सागर कि कहानी (48)
गद्य के क्षेत्र में उन्होंने धीरे-धीरे कहानी के लघु प्रारूप से उपन्यास के बड़े प्रारूप में प्रवेश किया। इस दिशा में उनका पहला उपन्यास डोगरी भाषा में ‘त्रेह समुंदरे दी’ शीर्षक से छपा। यह उपन्यास शिक्षा क्षेत्र के अवमूल्यन को रेखांकित करता है। इसकी प्रस्तावना में सारथी जी लिखते हैं - कहानी की लंबी यात्रा के उपरांत यह उपन्यास मैं आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूं। डोगरी भाषा के आंदोलन तथा प्रोफेसर शास्त्री के स्नेहिल संपर्क में आने के उपरांत मैंने लेखन यात्रा आरंभ की थी और यहां पहुंचा हूं। मैंने यह उपन्यास डोगरी भाषा के आधार कर्मियों को समर्पित किया है। आपके कर कमलों में इस आशा के साथ सौंप रहा हूं कि भाषा के विकास में पाठक का अधिक योगदान होता है। आज जितना दायित्व भाषा का लेखक पर है उतना पाठक पर भी है। वर्ष 2003 में इस उपन्यास को सूरज रत्न ने हिन्दी भाषा में अनूदित किया तथा इसी वर्ष सारथी कला निकेतन ट्रस्ट द्वारा इस का प्रकटन हुआ इसकी भूमिका में सूरज रत्न अपने उद्गार कुछ इस प्रकार प्रकट करता है - गुरुदेव डॉ ओo पीo शर्मा ‘सारथी’ जी द्वारा लिखित डोगरी उपन्यास ‘त्रेह समुंदरे दी’ पढ़ने के उपरांत मन में यह विचार उठा कि यह उपन्यास अपने भीतर अनेक बहुमूल्य सुझाव लिए हुए है। शिक्षा प्रणाली में सुधार हेतु सुझाव, विद्यार्थियों में अनुशासन तथा उत्तम संस्कार हेतु सुझाव, शिक्षक समुदाय में शिष्यों के प्रति स्नेह एवं स्वयं में कर्मठता उत्पन्न करने हेतु सुझाव तथा मानव समाज में गिरते हुए मूल्यों के उत्थान हेतु सुझाव। साथ ही मन में यह विचार आया की उपन्यास मूलतः डोगरी भाषा में होने के कारण अधिकतर पाठकों तक नहीं पहुंच पाएगा तथा अधिकतर पाठक इस प्रेरणादायक कृति से वंचित रह जाएंगे। सो एक दिन गुरुदेव के समक्ष अपने मन की बात कह डाली है तथा इस उपन्यास का अनुवाद करने की आज्ञा भी ले ली।
उपन्यास के कथ्य, भाषा एवं दर्शनिकता की कुछ झलक नीचे दिये गए कुछ उद्धरनों से मिलती है।
*मनुष्य को चाहे सारी उम्र किसी चश्मे का ही पानी पीने को मिले परंतु उसे प्यास समुद्र की होनी चाहिए।
*कमरा मनुष्य की शोभा व क्षृंगार नहीं होता। कमरे का क्षृंगार वह मनुष्य होता है जो उस में निवास करता है।
*चुपचाप यदि किसी को कार्य करते देखना हो तो समय को देखो। कोई श्वास की आवाज़ नहीं। हाथों की हिलझुल नहीं। किसी चरखे, यंत्र, हथकरघे की कोई आवाज़ नहीं। और सब कुछ होता जा रहा है।
* विश्राम मस्तिष्क की शांति व मस्तिष्क के मौन का दूसरा नाम है। मस्तिष्क विश्राम करे तो मनुष्य भी विश्राम करता है।
*संसार का यह नियम है कि उसी बाज़ार में सुगंधित फूलों का मोल पड़ता है जहां पर कागज के फूल अधिक हों।
* जिन मनुष्यों के कारण तुम दुविधा में हो उन्हें अपनाए बिना तुम अपनी मंज़िल प्राप्त नहीं कर सकते। तुम्हारा लक्ष्य पूर्ण नहीं हो सकता। तुम कहीं पहुँच नहीं सकते। वह लोग जो तुम्हारा विरोध करते हैं, वास्तव में वही तुम्हें मार्ग दिखाते हैं ।
1979 में ही सारथी जी का दूसरा डोगरी उपन्यास ‘नंगा रुख’ प्रकाशित हुआ और इसी वर्ष इस उपन्यास को अपने विलक्षण कथ्य एवं अनूठे शिल्प के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से अलंकृत किया गया। अगले ही वर्ष उनका एक और डोगरी उपन्यास ‘मकान’ प्रकाश में आया। इस उपन्यास में भारतीय दर्शन के विस्तार को ही सार रूप प्रदान किया गया है। भारतीय दर्शन के अनुसार जीव पर माया का पर्दा है। यही पर्दा जीव का ब्रह्म से साक्षात्कार नहीं होने देता और यह पर्दा बिना ईश्वर कृपा के, विना गुरू ज्ञान के दूर नहीं हाता। सन्त कबीर कहते है - घूँघट के पट खोल रे तोहे पिया मिलेंगे। यह घूंघट के पट भ्रम /माया की ओर संकेत करते हैं। जीव को माया कैसे भ्रमित करती है और किस प्रकार जीव गुरू का मार्गदर्शन प्राप्त कर, भ्रम के पर्दे को हटा कर, ब्रह्म का साक्षात्कार करता है इस का बेहद सूक्ष्म विवेचन उपन्यास मकान में पढ़ने को मिलता है।
क्रमशः कपिल अनिरुद्ध