सारथी कला निकेतन (सकलानि)

Saturday, 29 July 2017

सागर की कहानी

मित्रों इन दिनों गुरुदेव सारथी जी की जीवनी 'सागर की कहानी' पर कार्य कर रहा हूं । उसी जीवनी के कुछ अंश प्रस्तुत कर रहा हूँ। ....................
..........अक्सर सागर के तट पर कलोल करती लहरों को, गतिमान जलयानो को, किनारों पर अठखेलियाँ करते बच्चों को तथा जलनिधि के बाहरी रुप आकार को ही सागर की संज्ञा दे दी जाती है। परन्तु वास्तबिक सागर दिखाई कहाँ देता है। अनछुए, अनजाने, एवं अनदेखे सागर को जानने हेतु इस में प्रवेश आवश्यक है। सागर का ज्ञान प्राणों की बाजी के बिना सम्भव नहीं। प्राणों की बाजी लगाने वाले गोताखोर जानते हैं सागर के भीतर एक भरा-पूरा संसार है। विभिन्न जड़ी-बूटियों, पेड़-पौधों, जीव-जन्तुओं, रत्नों एवं विभिन्न प्राणियों का एक विशाल संसार। यही नहीं संसार की कई सभ्यतायें सागर के गर्भ में उस अनुसंधानकर्ता की प्रतीक्षा में है जो उन्हें दुनिया के सामने ला सके। जलनिधि के भीतर का यह संसार बाहरी संसार से कहीं बड़ा, विशाल एवं अद्धभुत है। वैसे सागर का बाहरी रूप-आकार भी बच्चों, व्यस्कों एवं बूढ़ों सभी के लिए आकर्षण का केन्द्र तो रहा ही है। जल का अपार भण्डार, हिलोरे खाती लहरें, किनारों पर बिछी रेत पर माथा घिसती लहरें तथा तटों पर अठखेलियाँ करते बच्चें किसी का भी ध्यान अपनी ओर खींचने में सक्षम हैं। दूर से देखने पर भी, विषेशतः पहली बार देखने वाले को सागर अद्धभुत रस से भर ही देता है।
मुझे भी सौभाग्य प्राप्त हुआ है श्री सारथी जी रुपी सागर की अनन्तता, विराटता एवं विशालता के दर्शन करने का। पहली बार उन्हें देख कर कोई भी शान्त रस के साथ-साथ जिस रस से सराबोर हो जाता उसे अदभुत रस की संज्ञा दी जा सकती है। हैरानगी और आनन्द का मिला जुला प्रभाव ही पहली बार उन्हें मिलने पर अन्तस पर पड़ता। पतला लम्बा शरीर, पैंट के साथ लम्बा कुर्ता देखने को नहीं मिलता पर वे पहने हुए होते। घुंघराले बाल, लम्बा चेहरा, अदृष्य का निहारती आँखें और मस्ती के आलम में बिखरी हुई बिरली सी दाढ़ी। यह रूप आकृति शान्त भी करती और विस्मय भी जगाती। उन्हें देखते ही ओर जानने की इच्छा साथ ही पैदा हो जाती।…….क्रमशः

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