सूर्य होता है आँखों और गगन दोनों में
सूर्य स्थान्तरण नहीं करता
यह तुम्हारा मिथ्या भाव है
सूर्य अटल स्वयं और सम्भाले है धरती को
बांध रखा है सूर्य ने धरा को
क्या ऐसा नहीं कि अपने अस्तित्व के लोभ में
धरती से चिपका हुआ है
यह कि धरती ही ने डांट रखा है
वहीं रहो जहाँ थे और जहाँ हो
यह सूर्य स्वयं में एक नहीं है
हैं अनेक परन्तु नज़र आता है एक
यहीं से पलट कर देखो
कितने ही सूर्य नज़र आयेंगे तुम्हे
इसी सड़क पर नंगे पाँव भागते
.................. श्री सारथी जी के काव्य 'मरुस्थल' से उद्धृत
सूर्य स्थान्तरण नहीं करता
यह तुम्हारा मिथ्या भाव है
सूर्य अटल स्वयं और सम्भाले है धरती को
बांध रखा है सूर्य ने धरा को
क्या ऐसा नहीं कि अपने अस्तित्व के लोभ में
धरती से चिपका हुआ है
यह कि धरती ही ने डांट रखा है
वहीं रहो जहाँ थे और जहाँ हो
यह सूर्य स्वयं में एक नहीं है
हैं अनेक परन्तु नज़र आता है एक
यहीं से पलट कर देखो
कितने ही सूर्य नज़र आयेंगे तुम्हे
इसी सड़क पर नंगे पाँव भागते
.................. श्री सारथी जी के काव्य 'मरुस्थल' से उद्धृत
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