सारथी कला निकेतन (सकलानि)

Friday, 12 April 2013




  • ग़ज़ल (गुरुदेव 'सारथी' जी )
    लम्हों के ज़ख्म सोयेंगे अगर तुम सुला सको
    जाओ पकड़ के सुबह को लाओ जो ला सको

    वो मैं ही था जो भूल गया ज़ख्म रात के
    वो तुम नहीं कि शब के मुकाबिल भी आ सको

    शीशे की आँख काम न देगी उतार दो
    नीय्यत की आँख चाहिए गर तुम लगा सको

    मैंने तो रेत छान कर अपने जलाए हाथ
    मुमकिन नहीं कि तुम कोई जादू जगा सको

    चिल्ला रहे हो जान, अदा, जिस्म लब, बिसाल
    आवाज़ दो लहू को अगर तुम बुला सको

    तुम 'सारथी' के दोस्त हुए हो बजा मगर
    वो तुम नहीं कि आशियाँ उस का जला सको
    Unlike ·  ·  · April 6 at 11:46am near Jammu

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