Wednesday, 26 February 2014
Tuesday, 11 February 2014
Saturday, 1 February 2014
सूर्य होता है आँखों और गगन दोनों में
सूर्य स्थान्तरण नहीं करता
यह तुम्हारा मिथ्या भाव है
सूर्य अटल स्वयं और सम्भाले है धरती को
बांध रखा है सूर्य ने धरा को
क्या ऐसा नहीं कि अपने अस्तित्व के लोभ में
धरती से चिपका हुआ है
यह कि धरती ही ने डांट रखा है
वहीं रहो जहाँ थे और जहाँ हो
यह सूर्य स्वयं में एक नहीं है
हैं अनेक परन्तु नज़र आता है एक
यहीं से पलट कर देखो
कितने ही सूर्य नज़र आयेंगे तुम्हे
इसी सड़क पर नंगे पाँव भागते
.................. श्री सारथी जी के काव्य 'मरुस्थल' से उद्धृत
सूर्य स्थान्तरण नहीं करता
यह तुम्हारा मिथ्या भाव है
सूर्य अटल स्वयं और सम्भाले है धरती को
बांध रखा है सूर्य ने धरा को
क्या ऐसा नहीं कि अपने अस्तित्व के लोभ में
धरती से चिपका हुआ है
यह कि धरती ही ने डांट रखा है
वहीं रहो जहाँ थे और जहाँ हो
यह सूर्य स्वयं में एक नहीं है
हैं अनेक परन्तु नज़र आता है एक
यहीं से पलट कर देखो
कितने ही सूर्य नज़र आयेंगे तुम्हे
इसी सड़क पर नंगे पाँव भागते
.................. श्री सारथी जी के काव्य 'मरुस्थल' से उद्धृत
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