सागर की कहानी( 49) ......कृपया अपने सुझावों से अवगत अवश्य करवाएँ ।
चेतन, माया, जगत और मकान मालिक के नाम से संबोधित उपन्यास के यह चार पात्र क्रमशः एक साधक, भ्रम, संसार और गुरू का प्रतीक बन कर उभरते हैं। उपन्यास का शीर्षक ‘मकान’ भी एक ही समें मे कई तथ्यों की ओर संकेत करता है हमारा मन शरीर रूपी मकान में टिका हुआ है। मन रूपी मकान में चेतना बास करती है और चेतना रूपी मकान में ही परमचेतना का बसेरा है। दूसरी तरफ इस शरीर को भी रहने हेतु स्थूल मकान की आवश्यकता है। यह स्थूल मकान ब्रह्मण्ड़ रूपी मकान का ही छोटा सा हिस्सा है। यह उपन्यास के शिल्प का ही कमाल है कि वह एक ही समें में इन सभी संदर्भों और अर्थों को स्पष्ट करता जाता है। इस के लिए अपनी विशिष्ट प्रतीकात्मक शैली और भाषा का चुनाव भी उपन्यास स्वयं ही करता है।
सारथी जी के उपन्यासों की सब से बड़ी विशेषता उन के सार्वभौमिक कथ्य की है और यह बात उनके दूसरे उपन्यासों के साथ साथ ‘मकान’ नामक उपन्यास पर भी खरी उतरती है। इस उपन्यास में एक साधक के भीतरी द्वन्द्वों, त्रुट्टियों और उपलब्ध्यिों का चित्रण तो है ही परन्तु साधना पद्धति किसी विषेश पंथ या सम्प्रदाय के साथ जुड़ी हुई नहीं है। मकान मालिक के कमरे में लगे हुए चित्र किसी विशेष पंथ या सम्प्रदाय का पता नहीं देते बल्कि यह उपन्यास मानव जाति की अनबूझ पहेलियों को ही सुलझाता नज़र आता है। मकान मालिक के कमरे के रचनात्मक और कलात्मक वातावरण को चित्रित करती यह पंक्तियां देखिये-‘अनेक ग्रंथ, कितनी ही पोथिया और फिरी लौ की तस्बीरें, सूरज के चित्र। दिन के चित्र और चारो तरफ व्याप्त इक खुशबू यह सब कुछ एक कमरे में था जिस के मध्य बैठा मकान मालिक किसी ग्रंथ को खोल कर देख रहा था।‘
उपन्यासकार ने इस उपन्यास में एक बहुत महत्व वाले तथ्य की ओर संकेत किया है। एक व्यक्ति काम बासना के कारण दुविधाग्रस्त नहीं है बलिक कामनाओं के और भोगों के सूक्ष्म विचार, भाव और कल्पनायें ही उसे भ्रमित करते हैं। यह भाव, विचार और कल्पनायें ही उसे वर्तमान के धरातल पर नहीं रहने देते । भोगों को भोग कर, उन की क्षणभुंगरता का चिन्तन कर यदि एक साधक उनके विचारों से छूट जाता है तो यह एक उपलब्धि होगी। परन्तु जो भोगता है उस के भीतर और भोगने की इच्छा पैदा होती है और जो भोगों की क्षणभुंगरता का चिन्तन करते हुए बिना भोगे उन से बचना चाहता है वह भी मानसिक तौर पर भोगों से, उनके विचारों, भावों एवं कलपनाओं से छूटता नहीं।
उपन्यास के अन्त में मुख्य पात्र चेतन, मकान मालिक अर्थात गुरु के मार्गदर्शन में माया के पर्दे को हटा कर जगत के रहस्य को समझ कर जिस्म के टूटने फूटने वाले मकान को छोड़ कर हमेशा बने रहने वाले मकान में प्रवेश कर अमरता प्राप्त कर लेता है। बह एक बूँद की तरह समुद्र में समा कर समुद्र ही हो जाता है। बकौल मिर्ज़ा ग़ालिब- इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फना हो जाना अर्थात एक बूँद की सब से बड़ी मौज, सब से बड़ा आनन्द समुद्र में समा कर समुद्र ही हो जाना है। चेतन भी परम चेतना के सागर में समा कर सागर ही हो जाता है।
मकान उपन्यास अस्थिरता अशान्ति भ्रम और संशय रूपी मानसिक मकान से स्थिरता शान्ति और आनन्द रूपी मकान तक की यात्रा है। यदि यह कहा जाये कि सारथी जी ने अपने आध्यात्मिक ज्ञान और अनुभूतियों को 97 पन्नों के इस उपन्यास में समेटा हुआ है तो अतिशयोक्ति न होगी।
क्रमशः कपिल अनिरुद्ध
सारथी जी के उपन्यासों की सब से बड़ी विशेषता उन के सार्वभौमिक कथ्य की है और यह बात उनके दूसरे उपन्यासों के साथ साथ ‘मकान’ नामक उपन्यास पर भी खरी उतरती है। इस उपन्यास में एक साधक के भीतरी द्वन्द्वों, त्रुट्टियों और उपलब्ध्यिों का चित्रण तो है ही परन्तु साधना पद्धति किसी विषेश पंथ या सम्प्रदाय के साथ जुड़ी हुई नहीं है। मकान मालिक के कमरे में लगे हुए चित्र किसी विशेष पंथ या सम्प्रदाय का पता नहीं देते बल्कि यह उपन्यास मानव जाति की अनबूझ पहेलियों को ही सुलझाता नज़र आता है। मकान मालिक के कमरे के रचनात्मक और कलात्मक वातावरण को चित्रित करती यह पंक्तियां देखिये-‘अनेक ग्रंथ, कितनी ही पोथिया और फिरी लौ की तस्बीरें, सूरज के चित्र। दिन के चित्र और चारो तरफ व्याप्त इक खुशबू यह सब कुछ एक कमरे में था जिस के मध्य बैठा मकान मालिक किसी ग्रंथ को खोल कर देख रहा था।‘
उपन्यासकार ने इस उपन्यास में एक बहुत महत्व वाले तथ्य की ओर संकेत किया है। एक व्यक्ति काम बासना के कारण दुविधाग्रस्त नहीं है बलिक कामनाओं के और भोगों के सूक्ष्म विचार, भाव और कल्पनायें ही उसे भ्रमित करते हैं। यह भाव, विचार और कल्पनायें ही उसे वर्तमान के धरातल पर नहीं रहने देते । भोगों को भोग कर, उन की क्षणभुंगरता का चिन्तन कर यदि एक साधक उनके विचारों से छूट जाता है तो यह एक उपलब्धि होगी। परन्तु जो भोगता है उस के भीतर और भोगने की इच्छा पैदा होती है और जो भोगों की क्षणभुंगरता का चिन्तन करते हुए बिना भोगे उन से बचना चाहता है वह भी मानसिक तौर पर भोगों से, उनके विचारों, भावों एवं कलपनाओं से छूटता नहीं।
उपन्यास के अन्त में मुख्य पात्र चेतन, मकान मालिक अर्थात गुरु के मार्गदर्शन में माया के पर्दे को हटा कर जगत के रहस्य को समझ कर जिस्म के टूटने फूटने वाले मकान को छोड़ कर हमेशा बने रहने वाले मकान में प्रवेश कर अमरता प्राप्त कर लेता है। बह एक बूँद की तरह समुद्र में समा कर समुद्र ही हो जाता है। बकौल मिर्ज़ा ग़ालिब- इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फना हो जाना अर्थात एक बूँद की सब से बड़ी मौज, सब से बड़ा आनन्द समुद्र में समा कर समुद्र ही हो जाना है। चेतन भी परम चेतना के सागर में समा कर सागर ही हो जाता है।
मकान उपन्यास अस्थिरता अशान्ति भ्रम और संशय रूपी मानसिक मकान से स्थिरता शान्ति और आनन्द रूपी मकान तक की यात्रा है। यदि यह कहा जाये कि सारथी जी ने अपने आध्यात्मिक ज्ञान और अनुभूतियों को 97 पन्नों के इस उपन्यास में समेटा हुआ है तो अतिशयोक्ति न होगी।
क्रमशः कपिल अनिरुद्ध
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