी परन्तु उस के हैं,
आँख नहीं जिस की,
उसी में दृष्टि दृश्य द्रष्टा सभी,
श्रवण नहीं उस के हैं,
परन्तु 'तू' और 'मैं' के समस्त
स्वर नाद ताल लय संगति में,
लगे हुए हैं, लगे हुए हैं
जिब्हा नहीं है जिस की,
परन्तु
उदय अस्त हर क्षण,
बोल रहा है,
सुन रहा है,
सुना रहा है,
वह एक बिन्दु, वह एक धुर्रा
आगे बहुत सूर्य के ताप से,
किरणों से ऊंचा,
सूर्य जिस का अंश मात्र,
सूर्य की गरिमा का रक्षक,
सूर्य की गरिमा का चालक,
सूर्य के मंडल का स्वामी,
सूर्य की गरिमा का भीतर,
सूर्य की गरिमा का बाहर,
वह एक बिंदु ! ( गुरुदेव 'सारथी' जी के हिंदी काव्य 'तंतु' से उद्धृत)