सारथी कला निकेतन (सकलानि)

Friday, 19 December 2014

घड़ी साज ----सारथी
तुम में आदर मान की भावना बड़ी प्रबल है । आदर को स्थापित करने और मान प्राप्त करने के लिए तुम क्या नहीं करते। कई बार तुम कुर्बानी भी दे देते हो, धन की । धन छोड़ देते हो परन्तु सत्कार और सम्मान स्थापित कर लेते हो । कई बार तो तुम सादर भूखा रहना भी सहन और स्वीकार कर लेते हो ।
आदर शब्द बड़ा abstract शब्द है । मेरी समझ में कभी नहीं आया। यह क्या होता है ? क्यों होता है ? और कैसे होता है ? मनुष्य आदर प्राप्त कने के लिए क्या क्या पापड बेलता है ? और आदर सत्कार न मिले तो मानव कैसे शौक करता है, विलाप करता है ?आदर और निरादर को ले कर मानव ने कैसे भयंकर युद्ध किये हैं ? आदर को प्रिय जानते हुए जान तक की बाजी लगा दी । आदर से युक्त और सम्मानित आदमी समाज में श्रेष्ठ समझा जाता है । यह एक व्याकरण है theory है जो बहुत ही प्रचलित हो गयी है । पहले तो अच्छे और परस्वार्थ, परमार्थ और उपकार करने वाला व्यक्ति कर्म निष्ठ और ज्ञान विज्ञान केन्द्रित मनुष्य अपना आदर समाज में बना सकता था । यह परम्परा आज भी है । मानव के पतन का यह भी एक कारण है कि वह आदर ग्रहण करते हुए सच्चे और झूठे अर्थात किसी भी प्रकार के मार्ग को अपनाने में संकोच नहीं करता ।
आदर एक नशा है । बार बार आक्रमण करने वाला नशा । बार बार सुलाने और जगाने वाला नशा । बार बार मानव को सत्य से पलायन की ओर ले जाने वाला नशा । मानव को पागल बना देने वाला नशा । और यहाँ तक कि आदमी को किसी का वध करने को उत्तेजित करने वाला नशा ।
आदर का प्रारूप बनाने अथवा समझाने के लिए इसे दो पक्षों में देखना महत्वपूर्ण होगा और फिर बात आगे बढ़ेगी । आदर का एक चित्र यह संभव है कि आदर स्वयं ही में एक पूजा, एक अर्चना और वंदना में परिवर्तित हो जाए । यदि किसी महापुरुष ने परमार्थ के मार्ग पर चल कर जन- कल्याण, लोक -कल्याण अथवा विश्व- कल्याण हेतु वृहत विपुल कार्य किया है तो वह कार्य उसे योग्य एवं पूज्य एवं श्रद्धा का पात्र निर्मित करता है, स्थापित करता है । और हर वह व्यक्ति जो समाज, देश, राष्ट्र और विश्व के प्रति जागरूक है, ऐसे महापुरुष जो स्वयं को और विश्व को किसी बहुत बड़े सत्य से जोड़ना चाहते हैं उन में तपस्या तथा साधना का अंश अधिक होने के कारण या तो वे आदर से परे हो जाते हैं अथवा आदर मिलते हुए भी उसे ग्रहण करने और अपने अस्तित्व के ऊपर पहनने से संकोच करते हैं ।
दूसरा पक्ष आदर का बड़ा भयानक है । कोई व्यक्ति परोपकारी न हो, समाज सेवी न हो, संत महात्मा न हो । और आदर की कामना निरंतर उस के मन में बनी रहे । फिर वह उचित अनुचित ढंग से आदर बटोरने का और आदरणीय होने का प्रयत्न करे ।
आधुनिक युग में दो प्रकार के आदरणीय लोग दृष्टिगोचर होते हैं । प्रथम वे हैं जिन के साथ जनसंख्या और बहुमत है । उन का आचरण, नैतिकता और करतब चाहे कैसे हों, वे आदरणीय माने जा रहे हैं । दुसरे वे जिन के पास धन है । जो संसार की हर वस्तु धन के बल पर खरीदने की क्षमता रखतें हैं । वे खरीदते हुए सोफे, बीबी और हवेली की तरह आदर भी खरीद कर रख लेते हैं और समय समय पर उस का प्रयोग करते हैं ।
प्रिय पुत्र! यह त्रासदी है । समाज का दुखांत है कि ऐसे लोग भक्त भी हो जाते हैं । भगवान के प्यारे भी और संतों महात्माओं के लिए आदरणीय भी हो जाते हैं । आज के संसार कि सामूहिक धारणा यह है कि जिस व्यक्ति के पास धन है, संपत्ति है, बहुमत है, वही भक्त भी है । महात्मा भी और प्रभु भी ।
परन्तु प्रिय! इसी समाज में एक समुदाय ऐसा भी रहता है आया है, रह रहा है और रहता रहेगा जो सत्य जानता है व् जो आदर और अनादर दोनों का अर्थ जानता है । जो आदर बटोरता नहीं परन्तु आदरणीय है । और जिसे यह ज्ञान है कि आधुनिक युग में यदि मानव किसी भाव का शत्रु है , जिस का वध किसी भी कीमत पर कर डालना चाहता है और जिसे वह कदापि सहन नहीं कर सकता वह है निरादर का भाव ! अपमान !
प्रिय श्री! आज 'काम' का कारण निरादर है । क्रोध का कारण निरादर है । मोह, अहंकारदि और लोभ का कारण निरादर ही है का अपमान ही है ।
एक पहेली सुलझाना चाहता हूँ । तुम्हारे लिए एक मार्ग प्रशस्त करना चाहता हूँ । यदि निरादर का मूल 'काम' है तो चिकित्सा करो । यदि क्रोध, अहंकार और लोभ का मूल निरादर है तो चिकत्सा करो ।और चिकत्सा के तौर पर निरादर और अपमान का त्याग कर दो । इन भावों का, चुभन का, हीनता का और विकार का त्याग । बहुत आसान है कि यदि अपमान और निरादर को सहन कर लेने से यह पाँचों विकार, यह पाँचों शत्रु भागते हैं तो मंहगे नहीं हैं । यदि निरादर और अपमान को पी जाने से, सहन करने से, सामान्य भाव और साधारण घटना कि भांति लेने से यम और नियम दोनों को पहचानने में सहायता मिलती है तो यह एक साधना कि पहली सीढ़ी होगी, ऐसी सीढ़ी जो बहुत दृद है पक्की है ।
तुम आओ । और अभी से, इसी क्षण से अनादर, अपमान और झूठे मान को फाड़ फेंकना आरम्भ करो । आदर को भी स्थान न दो । और अपने भीतर आदर के प्रति जो मोह है, जो आकांक्षा है, यदि उसे भी अंतस से हटा दो तो तुम्हे परम पद कि प्राप्ति 'सहज' अवस्था की प्राप्ति शीघ्र हो सकती है ।
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  • Pyaasa Anjum कपिल जी आपने हम पर बहुत ही एहसान किया है जो गुरु जी द्वारा लिखा लेख घड़ीसाज पढ़ने को दे दिया जिसके लिए हम तो तरसते रहे हैं आपका बहुत बहुत शुक्रिया। बाकी किश्तें भी इसी तरह ही छाया करते रहिये ।।
    19 hrs · Unlike · 1
  • Kapil Anirudh धन्यबाद अंजुम साहिब, गुरुदेव के प्रति आप की श्रद्धा मुझे प्रेरणा एवं प्रोत्साहन देती है। …घडी साज़ के अन्य लेख भी अपलोड कर रहा हूँ।
    19 hrs · Like · 1
  • Pyaasa Anjum ठीक है भाई हमारे पर आपका यह एहसान हमेशा रहेगा ।
    19 hrs · Unlike · 1
  • Harpal Singh Suri Mere aaderney,pitaa samaan Sh.O.P.Sharma Sarthi Ji ka yeh lekh suchh muchh bahumulye aur ati prashansanye hai. Mujhe yaad hai,eak baar jub mere uncle ( Sh.O.P.Sharma Sarthi Ji ) hamare ghar aaye toh maine unsey puchha,Uncle mujhe batao yeh sheershak Gh...See More
    9 hrs · Edited · Unlike · 1
  • Harpal Singh Suri Yes, Sardar Nanak Singh Novelist was my grandfather.
    9 hrs · Unlike · 1
  • Kapil Anirudh बहुत अच्छा लगा । यह जान कर ख़ुशी और हैरानी का मिला जुला एहसास हुआ कि प्रख्यात साहित्यकार सरदार नानक सिंह जी आप के दादा श्री हैं। इस से भी अधिक आश्चर्य एवं प्रसन्नता इस बात से हुई की आप श्री करतार सिंह सूरी जी के सुपुत्र हैं। गुरुदेव के मन में श्र...See More
    21 mins · Like · 1
  • Pyaasa Anjum सूरी साहिब आप तो हमारे लिए पूजनीय हैं ।आपका अस्ल परचिय हमारे लिए और आदरनिय हो गया यह पढ़ा की आप महान साहित्यकार नानक सिंग जी के पूते अथवा करतार सिंग जी के बेटे हैं ।।आपके पापा जी अक्सर भेंट हो जाती थी जब वो जम्मू में थे और दो बार चंडी घड़ में भी मिला हूँ उनसे ।अब काफ़ी समय से कोई रावता नहीं रहा उनसे ।।