Friday, 12 April 2013
Monday, 1 April 2013
बड़ी माँ
माँ लिख रहा हूँ तो आँखों से आंसू
छलक आये हैं - इसलिए नहीं की तेरी बहुत याद आई - तेरे लाड प्यार याद आये ।
यह आँख भर आई यह सोच कर कि मेरे, बगैर कहे घर छोड़ने पर सब से ज्यादा दुःख
तुझे ही हुआ होगा । कुछ दिनों तक मेरी खबर न मिलने पर तेरा ही कलेजा मुह को
आता रहा होगा । जाने कितने दिनों तक तूने खाना न खाया होगा । कितनी रातें
तूने बड़ी ड्योडी की आहट पर जाग-जाग कर काट दी होंगी । जाने कितनी
प्रार्थनाएँ की होंगी मेरे घर लौट आने की लिए भगवान से, मेरे सही सलामत
होने की । और घड़ी घड़ी तू सोचती होगी -"जाने कहाँ होगा, क्या खाया होगा राजू
ने - कहाँ कैसे सोया होगा"और फिर एक दम तू अपनी भीगी आँखों को धोती के
पल्लू में छिपा लेते होगी ताकि भैय्या देख न लें तुझे रोते। जाने किस किस
के आगे गिडगिडाई होगी तू - मेरा पता लगाने के लिए- और भैय्या के वह जवाब
तूने कैसे जिगरे से सह लिए होंगे - "चलो दो दिन के लिया दफा हुआ है
निकम्मा - घर में शांति रहेगी" । और माँ तूने दिल ही दिल में कह दिया होगा
- "मेरे लिए सब बराबर हैं, अभी उम्र ही क्या है राजू की, होश संभल ले, कुछ
न कुछ करने लगेगा "।
अब राम भैय्या की कोई भी चीज़ गम न होती
होगी, न रुमाल, न छ: आने के पैसे । उन की कमीज़ और पैंटें अब कोई न हिलाता
होगा हैंगर से, न कोई चप्पल खराब करता होगा । शंकर भैय्या ने तुम से ज़रूर
कहा होगा - "न पढ़ा, न वर्कशॉप में टिका, माँ तू चिंता न कर, आजकल कोई किसी
बेकार को एक वक़्त का खाना नहीं पूछता, भूखा मरता बापिस आएगा" ।
रमा अब भी तुझे रात को रामायण का अध्याय सुनाती होगी । तू सुन चुकने के
बाद रामायण माँ से अवश्य कहती होगी - हे रामायण माँ - तू कलयुग में
कल्पवृक्ष की छाया है - मेरे राजू को छत्र देना, मेरे राजू की रक्षा करना
और झट से रमा रामायण के पहले पन्ने पर बनी प्रश्नावली पर तेरे दायें हाथ
की ऊँगली रखा कर कहती होगी - माँ कोई प्रश्न धार मन में, और तू झट से धार
लेती होगी - "राजू कब घर लौटेगा" और रमा शब्द झोड़ झोड़ कर कह देती होगी -
"होई सोई जो राम रची राखा, माँ यह बनता है" । एक बार फिर से रख ऊँगली
प्रश्नावली पर और न जाने कितने बार यही जतन होता होगा कि कोई ऐसी चौपाई
बने जिस से राजू का घर लौटना या उस की कुशल स्पष्ट हो ।
सामने
मकान वाली भाभी मेरे लिए ज़रूर पूछती होगी । जानती है माँ क्यों ? क्योंकि
वह घर वालों से चोरी छिपे मुझ से कचालू, दुबारे, गोल गप्पे और चाट मंगा कर
खाया करते है बाज़ार से ।
माँ - आज मैं जाना हूँ तूने मेरे लिए
बहुत दुःख झेलें है जिन का प्रायश्चित सात जन्मों में भी नहीं हो सकता ।
तू तो मेरी माँ है ही, लेकिन एक माँ तुझ से बड़ी है, सब माताओं से बड़ी - यह
चलते फिरते सभी शरीर उस की देन हैं - उस ने बहुत संकट झेलें हैं हम सब के
लिए । आज उस पर फिर से संकट है । आज वह भी अपना क़र्ज़ मुझ से मांग रही है ।
मैंने सोच लिया है कि तेरा और उस माँ दोनों का क़र्ज़ एक ही
रास्ता अपना कर चुकाऊ ।
माँ - मैं न तो तेरे बराबर चांदी तोल कर
दान करवा सकता हूँ, न ही तुझे सोने के दांत लगवा सकता हूँ, जैसे कि शंकर
भैय्या पढने के समय कहा करते थे । लेकिन हाँ अगर मुझे बड़ी माँ पर निछावर
होने का सौभाग्य प्राप्त हो जाए तो मैंने अपने पैंशन तेरे नाम लिखवा दी है ।
तेरे निकम्मे, आवारा, निखट्टू खोटे पैसे ने यह राह अपने है तुझे और रमा को
जिंदा रखने की । .... तेरा राजू
(गुरुदेव सारथी जी की यह कहानी
उन के प्रथम कहानी संग्रह " उमरें" में प्रकशित हुई है । 1965 में प्रकशित
उन के इस कहानी संग्रह में उन के सेना के कार्यकाल से सम्बंधित कुछ
कहनियाँ शामिल हैं, " बड़ी माँ " भी ऐसी ही एक कहानी है)
माँ लिख रहा हूँ तो आँखों से आंसू छलक आये हैं - इसलिए नहीं की तेरी बहुत याद आई - तेरे लाड प्यार याद आये । यह आँख भर आई यह सोच कर कि मेरे, बगैर कहे घर छोड़ने पर सब से ज्यादा दुःख तुझे ही हुआ होगा । कुछ दिनों तक मेरी खबर न मिलने पर तेरा ही कलेजा मुह को आता रहा होगा । जाने कितने दिनों तक तूने खाना न खाया होगा । कितनी रातें तूने बड़ी ड्योडी की आहट पर जाग-जाग कर काट दी होंगी । जाने कितनी प्रार्थनाएँ की होंगी मेरे घर लौट आने की लिए भगवान से, मेरे सही सलामत होने की । और घड़ी घड़ी तू सोचती होगी -"जाने कहाँ होगा, क्या खाया होगा राजू ने - कहाँ कैसे सोया होगा"और फिर एक दम तू अपनी भीगी आँखों को धोती के पल्लू में छिपा लेते होगी ताकि भैय्या देख न लें तुझे रोते। जाने किस किस के आगे गिडगिडाई होगी तू - मेरा पता लगाने के लिए- और भैय्या के वह जवाब तूने कैसे जिगरे से सह लिए होंगे - "चलो दो दिन के लिया दफा हुआ है निकम्मा - घर में शांति रहेगी" । और माँ तूने दिल ही दिल में कह दिया होगा - "मेरे लिए सब बराबर हैं, अभी उम्र ही क्या है राजू की, होश संभल ले, कुछ न कुछ करने लगेगा "।
अब राम भैय्या की कोई भी चीज़ गम न होती होगी, न रुमाल, न छ: आने के पैसे । उन की कमीज़ और पैंटें अब कोई न हिलाता होगा हैंगर से, न कोई चप्पल खराब करता होगा । शंकर भैय्या ने तुम से ज़रूर कहा होगा - "न पढ़ा, न वर्कशॉप में टिका, माँ तू चिंता न कर, आजकल कोई किसी बेकार को एक वक़्त का खाना नहीं पूछता, भूखा मरता बापिस आएगा" ।
रमा अब भी तुझे रात को रामायण का अध्याय सुनाती होगी । तू सुन चुकने के बाद रामायण माँ से अवश्य कहती होगी - हे रामायण माँ - तू कलयुग में कल्पवृक्ष की छाया है - मेरे राजू को छत्र देना, मेरे राजू की रक्षा करना और झट से रमा रामायण के पहले पन्ने पर बनी प्रश्नावली पर तेरे दायें हाथ की ऊँगली रखा कर कहती होगी - माँ कोई प्रश्न धार मन में, और तू झट से धार लेती होगी - "राजू कब घर लौटेगा" और रमा शब्द झोड़ झोड़ कर कह देती होगी - "होई सोई जो राम रची राखा, माँ यह बनता है" । एक बार फिर से रख ऊँगली प्रश्नावली पर और न जाने कितने बार यही जतन होता होगा कि कोई ऐसी चौपाई बने जिस से राजू का घर लौटना या उस की कुशल स्पष्ट हो ।
सामने मकान वाली भाभी मेरे लिए ज़रूर पूछती होगी । जानती है माँ क्यों ? क्योंकि वह घर वालों से चोरी छिपे मुझ से कचालू, दुबारे, गोल गप्पे और चाट मंगा कर खाया करते है बाज़ार से ।
माँ - आज मैं जाना हूँ तूने मेरे लिए बहुत दुःख झेलें है जिन का प्रायश्चित सात जन्मों में भी नहीं हो सकता । तू तो मेरी माँ है ही, लेकिन एक माँ तुझ से बड़ी है, सब माताओं से बड़ी - यह चलते फिरते सभी शरीर उस की देन हैं - उस ने बहुत संकट झेलें हैं हम सब के लिए । आज उस पर फिर से संकट है । आज वह भी अपना क़र्ज़ मुझ से मांग रही है ।
मैंने सोच लिया है कि तेरा और उस माँ दोनों का क़र्ज़ एक ही रास्ता अपना कर चुकाऊ ।
माँ - मैं न तो तेरे बराबर चांदी तोल कर दान करवा सकता हूँ, न ही तुझे सोने के दांत लगवा सकता हूँ, जैसे कि शंकर भैय्या पढने के समय कहा करते थे । लेकिन हाँ अगर मुझे बड़ी माँ पर निछावर होने का सौभाग्य प्राप्त हो जाए तो मैंने अपने पैंशन तेरे नाम लिखवा दी है । तेरे निकम्मे, आवारा, निखट्टू खोटे पैसे ने यह राह अपने है तुझे और रमा को जिंदा रखने की । .... तेरा राजू
(गुरुदेव सारथी जी की यह कहानी उन के प्रथम कहानी संग्रह " उमरें" में प्रकशित हुई है । 1965 में प्रकशित उन के इस कहानी संग्रह में उन के सेना के कार्यकाल से सम्बंधित कुछ कहनियाँ शामिल हैं, " बड़ी माँ " भी ऐसी ही एक कहानी है)
- Nidhi Mehta Vaid, Sarvesh Chaturvedi and Atul Sharma like this.
- Dhyanesh DK ab mene paani bhi pina shuru kar diya hai .. aur khaana bhi khata hu, aap ... sab jaante hai
- Dhyanesh DK शंकर भैय्या ने तुम से ज़रूर कहा होगा - "न पढ़ा, न वर्कशॉप में टिका, माँ तू चिंता न कर, आजकल कोई किसी बेकार को एक वक़्त का खाना नहीं पूछता, भूखा मरता बापिस आएगा"
- Dhyanesh DK सामने मकान वाली भाभी मेरे लिए ज़रूर पूछती होगी । जानती है माँ क्यों ? क्योंकि वह घर वालों से चोरी छिपे मुझ से कचालू, दुबारे, गोल गप्पे और चाट मंगा कर खाया करते है बाज़ार से ।
- Aman Bharti Sharma nice touching piece
- Nidhi Mehta Vaid Kathni sey karni achi bada bhai maa ka soney kaa dant lagwa kar du ga kehta tha aur jisey nikamma kehtey they usney maa aur behan key jeevan yaapan ka sadhan juta diya bina jataye bina dikhawa kiye.
Maa aur behan key liye athah prem key sath sath dharti mata sey prem ki anuthi rachna hai yeh.March 28 at 12:07pm via mobile · Unlike · 2 - Dhyanesh DK is se mujhe prerana mili hai ...bhaiya ka bohot bohot Dhanyavaad....
- Sarvesh Chaturvedi Dil ko choo lene wali kahani...March 28 at 1:08pm via mobile · Unlike · 2
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