सारथी कला निकेतन (सकलानि)

Tuesday, 19 June 2018

सागर की कहानी (54)

सागर की कहानी (54)
इसी बात को अपने ढंग से अभिव्यक्त करते हुए हिन्दी साहित्य मंडल द्वारा आयोजित उपरोक्त विमोचन के अवसर पर अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रोo सुभाष भारद्वाज कहते हैं – ‘सारथी के इस उपन्यास में सर्वोत्कृष्ट व्यंजना शैली का प्रयोग किया गया है। अभिनवगुप्त के अभिव्यंजनावाद में व्यंजना अथवा व्यंग्य को ही सर्वोत्कृष्ट माना गया है। प्रतीकों के सटीक इस्तेमाल एवं व्यंग्यात्मक शैली के कारण ही इस उपन्यास को डोगरी में ही नहीं अखिल भारतीय स्तर पर भी सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में रखा जा सकता है।‘
डा प्रीतम चन्द षास्त्री के अनुसार- ‘उपन्यास के उपक्रम में ही सारथी जी शिव शब्द द्वारा उपन्यास का मंगलाचरण करते हैं। शिव मंगल का वाचक है और शिव ही सत्य का दूसरा नाम भी है। कुछ आगे चल कर लेखक समुद्र मंथन की बात करता है। सत्य के अन्वेषण का प्रयास मात्र था समुद्र मंथन। उपन्यास में चर्चित नगर मंथन भी सत्य के अन्वेषण के प्रयास का दूसरा रूप है। समुद्र मंथन की भान्ति ही मति मंथन में भी कुछ विचार कौस्तुक हाथ लगते हैं। किन्तु कुछ आधुनिक मूल्यांकन की अपेक्षा है। देखना है कि वे इन कौस्तुकों को कण्ठहार बनाने में कितने लालायित हैं।‘
प्रख्यात समीक्षक राम प्रकाश राही ‘नंगा रुक्ख’ की समीक्षा करते हुए लिखते हैं- ‘साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत डोगरी उपन्यास का यह अनुवाद अपनी मूल कृति के इतना निकट है कि हिन्दी जगत के लिए भी यह प्रतीकात्मक शैली का अनूठा उपहार बन गया है जो हर दृष्टिकोण से यथार्थ के सभी संदर्भों का जीवन्त चित्रण करता है। इस अनुवाद से हिन्दी में जहां हर प्रकार की कृतियों अभाव पूरा होता दिखाई देता है वहां डोगरी भाषा के सर्वोच्च साहित्य की जानकारी भी प्राप्त होती है।‘
कर्नल शिवनाथ उपन्यास के अंग्रज़ी अनुवाद द चरनिंग ऑफ द सिटि (The churning of the city) की भूमिका में लिखते हैं - इस रचना में मानवीय स्थितियों के संबंध में कुछ मूलभूत प्रश्न उठाए गए हैं। इस की शैली भी आकर्षक एवं दिलचस्प है। द्रुत गति वाले छोटे छोटे वाक्य। अन्तः स्थापित संवाद, व्यंग्यात्मक भाषा एवं कथा शैली, सरल टिप्पणियों एवं असुविधाजनक प्रश्नों की कारीगरी द्वारा नगर के बदलवते स्वरूप एवं मूल्यों का गहरा और सशक्त प्रस्तुतीकरण। (this compostion raises certain fundamental questions about the human situation. The style is also interesting and engaging. Short clipped sentences, interspersed dialogues, brisk movement of line, a tongue in cheque stance and telling, effective strokes in the shape of naive comments and uncomfortable questions which strenthen and deepen the awareness of chanign face and values of the city.
एक साक्षात्कार की भूमिका में आशा अरोड़ा लिखती हैं- नंगा रूक्ख के हिन्दी अनुवाद की भूमिका पढ़ते हुए एक शब्द सारथी जी के लिए बड़ा सटीक लगा था-तीन आंखों वाला आदमी-जो चित्रकार है, संगीतज्ञ है और साहित्यकार है। इसमें कौन सा पक्ष ज़्यादा उभरा है यह तो आलोचक जानें पर डोगरी साहित्यकार के रूप में उन की प्रतिष्ठा बनी है और वे इस में जाने जाते हैं। बीसियों पुस्तकों के रचयिता सारथी अनुभवों के विशाल सागर के प्रतीक हैं। प्रख्यात साहित्यकार एवं समीक्षक भोलानाथ भ्रमर लिखते हैं - सारथी जी न केवल स्वयं प्रयोगधर्मीं हैं अपितु प्रयोग को आन्दोलन के रूप में प्रस्तुत करना भी अपना धर्म समझते हैं। वे एक सफल चित्रकार हैं, कवि हैं, कहानीकार हैं और उपन्यासकार हैं इसलिए उन की कला में काव्यात्मक्ता, कहानी कहने की कला और चित्र आकलन की विशेषताओं का समन्वित रूप मिलता है।
इतने सारे समीक्षकों एवं साहित्यकारों को यहां उद्धृत करने का एक ही लक्ष्य है कि चिन्तनशील पाठक तथाकथित पूर्वाग्रही आलोचकों की मौलिक टिप्पणी पर ही ‘नंगा रुक्ख’ जैसे उत्कृष्ट उपन्यास से वंचित न रह जाये।
...............क्रमशः ..................कपिल अनिरुद्ध

Thursday, 14 June 2018

सागर की कहानी (53)

सागर की कहानी (53)
सागर के आगोश में कितनी ही आस्थायें, परम्परायें, धारणायें एवं विश्वास पैदा होते हैं, पलते हैं, युवावस्था को प्राप्त होते हैं और फिर ढ़लती उम्र की तरह परिपक्व हो उसी में विलीन भी हो जाते हैं। सागर के बारे में अनेक भ्रान्तियां भी पैदा हो कर मिटती रही हैं। भ्रान्तियां सदैव अज्ञात के सम्बन्ध में ही पैदा होती हैं। और यह भ्रान्तियां ही कहीं भय का कारण भी बनती हैं। अज्ञात का भय। यही भय सागर को भेद भरा, रहस्मय आश्चर्य बना देता हैं। श्री सारथी जी से दूरी बनाये रखने वाले लोगों के लिए वे एक रहस्यमय व्यक्ति बने ही रहे। बहुत से तथाकथित आलोचकों ने श्री सारथी जी को रहस्यवादी की संज्ञा भी दे डाली। वास्तव में जब हम अपना आलोचना धर्म निभाने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं तभी हम रचनाकार या साहित्यकार को विभिन्न गुटों एवं वर्गों में बाँट कर अपनी विद्वता का परिचय देना चाहते हैं। ऐसे ही आलोचकों ने कभी सूर्यकान्त त्रिपाटी निराला तथा महादेवी वर्मा को रहस्यवादी एवं छायावादी संज्ञाओं से नबाज़ा तो कभी प्रगतिवाद का चश्मा पहन कर सब रचनाकारों को देखने का प्रयत्न किया। परन्तु किसी रचनाकार की समीक्षा वाद-प्रतिवाद विशेष का चश्मा पहन कर नहीं हो सकती। इसी संदर्भ में डा राजकुमार जम्मू कश्मीर के स्वातन्त्रयोत्तर हिन्दी कवियों की यर्थाथवाद को देन नामक पुस्तक में अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखते हैं-‘श्री ओ पी शर्मा सारथी के बारे में यही कहा जा सकता है कि वह आदर्शौंमुखी यर्थाथवादी है, रहस्यवादी भी, प्रगतिवादी भी चूँकि समिष्ट में व्यष्टि जो देख पाते हैं। सब में आत्मरूप ही देखने वाला ऊँच नीच के भेद भाव को सहन करने में असमर्थ होता है। श्री सारथी जी काव्य के क्षेत्र में विचार व भाव की दृष्टि से एक अविसमरणीय देन हैं।‘
वादों प्रतिवादों का चश्मा पहने हुए लोगों ने कभी उन्हे जानने की चेष्टा नहीं की। ऐसे ही कुछ पूर्वाग्रही लोगों ने श्री सारथी जी के बारे में बिना उन के साहित्य का अघ्ययन किये यह कहना आरम्भ कर दिया कि उन की लेखनी समझ में नहीं आती। यह बात उन के साहित्य अकादमी से पुरस्कृत उपन्यास ‘नंगा रुक्ख’ के बारे में अधिक कही गई, शायद चर्चित उपन्यास के बारे में टिप्पणी कर यह लोग चर्चा में आने के लोभ का त्याग न कर सकें।
शायद नंगा रुक्ख के तथाकथित आलोचक नहीं जानते कि इस उपन्यास को सर्वाधिक अनुदित डोगरी उपन्यास का दर्जा प्राप्त है। राष्ट्रीय स्तर के सभी अनुवादकों, आलोचकों एवं समीक्षकों ने इस उपन्यास के सार्वभौमिक कथ्य एवं नवीन शिल्प को न केवल सराहा बल्कि इसे डोगरी के साथ-साथ भारतीय साहित्य की अनुपम कृति भी बताया।
नंगा रुक्ख का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत करने वाले साहित्यकार अशोक जेरथ उपन्यास की भूमिका में लिखते हैं-
-ओ पी शर्मा सारथी का उपन्यास नंगा रूक्ख जिसे पिछले वर्ष का अकादमी पुरस्कार मिला है, डोगरी साहित्य में तो एक उपलब्ध कृति है ही, मैं समझता हूं कि हिन्दी पाठक वर्ग के लिए भी यह कृति नवीनता के सौपानों को उजागर करेगी। वैसे तो डोगरी भाषा में अनेक छुटपुट प्रयोग हो रहे हैं किन्तु किसी प्रयोग को आन्दोलन के रूप में प्रस्तुत करने कर श्रेय सारथी को जाता है। प्रतीकात्मक शैली के कनवास पर यथार्थ के चौखटे खड़े कर अपने सटीक विचारों के रंग भरना उन के पांचों उपन्यासों में मुखरित हुआ। ‘नंगा रुक्ख’ इस आन्दोलन का आरम्भ था तो मकान, रेशम दे कीडे, पत्थर ते रंग और अपना अपना सूरज इस आन्दोलन की आधारशिला।
‘नंगा रूक्ख’ के हिन्दी संस्करण के विमोचन के अवसर पर इस उपन्यास पर अपने विचार व्यक्त करते हुए वे कहते हैं - नंगा रूक्ख में जिस यर्थाथ रूप को रचनाकार ने हमारे समक्ष रखा है वह शायद ही किसी दूसरे डोगरी उपन्यास में आया हो। मैं तो समझता हूँ कुल भारत के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में ‘नंगा रूक्ख’ को रखा जा सकता है।
........क्रमशः .......... कपिल अनिरुद्ध

Monday, 4 June 2018

सागर की कहानी (52)

सागर की कहानी (52) 
6 वर्ष के उपरांत 1990 में सारथी जी हिंदी की दो कृतियां साहित्य जगत के नाम करते हैं पहली हिंदी उपन्यास ‘बिन पानी के दरिया’ और दूसरी हिंदी काव्य ‘मरुस्थल’ के रूप में। इसके उपरांत 9 वर्ष के अंतराल के बाद वे डोगरी कहानी संग्रह ‘यात्रा’ का उपहार पाठकों को भेंट करते हैं। इन डोगरी कहानियों का उर्दू अनुवाद कुछ सभाओं में अनुवादक राज कुमार खजूरिया जी से सुनने को मिला तो लगा कि अपने विशिष्ट कथ्य एवं शिल्प के कारण यह कहानियाँ प्रतिनिधि भारतीय कहानियों में अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं। खजूरिया जी द्वारा उर्दू में अनूदित कहानियों को सारथी काला निकेतन ट्रस्ट द्वारा साहित्य अकादमी को उर्दू में प्रकाशनार्थ भेजा दिया गया परंतु साहित्य अकादमी अभी तक इस संबंध में मौन धारे हुए है । बीस कहानियों के संग्रह ‘यात्रा’ की प्रस्तावना में सारथी जी लिखते हैं –‘मैं अपने पर उस परम ब्रम्ह की बड़ी कृपा समझता हूं और यह भी मानता हूं कि मेरे जन्म जन्मांतर के संस्कार इतने ऊंचे हैं कि मैं साहित्य और कला से कभी भी थका नहीं। निरंतर भगवत प्रेरणा से लिख रहा हूं। राम कृपा से गा रहा हूं। कहानी ग़ज़ल निबंध उपन्यास निरंतर लिखने की शक्ति मुझे मिल रही है। मिलती आई है। .....मैं कहानी उसी भाव और प्रेम से लिखता हूं जिस प्रेम से मैं शास्त्रोक्त भजन गाता हूं।.... इस संग्रह की लगभग सभी कहानियां आज भी कहीं बीज बन कर मेरे अंतस में बैठी हुई और आज भी प्रतीक्षा कर रही हैं कि कोई और रुप स्वरुप लेकर वह पुनः सामने आएं।... कुछ कहानियां कश्मीर टाइम में प्रकाशित हो चुकी हैं जिनके लिए मैं अपने परम मित्र वेद भसीन और अपने भाई सुरेंद्र सागर का धन्यवादी हूं। साथ ही धन्यवादी हूं सहयोग हेतु ज्योति, कपिल और सूरज का।‘
वे आगे लिखते हैं- मेरी जिंदगी का सुनहरी काल अनुसंधान प्रयोगशाला का जमाना रहा है। मेरा होना, बनना संस्कारों की बात थी पर परिस्थितियां भी कमाल की मददगार रहीं। खास कर डॉ सीo केo अटल साहब का ज़माना में मेरे पनपने, बनने, मकबूल होने, बहुत बार सम्मानित होने का एक बेहतरीन अरसा था। इस कहानी संग्रह को भी उन्होने क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला ( अब क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला-Regional Research Laboratory का नाम बदल कर भारतीय समवेत औषधीय संस्थान -Indian institute of Integrative medicines कर दिया गया है) के पूर्व निदेशक एवं अपने मित्र डॉ सीo केo अटल को समर्पित किया है।
डॉ सीo केo अटल क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला के निदेशक के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद भी सारथी जी के निवास पर उनसे मिलने आते रहे। मुझे भी सारथी जी के देहावसान के उपरांत दो-तीन बार डॉ अटल के दिल्ली निवास पर जाने का अवसर मिला। उनका घर सारथी जी के चित्रों एवं कलाकृतियों का लघु संग्रहालय कहा जाए तो अतिशयोक्ति ना होगी। डॉ सीo केo अटल के सुपुत्र डॉक्टर नवीन अटल के मन में सारथी जी के प्रति वही श्रद्धा भाव है जो एक विद्यार्थी के मन में एक शिक्षक के प्रति होती है किस प्रकार सारथी जी उनके निवास पर आते रहे, कैसे उन्हें चित्रकला के साथ-साथ जीवन दर्शन भी सिखाते रहे ,यह सब बताते हुए डॉक्टर नवीन अटल भावुक से हो जाते हैं। आज डॉ सीo केo अटल बहुत अस्वस्थ हैं परंतु पहली बार जब सारथी जी पर छप रही स्मारिका के संबंध में उनसे मिलने उनके दिल्ली निवास पहुंचा तो उन्होंने सारथी जी के संबंध में अनेक संस्मरण सुनाए। वे कहते - जब मैंने प्रयोगशाला में निदेशक का पदभार संभाला तो मुझे बताया गया ओo पीo शर्मा सारथी हमारे कार्यालय का बहुत बड़ा कलाकार एवं लेखक है। उनसे मिलने हेतु मैंने चपडासी को भेजा। चपडासी उनके पास जाकर कहता है आपको डाइरेक्टर साहब ने बुलाया है। सारथी जी पूछते हैं - क्या कहा था डाइरेक्टर साहब ने। चपडासी सहज स्वभाव कह गया - उन्होंने कहा जाओ ओo पीo शर्मा को यहां आने को कहो। अतीत में झांकते हुए डॉ अटल बताते हैं वह आए मुझे दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार किया है मैंने भी हल्की सी गर्दन हिला कर उनका अभवादन किया। सारथी जी बड़े गंभीर स्वर में कहने लगे - डॉक्टर साहब हम आपको कितना सम्मान देते हैं, आपका नाम कितने सम्मान से लेते हैं परंतु आपको अपने किसी कर्मचारी को बुलाने का सलीक़ा तक भी नहीं आता। यह जवाब सुन डॉ अटल कहने लगे मेरे पांव के नीचे से जमीन खिसक गई। जिस समय मेरे नाम से ही लोग कांपने लगते थे और मुझ से आंख मिलाकर कोई बोलने का साहस ना कर पाता था, सारथी जी मुझे सलीका सिखा रहे थे। एक लंबे विराम के बाद डॉ अटल पुनः कहते हैं - उस पहली मुलाकात में मैंने सारथी जी के स्वाभिमानी स्वरुप के दर्शन किए हालांकि यह पहली मुलाकात अनेक मुलाक़ातों में रुपांतरित हुई और हम दोनों में गहरा संबंध स्थापित हो गया। डॉ अटल मुझे देख कर कहते हैं, जब स्मारिका छपे तो उसमें इस घटना का जिक्र अवश्य करें।.........क्रमशः ...............कपिल अनिरुद्ध