सारथी कला निकेतन (सकलानि)

Saturday, 28 January 2012

an article by Gurudev


- घड़ी साज -सारथी 
प्रिय बंधु! तुम्हे यह विदित है कि कर्म करना है। कर्म कर के थकना है । और फिर विश्राम करना है । विश्राम कर के कार्य की थकावट को दूर करना है और फिर कार्य करना है । यह एक कार्यक्रम है जो चल रहा है । और तुम्हे हर क्षण इस का आदेश मिल रहा है । क्योंकि हर ओर यही हो रहा है इसलिए तुम इस के आगे सोच भी नहीं सकते । यह शरीर जीव और प्राण क्योंकि अनित्य है इसलिए यह व्यय होते हैं । और उपचार करने पर यह फिर से कार्य की क्षमता प्राप्त कर के व्यस्त हो जाते हैं । मुझे यह कहना है कि एक तीसरी स्थिति उत्पन्न करो वह है विश्राम के क्षणों में कार्य करने की और कार्य ही के क्षणों में विश्राम करने की । तुम जब लक्षित हो । और उधेश्य के हेतु जान लड़ाए हुए हो तो यह बात संस्कारगत है कि तुम्हे तब तक करना है जब तक तुम पूरे थक नहीं जाते और उधर लक्ष्य कि प्राप्ति नहीं हो जाती । सामाजिक भाषा में इसे संघर्ष कहते हैं । जिस के अर्थ नहीं निकले जा सकते । मुझे आज तक इस शब्द का अर्थ ही समझ नहीं आया । ऐसा भी संभव है कि मुझे ही कभी संघर्ष करना ही न पड़ा हो । परन्तु लक्ष्य कि प्राप्ति पूरा थकने पर या अधुरा थकने पर होती है यह बात मुझ पर अस्पष्ट सी है । मेरा अनुभव है कि जब भी मैं और तुम या कोई अन्य आधे संकल्प से, आधे सत्य से, आधी अधूरी निष्ठा और आधी अधूरी श्रद्धा से कार्य करेगा तो वह शीघ्र शक्ति खो कर थक जाएगा। थकेगा वही जो हाँ और नहीं के मध्य फंसा हुआ, आशा और निराशा के बीच फंसा हुआ, ईमानदारी और बेईमानी के मध्य फंसा हुआ कार्य कर रहा है । जो सत्य असत्य के मध्य है उसे लक्ष्य कि प्राप्ति हो, यह संभव नहीं लगता है । क्योंकि असत्य अपने आप में, बेईमानी और स्वार्थ अपने आप में घोर प्रकार कि थकावटें हैं । शिथिलताएँ हैं । यह तो प्रारम्भ से ही व्यय हो चुकी होती हैं । और जो वस्तु पहले से ही खर्च है, अधूरी है वह तुम्हारे उद्यम को, पुरुषार्थ और श्रम को कैसे बचा सकती है और सुरक्षा के साथ साथ सामान्य स्थिति में कैसे रख सकतीं हैं ।

एक उत्कृष्ट क्षमता जो कार्य के साथ साथ तुम्हे भी स्वभाविक और प्राकृतिक बनाये रखती है, वह है कार्य को समर्पित चिंतन। अपनी पूरी शक्ति और एकाग्रता का केवल कार्य में ही होना। स्वयं कार्य ही हो जाना। स्वयं लक्ष्य और उधेश्य ही हो जाना। स्वयं ही एक ऐसी अंतहीन प्रक्रिया में परवर्तित हो जाना जिस में कर्ता और क्रिया की भिन्नता का अंत हो जाए ।

और वह तभी संभव है जब तुम मात्र वर्तमान में रहने का निरंतर प्रण करो । निरंतर प्रयास करो। निरंतर वर्तमान ही को अपने श्वासों में भर कर रखो । और जिस क्षण तुम्हे कुछ करना है वही क्षण पहला और अंतिम क्षण जान लो । जिस क्षण में तुम्हे जीना है वही क्षण तुम्हारा सर्वस्व हो जाए ।तुम्हारा और तुम्हारे कार्य का, कोई अतीत न हो, कोई भविष्य न हो । कोई परिणाम भी न हो । परिणाम, अतीत, भविष्य मात्र वर्तमान हो ।

और यदि तुम अपने जीवन के मूल की ओर पलटो तो यह जीवन मात्र वर्तमान है। मात्र 'अब' है । मात्र 'यही' है । मात्र 'वही' है । श्वास का एक क्षण है मात्र 'यही' है ।

मात्र एक ही श्वास का आना जाना और आने जाने के भीतर जो शून्य का क्षण है । आने जाने के भीतर जो एक रिक्तता उत्पन्न होती है वही जीवन है । तुम एक क्षण कि लिए अपनी नाड़ी पकड़ लो । और गिनो । एक ताल के बाद यदि दूसरा ताल न बजे तो जीवन देह सभी कुछ समाप्त । और आगे का ताल बज कर यदि आगे न बजे तो तुम समाप्त । तो सारा शरीर ही एक ताल के भीतर कि लय पर टिका है । वही लय वर्तमान की सूचक है । यदि उसी एक क्षण में रहा जाए । एक रिक्तता में रहा जाए । दो बजते हुए तालों के मध्य के शून्य में रहा जाए, तो वही वर्तमान की स्थिति होगी । और फिर हर शून्य बढ कर विकास कर के उर्जा का रूप धारण करेगा और फिर तुम्हे माधव के स्वर सुनाई देंगे 
-मा कर्म फल हेतु -------------------------
यदि कर्म वर्तमान के एक रिक्त क्षण में हुआ है तो उस कर्म का भविष्य कहाँ है । और अतीत कहाँ है । फल की प्राप्ति के लिए तुम तब सोचोगे जब तुम्हे यह ज्ञान होगा कि कर्म का कहीं भविष्य भी है । परन्तु वास्तविकता यह है कि जब तुम्हारा अपना ही कोई भविष्य नहीं है तो तुम्हारे कर्म का क्या भविष्य हो सकता है । और जीवन का क्या भविष्य हो सकता है ।

आने वाले और गए क्षण के मध्य शून्य को ही जीवन कहते हैं । वही जीवन अथक है । पूर्ण शक्ति से भरा है ।

(परमश्र्द्ये गुरुदेव सारथी जी का यह लेख दैनिक कश्मीर टाईम्स में १५ सितम्बर १९९० में प्रकाशित हुआ )

1 comment:

  1. this description of life and the meaning of life is a new and fulfilling one.
    "यदि कर्म वर्तमान के एक रिक्त क्षण में हुआ है तो उस कर्म का भविष्य कहाँ है" wah..!! this line has a total 'saar' of the passage.
    When our energies are stuck in the past and future of the work how can we supply our energies to the work. this perception gives a whole new meaning to our goals in life.
    masterpiece..!!

    ReplyDelete