सारथी कला निकेतन (सकलानि)

Friday, 22 December 2017

सागर की कहानी (41)

सागर की कहानी - श्री सारथी जी की जीवनी को धारावाहिक रूप में प्रस्तुत करने का एक प्रयास। आप के सुझाबों का इंतज़ार रहेगा।
सागर की कहानी (41)
....वैसे सारथी जी की करूणा के घेरे में मूक प्राणियों के साथ साथ निर्जीव बस्तुओं को भी स्थान प्राप्त होता । इस के प्रमाण उनके साहित्य में विपुल मात्रा में मिलते हैं। जादुई यर्थाथवाद (magical realism) की छाप सारथी जी के लगभग सभी उपन्यासों में मिलती है। जादुई यर्थाथवाद सौन्दर्य या साहित्य की ऐसी शैली है जिस में यथार्थ को अधिक रोचक तथा पाठक में अधिक संवेदना जगाने हेतु असली दुनिया के साथ साथ जादुई तत्वों जैसे चमत्कारिकता, कौतुहल, तथा आलोकिकता का मिश्रण रहता है। इसी शिल्प के अर्न्तगत कहीं सारथी जी अपने उपन्यासों में खण्डरों के साथ बातें करते तों कहीं सड़क सा गलि का दर्द उन्हें आहत करता। नंगा रूक्ख, डोगरी उपन्यास में सड़क के दर्द को अभिव्यक्त करते हुए वे लिखते हैं- ‘नगर के बाहर एक बड़ी सड़क थी जो चुप सी लेटी हुई उसांसे भर रही थी। कभी- कभार गूँजती हुई कोई गाड़ी उस की छाती पर से गुजर जाती तो वह फुँकार कर करवट बदल लेती थी। बिन पैरां दे धरती नामक पंजाबी उपन्यास में भी सड़क की व्यथा को अभिव्यक्ति मिली है – ‘सड़क की हंसी में व्यंग्य का मिश्रण था। तुम भी उन में से हो जिन के पास मेरी दास्तान सुनने का समय नहीं। पर यह मैं ही हूँ जो सदियों से तुम्हें अपनी छाती पर ढो रही हूँ। तुम्हें कमरे से बस्ती में और बसती से फिर कमरे में पहुँचाती आ रही हूँ................ अब आदमी ने मेरे दो टुकड़े कर दिये हैं। पुरानी सड़क और नयी सड़क। मेरे एक हिस्से को मनुष्य पुराना कहता है और एक हिस्से को नया। मैं चिल्ला चिल्ला कर हार गई हूँ कि लोगो पुराने के गर्भ में से नये का जन्म होता है।‘
इस शैली के प्रयोग में सारथी जी का ध्येय एक ही रहता कि पाठक अपने प्रति, नगर, राष्ट्र एवं धरा के प्रति जाग जाये। वह अपने निर्माण में, समाज के योगदान को समझे तथा अपने सामाजिक सरोकारों के प्रति सजग रहे।
सर्व के प्रति सारथी जी के प्रेम एवं करूणा का परिचय उनके द्वारा बनाये रेखाचित्रों में भी मिलता है। उनके द्वारा बनाये रेखाचित्रों में गोबर लीपती महिलाओं, धान काटते किसानों, जूते गाँठते मोची, बाल काटते हजाम, वर्तन बनाते कलाकारों, किसी गुब्बारे वाले, गारड़ी, सिपाही, चौकीदार इत्यादि को भी स्थान मिलता। उनके द्वारा खींचे छाया चित्रों में जहां समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों का शुमार है वहीं, नदियों, पक्षियों, पशुओं, औषधीय पौधों तथा पत्थरों की भी उपस्थिति दर्ज है। किसी पोखर, कब्रिस्तान इत्यादि को चित्रित करते हुए भी वे उस में अजीब सा सौन्दर्य भर देते।
हर क्षण को एक पर्व एवं उत्सव की भान्ति मनाने वाले सारथी जी के लिए म्हत्वहीन, निर्रथक, अपूर्ण कुछ भी नहीं था। एक बार उनके घर के सामने कोई भगवान शिव की टूटी हुई मूर्ति छोड़ गया, जिस की सूचना उन्हे अपने एक शिष्य के द्वारा मिली .... गुरुजी बाहर कोई भगवान शिव की अखंडित मूर्ति छोड़ गया है । जो अकाल है, अखंड है वह खंडित कैसे हो गया। हमें पूर्ण करने वाला, स्वयं खंडित, सारथी जी धीमे स्वर में बोले और मूर्ति को भीतर ले आए । फिर क्या था, रचनाकार रचना प्रक्रिया में, शिल्प संरचना में व्यस्त हो गया और शिष्यगण उस रचनात्मकता का आनंद लेने लगे । प्लास्टर आफ पेरिस का पेस्ट बना कर मूर्ति पर लगा दिया गया और उन की तूलिका रंग भरने में तल्लीन हो गई। कुछ ही मिन्टों में एक अदभुत कलाकृति सब के सामने थी और फिर वह मूर्ति, वह अकाल, अखंड उन की किताबों के मध्य सुशोभित हो अपने भाग्य पर इतराने लगा।
......क्रमशः .................कपिल अनिरुद्ध

No comments:

Post a Comment