सागर की कहानी (52)
6 वर्ष के उपरांत 1990 में सारथी जी हिंदी की दो कृतियां साहित्य जगत के नाम करते हैं पहली हिंदी उपन्यास ‘बिन पानी के दरिया’ और दूसरी हिंदी काव्य ‘मरुस्थल’ के रूप में। इसके उपरांत 9 वर्ष के अंतराल के बाद वे डोगरी कहानी संग्रह ‘यात्रा’ का उपहार पाठकों को भेंट करते हैं। इन डोगरी कहानियों का उर्दू अनुवाद कुछ सभाओं में अनुवादक राज कुमार खजूरिया जी से सुनने को मिला तो लगा कि अपने विशिष्ट कथ्य एवं शिल्प के कारण यह कहानियाँ प्रतिनिधि भारतीय कहानियों में अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं। खजूरिया जी द्वारा उर्दू में अनूदित कहानियों को सारथी काला निकेतन ट्रस्ट द्वारा साहित्य अकादमी को उर्दू में प्रकाशनार्थ भेजा दिया गया परंतु साहित्य अकादमी अभी तक इस संबंध में मौन धारे हुए है । बीस कहानियों के संग्रह ‘यात्रा’ की प्रस्तावना में सारथी जी लिखते हैं –‘मैं अपने पर उस परम ब्रम्ह की बड़ी कृपा समझता हूं और यह भी मानता हूं कि मेरे जन्म जन्मांतर के संस्कार इतने ऊंचे हैं कि मैं साहित्य और कला से कभी भी थका नहीं। निरंतर भगवत प्रेरणा से लिख रहा हूं। राम कृपा से गा रहा हूं। कहानी ग़ज़ल निबंध उपन्यास निरंतर लिखने की शक्ति मुझे मिल रही है। मिलती आई है। .....मैं कहानी उसी भाव और प्रेम से लिखता हूं जिस प्रेम से मैं शास्त्रोक्त भजन गाता हूं।.... इस संग्रह की लगभग सभी कहानियां आज भी कहीं बीज बन कर मेरे अंतस में बैठी हुई और आज भी प्रतीक्षा कर रही हैं कि कोई और रुप स्वरुप लेकर वह पुनः सामने आएं।... कुछ कहानियां कश्मीर टाइम में प्रकाशित हो चुकी हैं जिनके लिए मैं अपने परम मित्र वेद भसीन और अपने भाई सुरेंद्र सागर का धन्यवादी हूं। साथ ही धन्यवादी हूं सहयोग हेतु ज्योति, कपिल और सूरज का।‘
वे आगे लिखते हैं- मेरी जिंदगी का सुनहरी काल अनुसंधान प्रयोगशाला का जमाना रहा है। मेरा होना, बनना संस्कारों की बात थी पर परिस्थितियां भी कमाल की मददगार रहीं। खास कर डॉ सीo केo अटल साहब का ज़माना में मेरे पनपने, बनने, मकबूल होने, बहुत बार सम्मानित होने का एक बेहतरीन अरसा था। इस कहानी संग्रह को भी उन्होने क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला ( अब क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला-Regional Research Laboratory का नाम बदल कर भारतीय समवेत औषधीय संस्थान -Indian institute of Integrative medicines कर दिया गया है) के पूर्व निदेशक एवं अपने मित्र डॉ सीo केo अटल को समर्पित किया है।
डॉ सीo केo अटल क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला के निदेशक के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद भी सारथी जी के निवास पर उनसे मिलने आते रहे। मुझे भी सारथी जी के देहावसान के उपरांत दो-तीन बार डॉ अटल के दिल्ली निवास पर जाने का अवसर मिला। उनका घर सारथी जी के चित्रों एवं कलाकृतियों का लघु संग्रहालय कहा जाए तो अतिशयोक्ति ना होगी। डॉ सीo केo अटल के सुपुत्र डॉक्टर नवीन अटल के मन में सारथी जी के प्रति वही श्रद्धा भाव है जो एक विद्यार्थी के मन में एक शिक्षक के प्रति होती है किस प्रकार सारथी जी उनके निवास पर आते रहे, कैसे उन्हें चित्रकला के साथ-साथ जीवन दर्शन भी सिखाते रहे ,यह सब बताते हुए डॉक्टर नवीन अटल भावुक से हो जाते हैं। आज डॉ सीo केo अटल बहुत अस्वस्थ हैं परंतु पहली बार जब सारथी जी पर छप रही स्मारिका के संबंध में उनसे मिलने उनके दिल्ली निवास पहुंचा तो उन्होंने सारथी जी के संबंध में अनेक संस्मरण सुनाए। वे कहते - जब मैंने प्रयोगशाला में निदेशक का पदभार संभाला तो मुझे बताया गया ओo पीo शर्मा सारथी हमारे कार्यालय का बहुत बड़ा कलाकार एवं लेखक है। उनसे मिलने हेतु मैंने चपडासी को भेजा। चपडासी उनके पास जाकर कहता है आपको डाइरेक्टर साहब ने बुलाया है। सारथी जी पूछते हैं - क्या कहा था डाइरेक्टर साहब ने। चपडासी सहज स्वभाव कह गया - उन्होंने कहा जाओ ओo पीo शर्मा को यहां आने को कहो। अतीत में झांकते हुए डॉ अटल बताते हैं वह आए मुझे दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार किया है मैंने भी हल्की सी गर्दन हिला कर उनका अभवादन किया। सारथी जी बड़े गंभीर स्वर में कहने लगे - डॉक्टर साहब हम आपको कितना सम्मान देते हैं, आपका नाम कितने सम्मान से लेते हैं परंतु आपको अपने किसी कर्मचारी को बुलाने का सलीक़ा तक भी नहीं आता। यह जवाब सुन डॉ अटल कहने लगे मेरे पांव के नीचे से जमीन खिसक गई। जिस समय मेरे नाम से ही लोग कांपने लगते थे और मुझ से आंख मिलाकर कोई बोलने का साहस ना कर पाता था, सारथी जी मुझे सलीका सिखा रहे थे। एक लंबे विराम के बाद डॉ अटल पुनः कहते हैं - उस पहली मुलाकात में मैंने सारथी जी के स्वाभिमानी स्वरुप के दर्शन किए हालांकि यह पहली मुलाकात अनेक मुलाक़ातों में रुपांतरित हुई और हम दोनों में गहरा संबंध स्थापित हो गया। डॉ अटल मुझे देख कर कहते हैं, जब स्मारिका छपे तो उसमें इस घटना का जिक्र अवश्य करें।.........क्रमशः ...............कपिल अनिरुद्ध
6 वर्ष के उपरांत 1990 में सारथी जी हिंदी की दो कृतियां साहित्य जगत के नाम करते हैं पहली हिंदी उपन्यास ‘बिन पानी के दरिया’ और दूसरी हिंदी काव्य ‘मरुस्थल’ के रूप में। इसके उपरांत 9 वर्ष के अंतराल के बाद वे डोगरी कहानी संग्रह ‘यात्रा’ का उपहार पाठकों को भेंट करते हैं। इन डोगरी कहानियों का उर्दू अनुवाद कुछ सभाओं में अनुवादक राज कुमार खजूरिया जी से सुनने को मिला तो लगा कि अपने विशिष्ट कथ्य एवं शिल्प के कारण यह कहानियाँ प्रतिनिधि भारतीय कहानियों में अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं। खजूरिया जी द्वारा उर्दू में अनूदित कहानियों को सारथी काला निकेतन ट्रस्ट द्वारा साहित्य अकादमी को उर्दू में प्रकाशनार्थ भेजा दिया गया परंतु साहित्य अकादमी अभी तक इस संबंध में मौन धारे हुए है । बीस कहानियों के संग्रह ‘यात्रा’ की प्रस्तावना में सारथी जी लिखते हैं –‘मैं अपने पर उस परम ब्रम्ह की बड़ी कृपा समझता हूं और यह भी मानता हूं कि मेरे जन्म जन्मांतर के संस्कार इतने ऊंचे हैं कि मैं साहित्य और कला से कभी भी थका नहीं। निरंतर भगवत प्रेरणा से लिख रहा हूं। राम कृपा से गा रहा हूं। कहानी ग़ज़ल निबंध उपन्यास निरंतर लिखने की शक्ति मुझे मिल रही है। मिलती आई है। .....मैं कहानी उसी भाव और प्रेम से लिखता हूं जिस प्रेम से मैं शास्त्रोक्त भजन गाता हूं।.... इस संग्रह की लगभग सभी कहानियां आज भी कहीं बीज बन कर मेरे अंतस में बैठी हुई और आज भी प्रतीक्षा कर रही हैं कि कोई और रुप स्वरुप लेकर वह पुनः सामने आएं।... कुछ कहानियां कश्मीर टाइम में प्रकाशित हो चुकी हैं जिनके लिए मैं अपने परम मित्र वेद भसीन और अपने भाई सुरेंद्र सागर का धन्यवादी हूं। साथ ही धन्यवादी हूं सहयोग हेतु ज्योति, कपिल और सूरज का।‘
वे आगे लिखते हैं- मेरी जिंदगी का सुनहरी काल अनुसंधान प्रयोगशाला का जमाना रहा है। मेरा होना, बनना संस्कारों की बात थी पर परिस्थितियां भी कमाल की मददगार रहीं। खास कर डॉ सीo केo अटल साहब का ज़माना में मेरे पनपने, बनने, मकबूल होने, बहुत बार सम्मानित होने का एक बेहतरीन अरसा था। इस कहानी संग्रह को भी उन्होने क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला ( अब क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला-Regional Research Laboratory का नाम बदल कर भारतीय समवेत औषधीय संस्थान -Indian institute of Integrative medicines कर दिया गया है) के पूर्व निदेशक एवं अपने मित्र डॉ सीo केo अटल को समर्पित किया है।
डॉ सीo केo अटल क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला के निदेशक के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद भी सारथी जी के निवास पर उनसे मिलने आते रहे। मुझे भी सारथी जी के देहावसान के उपरांत दो-तीन बार डॉ अटल के दिल्ली निवास पर जाने का अवसर मिला। उनका घर सारथी जी के चित्रों एवं कलाकृतियों का लघु संग्रहालय कहा जाए तो अतिशयोक्ति ना होगी। डॉ सीo केo अटल के सुपुत्र डॉक्टर नवीन अटल के मन में सारथी जी के प्रति वही श्रद्धा भाव है जो एक विद्यार्थी के मन में एक शिक्षक के प्रति होती है किस प्रकार सारथी जी उनके निवास पर आते रहे, कैसे उन्हें चित्रकला के साथ-साथ जीवन दर्शन भी सिखाते रहे ,यह सब बताते हुए डॉक्टर नवीन अटल भावुक से हो जाते हैं। आज डॉ सीo केo अटल बहुत अस्वस्थ हैं परंतु पहली बार जब सारथी जी पर छप रही स्मारिका के संबंध में उनसे मिलने उनके दिल्ली निवास पहुंचा तो उन्होंने सारथी जी के संबंध में अनेक संस्मरण सुनाए। वे कहते - जब मैंने प्रयोगशाला में निदेशक का पदभार संभाला तो मुझे बताया गया ओo पीo शर्मा सारथी हमारे कार्यालय का बहुत बड़ा कलाकार एवं लेखक है। उनसे मिलने हेतु मैंने चपडासी को भेजा। चपडासी उनके पास जाकर कहता है आपको डाइरेक्टर साहब ने बुलाया है। सारथी जी पूछते हैं - क्या कहा था डाइरेक्टर साहब ने। चपडासी सहज स्वभाव कह गया - उन्होंने कहा जाओ ओo पीo शर्मा को यहां आने को कहो। अतीत में झांकते हुए डॉ अटल बताते हैं वह आए मुझे दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार किया है मैंने भी हल्की सी गर्दन हिला कर उनका अभवादन किया। सारथी जी बड़े गंभीर स्वर में कहने लगे - डॉक्टर साहब हम आपको कितना सम्मान देते हैं, आपका नाम कितने सम्मान से लेते हैं परंतु आपको अपने किसी कर्मचारी को बुलाने का सलीक़ा तक भी नहीं आता। यह जवाब सुन डॉ अटल कहने लगे मेरे पांव के नीचे से जमीन खिसक गई। जिस समय मेरे नाम से ही लोग कांपने लगते थे और मुझ से आंख मिलाकर कोई बोलने का साहस ना कर पाता था, सारथी जी मुझे सलीका सिखा रहे थे। एक लंबे विराम के बाद डॉ अटल पुनः कहते हैं - उस पहली मुलाकात में मैंने सारथी जी के स्वाभिमानी स्वरुप के दर्शन किए हालांकि यह पहली मुलाकात अनेक मुलाक़ातों में रुपांतरित हुई और हम दोनों में गहरा संबंध स्थापित हो गया। डॉ अटल मुझे देख कर कहते हैं, जब स्मारिका छपे तो उसमें इस घटना का जिक्र अवश्य करें।.........क्रमशः ...............कपिल अनिरुद्ध
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