सारथी कला निकेतन (सकलानि)

Saturday, 19 April 2014

गुरुदेव सारथी जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करती एक ग़ज़ल

गुरुदेव सारथी जी के देहावसान पर मित्र बोरडे गंजू 'रमण' द्वारा लिखे गई एक ग़ज़ल
पाओगे पार कैसे जो दुष्कर है सारथी
डूबोगे दर्द में तो सुधाकर है सारथी
साहस का मन्त्र फूँक के अर्जुन बना दिया
अंतस में वह तो कृष्ण है बाहर है सारथी
चेहरा है यूं तो धूल से पूरा सना हुआ
चलता ललाट पर लिए शशिकर है सारथी
अस्तित्व के रहस्य खुलेंगे सहज सभी
हम को कुछ ऐसा दे गया अक्षर है सारथी
कहता यह कौन अब मेरा रहबर नहीं रहा
धरती सजीव रथ मेरा रहबर है सारथी
…बोरडे गंजू 'रमण'

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