सारथी कला निकेतन (सकलानि)

Monday, 21 May 2018

सागर की कहानी (51)

सागर की कहानी (51)

वर्ष 1984 में ही सारथी जी का पंजाबी भाषा का एक और उपन्यास रणक्षेत्र प्रकाशित हुआ। सारथी जी के अनुसार- ‘जीवन एक रणक्षेत्र है। समर है, युद्ध है, द्वंद्व है, निरंतर जंग है । जीवन में स्थित सत्य एवं असत्य के मध्य, सूक्षम एवं स्थूल के मध्य, आकांक्षा एवं त्याग के मध्य, कामना तथा यथार्थ के मध्य, ज्ञान तथा अज्ञान के मध्य, रूप तथा अरूप के मध्य, दृश्य तथा अदृश्य के मध्य, प्रकाश तथा अंधकार के मध्य, कल्पना तथा तर्क के मध्य। यह युद्ध, यह रण जब तक जीवन की अवधी है हर पल हर क्षण छिड़ा रहता है।‘
जब तक एक व्यक्ति पदार्थों में सुख खोजता रहता है तब तक जीवन रूपी यह युद्ध सार्थक नहीं होता। परंतु जब वह भौतिकता के चरम को जान कर पदार्थों से निकल, सार्वभौमिक चेतना में प्रवेश करता है तभी इस युद्ध की सार्थकता सिद्ध होती है । यही इस उपन्यास का मूल भाव भी है। इसीलिए उपन्यास के अंत में रचनाकार कहता है – यह जीवन एक युद्ध है। युद्ध मान कर लड़ा जाये तो हार जीत का ड़र बना है । खेल समझ कर खेला जाये तो ही यह युद्ध पूरा हो सकता है। उपन्यास की भूमिका में सारथी जी लिखते हैं – ‘सत्य की तलाश के लिए असत्य का संपूर्ण रूप सामने चाहिए। ऊंचाई के अनुभव के लिए गहराई की पूर्ण तस्वीर मस्तिष्क में होनी चाहिए। रणक्षेत्र में भौतिकता के अनुभव की चरम सीमा और फिर प्रतिकार के सारे परिवेश हैं। एक भाव की चरमसीमा ही परिवर्तन का कारण तथा मूल बन सकती है और एक बड़ा परिवर्तन या स्थानांतरण संभव है।‘
इस उपन्यास को श्रेय प्राप्त है कि यह गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर, पंजाब में स्नातकोत्तर स्तर पर पढ़ाया जाता रहा है। वर्ष 2014 में इस उपन्यास का हिन्दी अनुवाद प्रकाश में आया। भूमिका में अनुवादक प्रवीण शर्मा लिखती है - मेरे लिए गुरुदेव का प्रत्येक शब्द, प्रत्येक वाक्य किसी मंत्र से कम नहीं। अन्य पाठकों की भांति उन की लेखनी मेरा भी उत्थान करती रही है ।.... उन के परलोक गमन के कुछ वर्षों के उपरांत जब उन का पंजाबी उपन्यास पढ़ने को मिला तो मुझे लगा गागर में सागर को समेटे यह उपन्यास उन के जीवन दर्शन की मुंह बोलती तस्वीर है......इस उपन्यास को पढ़ते ही यह विचार मेरे अंतस में कौंध गया कि हिन्दी पाठक वर्ग प्रतीकात्मक शैली में लिखे गए इस अनूठे आध्यात्मिक-दार्शनिक उपन्यास से वंचित क्यों रहे।....विचार तर्क कि मथनी में मथा गया और निर्णय स्वरूप अनुवाद कार्य आरंभ हो गया। ... वास्तव में आज हर व्यक्ति चिरकालिक सुख और शांति कि तलाश में है। स्वयं को सुखी बनाए रखने हेतु मनुष्य भोग विलास एवं ऐश्वर्य के साधन जुटाने हेतु अनथक परिश्रम करता आ रहा है। ऐश्वर्य एवं भोग विलास के यही साधन मनुष्य को क्षीण करते जा रहे हैं । मनुष्य सोचता है वह भोगों को भोग रहा है परंतु यह सारा उल्टा चक्र है । वास्तव में मनुष्य भोगों को नहीं भोगता। भोग ही उसे भोग कर जर जर अवस्था में पहुंचा, उस पर हँसते चले जाते हैं । इस गूढ़ पहेली को सुलझाता यह उपन्यास एक साधक के भीतरी द्वंद्व को ज़ुबान देने के साथ साथ उस द्वंद्व के समाधान ओर की भी संकेत करता है ।
उपन्यास की भूमिका में सारथी जी पंजाबी साहित्य के प्रकाश स्तम्भ डॉ करतार सिंह सूरी एवं प्रख्यात साहित्यकार प्रो सुरिन्दर सिंह सीरत को कुछ इस प्रकार स्मरण करते हैं – ‘प्रो सुरिन्दर सीरत जो मुझे भाइयों से भी अधिक प्रिय है, पंजाबी उपन्यासों की चिंता मुझे कम थी और सीरत को ज़्यादा। हर पन्ने और खंड का हिसाब सीरत को देना पड़ता था।
मेरे साथ विचारक और मनोवैज्ञानिक तौर से जुड़ जाने वाले सीरत ने उपन्यासों को शीघ्र छपे हुए देखने की उत्कंठा जो उस के मन में थी, मेरे अंतस में भी भरी और समय से पहले मुझे उपन्यास पूरे करने पड़े।
अग्नि का गुण धर्म शोध है। वस्तु, पदार्थ चाहे कितना मैला, विकृत, गंदा हो अग्नि के साथ जुड़ कर अग्नि रूप ही हो जाता है। प्रकाशमान हो जाता है। जम्मू कश्मीर क्षेत्र में डॉ करतार सिंह सूरी जी का होना, इस क्षेत्र के लिए प्रेरणा का तथा रोशनी का स्तम्भ सिद्ध हो रहा है।
.......क्रमशः ...........कपिल अनिरुद्ध