सारथी कला निकेतन (सकलानि)

Saturday, 1 February 2014

सूर्य होता है आँखों और गगन दोनों में
सूर्य स्थान्तरण नहीं करता
यह तुम्हारा मिथ्या भाव है
सूर्य अटल स्वयं और सम्भाले है धरती को
बांध रखा है सूर्य ने धरा को 
क्या ऐसा नहीं कि अपने अस्तित्व के लोभ में
धरती से चिपका हुआ है
यह कि धरती ही ने डांट रखा है
वहीं रहो जहाँ थे और जहाँ हो
यह सूर्य स्वयं में एक नहीं है
हैं अनेक परन्तु नज़र आता है एक
यहीं से पलट कर देखो
कितने ही सूर्य नज़र आयेंगे तुम्हे
इसी सड़क पर नंगे पाँव भागते
.................. श्री सारथी जी के काव्य 'मरुस्थल' से उद्धृत
Like ·  ·  · January 25 at 11:44pm near Jammu