सागर की कहानी - श्री सारथी जी की जीवनी को धारावाहिक रूप में प्रस्तुत करने का एक प्रयास।
सागर की कहानी( 42)
श्री सारथी जी ललित कलायों को ईश्वर प्राप्ति का ही साधन मानते परन्तु संगीत के लिए उन के मन में विशेष प्रेम था। ललित कलाओं में वे संगीत को सर्वोच्च स्थान देते और कहा करते-‘बहुत कम लोगों को ज्ञात है कि यदि वे श्री कृष्ण को रिझा लेंगे तो फलस्वरूप क्या होगा? भगवान शंकर को रिझा लेंगे, भगवान विष्णु की उन पर अनुकम्पा होगी तो उपलब्धि और प्राप्ति क्या होगी? हर देवता के साथ संगीत का एक चिन्ह है जो आप की साधना के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। भगवान श्री कृष्ण जो परब्रहम हैं, कर्णधार हैं, विश्व के, ब्रहाण्ड़ के, जब उन की कृपा होती है तो साधक धीरे धीरे बाँसुरी का स्वर सुनने लगता है। वे कहते महारानी मीरा को सब से पहले जब उपलब्धि होती है तो वह कहती है- सुनी री मैंने हरि आवन की आवाज़। उन्हें बाँसुरी की धुन सुनाई देती है। भगवान शिव के भक्तों को डमरू तथा भगवान विष्णु के भक्तों को शंखनाद सुनाई देता है ’।
श्री सारथी जी ललित कलायों को ईश्वर प्राप्ति का ही साधन मानते परन्तु संगीत के लिए उन के मन में विशेष प्रेम था। ललित कलाओं में वे संगीत को सर्वोच्च स्थान देते और कहा करते-‘बहुत कम लोगों को ज्ञात है कि यदि वे श्री कृष्ण को रिझा लेंगे तो फलस्वरूप क्या होगा? भगवान शंकर को रिझा लेंगे, भगवान विष्णु की उन पर अनुकम्पा होगी तो उपलब्धि और प्राप्ति क्या होगी? हर देवता के साथ संगीत का एक चिन्ह है जो आप की साधना के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। भगवान श्री कृष्ण जो परब्रहम हैं, कर्णधार हैं, विश्व के, ब्रहाण्ड़ के, जब उन की कृपा होती है तो साधक धीरे धीरे बाँसुरी का स्वर सुनने लगता है। वे कहते महारानी मीरा को सब से पहले जब उपलब्धि होती है तो वह कहती है- सुनी री मैंने हरि आवन की आवाज़। उन्हें बाँसुरी की धुन सुनाई देती है। भगवान शिव के भक्तों को डमरू तथा भगवान विष्णु के भक्तों को शंखनाद सुनाई देता है ’।
सागर की लहरें संगीत की स्वरलहरियों को साथ ले सागर के वक्ष पर ही नृत्य किया करती हैं। जल तरंगों की मधुर ध्वनियां तो सागर की स्तुति हेतु ही बजा करती है। बड़े भाग्यशाली हैं वे लोग जिन्होंने सागर के इस संगीत को सुना है। जिन लोगों को श्री सारथी जी द्वारा गाये गये भजनों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है वे जानते हैं सारथी जी जिस धुन में भजन गाते वह धुन भजन के शब्दों तथा उन शब्दों के सभी अथों को साथ ले कर सुनने वाले के अन्तस में प्रवेश कर जाती और कुछ ही क्षणों में सुनने वाले की मनोदशा एवं मनोदिशा बदल जाती।
सर्दियों के दिन थे। श्री सारथी जी भूरे रंग का शाल ओढ़ कर बैठे थे। गोगी-बिल्ली का छोटा बच्चा उन की गोद में बैठा उन के प्रेममय स्पर्श का आनन्द उठा रहा था। कमरें में सूरज जी, केवल जी तथा ओम प्रकाश भूरिया जी भी उपस्थित थे। केवल जी अपनी नज़रे तबले पर गढ़ाये बैठे थे और सारथी जी के गायन के साथ तबला बजाने की अपनी आतुरता को छुपा नहीं पा रहे थे। केवल जी कहने लगे-गुरुदेव कुछ सुनाईये परंतु गुरुदेव विनोद भाव से सूरज जी को भजन सुनाने को कह रहे थे। उसी समय मैंने कमरे में प्रवेश किया तो गुरुदेव कहने लगे- लो सूरज जी, गुरु जी भी आ गए, अब तो कुछ सुना ही दीजिये। सब जानते थे गुरुदेव का यह सम्बोधन सब में सहज उल्लास एवं प्रेम भरने के लिए है। संकोच का आवरण उतारते हुए सूरज जी भी उन से कुछ सुनाने का आग्रह करने लगे और केवल जी भी सूरज जी के आग्रह में अपनी प्रार्थना का स्वर मिलाने लगे। मेरा सारा शरीर तप रहा था। गला खराब होने की बजह से बुखार ने आ घेरा था परंतु उस दिव्य आभामण्डल के आलोक में आते ही सब भूल गया।
गुरुदेव ने हारमोनियम पकड़ा, नन्हा बिल्ली का बच्चा समझ गया अब उसे कुछ देर के लिए उन की गोद से विलग होना पड़ेगा। वह उठ कर दूसरे कमरे में चला गया। श्री सारथी जी ने महारानी मीरा का भजन गाना आरम्भ किया।
- मोरे नैना बाण पड़ी------- भूरिया जी कैंसियां बजाने लगे और केवल जी ने तबला सम्भाल लिया। पूरा वातावरण संगीत और भक्ति की स्वरलहरियों से गूँज उठा। भजन समाप्त होते ही उन्होंने संत कबीर जी के भजन को संगीत की स्वरलहरियों से मिश्रित कर अपने मधुर कण्ठ से गायन आरम्भ किया
-चुनरिया झीनी रे झीनी। राम नाम रस भीनी।
फिर जब गोस्वामी तुलसीदास जी का भजन- तू दयालु दीन हों तू दानी हों भिखारी आरम्भ हुआ तो सब की आँखों से प्रेमाश्रुयों की धारायें वह निकली। मुझे महसूस हो रहा था मेरे शरीर के सारे संक्रामक किटाणु, सारी व्याकुलता, सारा ताप अश्रुयों में बहता चला जा रहा है। मेरा तन और मन निखरता चला जा रहा था।
फिर भक्त श्रिरोमणि सूरदास जी का वात्सल्य रस बिखेरता यह भजन सब पर भक्ति रस बरसाने लगा- मैय्या मोरी मैं नहीं माखुन खायो। अन्ततः अश्रुधारा आनन्दधारा में परिवर्तित हो चुकी थी। मानो सारा वातावरण ही आनन्दमय हो नृत्य कर रहा हो। मेरे शरीर का सारा ताप दूर हो चुका था। ऐसे चमत्कार अनेक लोगों ने अनेक बार उन के सानिध्य में, उन के वचनों में अनुभव किये हैं
......क्रमशः ..........कपिल अनिरुद्ध
सर्दियों के दिन थे। श्री सारथी जी भूरे रंग का शाल ओढ़ कर बैठे थे। गोगी-बिल्ली का छोटा बच्चा उन की गोद में बैठा उन के प्रेममय स्पर्श का आनन्द उठा रहा था। कमरें में सूरज जी, केवल जी तथा ओम प्रकाश भूरिया जी भी उपस्थित थे। केवल जी अपनी नज़रे तबले पर गढ़ाये बैठे थे और सारथी जी के गायन के साथ तबला बजाने की अपनी आतुरता को छुपा नहीं पा रहे थे। केवल जी कहने लगे-गुरुदेव कुछ सुनाईये परंतु गुरुदेव विनोद भाव से सूरज जी को भजन सुनाने को कह रहे थे। उसी समय मैंने कमरे में प्रवेश किया तो गुरुदेव कहने लगे- लो सूरज जी, गुरु जी भी आ गए, अब तो कुछ सुना ही दीजिये। सब जानते थे गुरुदेव का यह सम्बोधन सब में सहज उल्लास एवं प्रेम भरने के लिए है। संकोच का आवरण उतारते हुए सूरज जी भी उन से कुछ सुनाने का आग्रह करने लगे और केवल जी भी सूरज जी के आग्रह में अपनी प्रार्थना का स्वर मिलाने लगे। मेरा सारा शरीर तप रहा था। गला खराब होने की बजह से बुखार ने आ घेरा था परंतु उस दिव्य आभामण्डल के आलोक में आते ही सब भूल गया।
गुरुदेव ने हारमोनियम पकड़ा, नन्हा बिल्ली का बच्चा समझ गया अब उसे कुछ देर के लिए उन की गोद से विलग होना पड़ेगा। वह उठ कर दूसरे कमरे में चला गया। श्री सारथी जी ने महारानी मीरा का भजन गाना आरम्भ किया।
- मोरे नैना बाण पड़ी------- भूरिया जी कैंसियां बजाने लगे और केवल जी ने तबला सम्भाल लिया। पूरा वातावरण संगीत और भक्ति की स्वरलहरियों से गूँज उठा। भजन समाप्त होते ही उन्होंने संत कबीर जी के भजन को संगीत की स्वरलहरियों से मिश्रित कर अपने मधुर कण्ठ से गायन आरम्भ किया
-चुनरिया झीनी रे झीनी। राम नाम रस भीनी।
फिर जब गोस्वामी तुलसीदास जी का भजन- तू दयालु दीन हों तू दानी हों भिखारी आरम्भ हुआ तो सब की आँखों से प्रेमाश्रुयों की धारायें वह निकली। मुझे महसूस हो रहा था मेरे शरीर के सारे संक्रामक किटाणु, सारी व्याकुलता, सारा ताप अश्रुयों में बहता चला जा रहा है। मेरा तन और मन निखरता चला जा रहा था।
फिर भक्त श्रिरोमणि सूरदास जी का वात्सल्य रस बिखेरता यह भजन सब पर भक्ति रस बरसाने लगा- मैय्या मोरी मैं नहीं माखुन खायो। अन्ततः अश्रुधारा आनन्दधारा में परिवर्तित हो चुकी थी। मानो सारा वातावरण ही आनन्दमय हो नृत्य कर रहा हो। मेरे शरीर का सारा ताप दूर हो चुका था। ऐसे चमत्कार अनेक लोगों ने अनेक बार उन के सानिध्य में, उन के वचनों में अनुभव किये हैं
......क्रमशः ..........कपिल अनिरुद्ध
Shabdon ke dwara Kalao ke dwara Hamari supet Chetna ko jagane wale Gurudev Sarthi ko sat sat Pranam
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