सागर की कहानी (53)
सागर के आगोश में कितनी ही आस्थायें, परम्परायें, धारणायें एवं विश्वास पैदा होते हैं, पलते हैं, युवावस्था को प्राप्त होते हैं और फिर ढ़लती उम्र की तरह परिपक्व हो उसी में विलीन भी हो जाते हैं। सागर के बारे में अनेक भ्रान्तियां भी पैदा हो कर मिटती रही हैं। भ्रान्तियां सदैव अज्ञात के सम्बन्ध में ही पैदा होती हैं। और यह भ्रान्तियां ही कहीं भय का कारण भी बनती हैं। अज्ञात का भय। यही भय सागर को भेद भरा, रहस्मय आश्चर्य बना देता हैं। श्री सारथी जी से दूरी बनाये रखने वाले लोगों के लिए वे एक रहस्यमय व्यक्ति बने ही रहे। बहुत से तथाकथित आलोचकों ने श्री सारथी जी को रहस्यवादी की संज्ञा भी दे डाली। वास्तव में जब हम अपना आलोचना धर्म निभाने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं तभी हम रचनाकार या साहित्यकार को विभिन्न गुटों एवं वर्गों में बाँट कर अपनी विद्वता का परिचय देना चाहते हैं। ऐसे ही आलोचकों ने कभी सूर्यकान्त त्रिपाटी निराला तथा महादेवी वर्मा को रहस्यवादी एवं छायावादी संज्ञाओं से नबाज़ा तो कभी प्रगतिवाद का चश्मा पहन कर सब रचनाकारों को देखने का प्रयत्न किया। परन्तु किसी रचनाकार की समीक्षा वाद-प्रतिवाद विशेष का चश्मा पहन कर नहीं हो सकती। इसी संदर्भ में डा राजकुमार जम्मू कश्मीर के स्वातन्त्रयोत्तर हिन्दी कवियों की यर्थाथवाद को देन नामक पुस्तक में अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखते हैं-‘श्री ओ पी शर्मा सारथी के बारे में यही कहा जा सकता है कि वह आदर्शौंमुखी यर्थाथवादी है, रहस्यवादी भी, प्रगतिवादी भी चूँकि समिष्ट में व्यष्टि जो देख पाते हैं। सब में आत्मरूप ही देखने वाला ऊँच नीच के भेद भाव को सहन करने में असमर्थ होता है। श्री सारथी जी काव्य के क्षेत्र में विचार व भाव की दृष्टि से एक अविसमरणीय देन हैं।‘
वादों प्रतिवादों का चश्मा पहने हुए लोगों ने कभी उन्हे जानने की चेष्टा नहीं की। ऐसे ही कुछ पूर्वाग्रही लोगों ने श्री सारथी जी के बारे में बिना उन के साहित्य का अघ्ययन किये यह कहना आरम्भ कर दिया कि उन की लेखनी समझ में नहीं आती। यह बात उन के साहित्य अकादमी से पुरस्कृत उपन्यास ‘नंगा रुक्ख’ के बारे में अधिक कही गई, शायद चर्चित उपन्यास के बारे में टिप्पणी कर यह लोग चर्चा में आने के लोभ का त्याग न कर सकें।
शायद नंगा रुक्ख के तथाकथित आलोचक नहीं जानते कि इस उपन्यास को सर्वाधिक अनुदित डोगरी उपन्यास का दर्जा प्राप्त है। राष्ट्रीय स्तर के सभी अनुवादकों, आलोचकों एवं समीक्षकों ने इस उपन्यास के सार्वभौमिक कथ्य एवं नवीन शिल्प को न केवल सराहा बल्कि इसे डोगरी के साथ-साथ भारतीय साहित्य की अनुपम कृति भी बताया।
नंगा रुक्ख का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत करने वाले साहित्यकार अशोक जेरथ उपन्यास की भूमिका में लिखते हैं-
-ओ पी शर्मा सारथी का उपन्यास नंगा रूक्ख जिसे पिछले वर्ष का अकादमी पुरस्कार मिला है, डोगरी साहित्य में तो एक उपलब्ध कृति है ही, मैं समझता हूं कि हिन्दी पाठक वर्ग के लिए भी यह कृति नवीनता के सौपानों को उजागर करेगी। वैसे तो डोगरी भाषा में अनेक छुटपुट प्रयोग हो रहे हैं किन्तु किसी प्रयोग को आन्दोलन के रूप में प्रस्तुत करने कर श्रेय सारथी को जाता है। प्रतीकात्मक शैली के कनवास पर यथार्थ के चौखटे खड़े कर अपने सटीक विचारों के रंग भरना उन के पांचों उपन्यासों में मुखरित हुआ। ‘नंगा रुक्ख’ इस आन्दोलन का आरम्भ था तो मकान, रेशम दे कीडे, पत्थर ते रंग और अपना अपना सूरज इस आन्दोलन की आधारशिला।
सागर के आगोश में कितनी ही आस्थायें, परम्परायें, धारणायें एवं विश्वास पैदा होते हैं, पलते हैं, युवावस्था को प्राप्त होते हैं और फिर ढ़लती उम्र की तरह परिपक्व हो उसी में विलीन भी हो जाते हैं। सागर के बारे में अनेक भ्रान्तियां भी पैदा हो कर मिटती रही हैं। भ्रान्तियां सदैव अज्ञात के सम्बन्ध में ही पैदा होती हैं। और यह भ्रान्तियां ही कहीं भय का कारण भी बनती हैं। अज्ञात का भय। यही भय सागर को भेद भरा, रहस्मय आश्चर्य बना देता हैं। श्री सारथी जी से दूरी बनाये रखने वाले लोगों के लिए वे एक रहस्यमय व्यक्ति बने ही रहे। बहुत से तथाकथित आलोचकों ने श्री सारथी जी को रहस्यवादी की संज्ञा भी दे डाली। वास्तव में जब हम अपना आलोचना धर्म निभाने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं तभी हम रचनाकार या साहित्यकार को विभिन्न गुटों एवं वर्गों में बाँट कर अपनी विद्वता का परिचय देना चाहते हैं। ऐसे ही आलोचकों ने कभी सूर्यकान्त त्रिपाटी निराला तथा महादेवी वर्मा को रहस्यवादी एवं छायावादी संज्ञाओं से नबाज़ा तो कभी प्रगतिवाद का चश्मा पहन कर सब रचनाकारों को देखने का प्रयत्न किया। परन्तु किसी रचनाकार की समीक्षा वाद-प्रतिवाद विशेष का चश्मा पहन कर नहीं हो सकती। इसी संदर्भ में डा राजकुमार जम्मू कश्मीर के स्वातन्त्रयोत्तर हिन्दी कवियों की यर्थाथवाद को देन नामक पुस्तक में अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखते हैं-‘श्री ओ पी शर्मा सारथी के बारे में यही कहा जा सकता है कि वह आदर्शौंमुखी यर्थाथवादी है, रहस्यवादी भी, प्रगतिवादी भी चूँकि समिष्ट में व्यष्टि जो देख पाते हैं। सब में आत्मरूप ही देखने वाला ऊँच नीच के भेद भाव को सहन करने में असमर्थ होता है। श्री सारथी जी काव्य के क्षेत्र में विचार व भाव की दृष्टि से एक अविसमरणीय देन हैं।‘
वादों प्रतिवादों का चश्मा पहने हुए लोगों ने कभी उन्हे जानने की चेष्टा नहीं की। ऐसे ही कुछ पूर्वाग्रही लोगों ने श्री सारथी जी के बारे में बिना उन के साहित्य का अघ्ययन किये यह कहना आरम्भ कर दिया कि उन की लेखनी समझ में नहीं आती। यह बात उन के साहित्य अकादमी से पुरस्कृत उपन्यास ‘नंगा रुक्ख’ के बारे में अधिक कही गई, शायद चर्चित उपन्यास के बारे में टिप्पणी कर यह लोग चर्चा में आने के लोभ का त्याग न कर सकें।
शायद नंगा रुक्ख के तथाकथित आलोचक नहीं जानते कि इस उपन्यास को सर्वाधिक अनुदित डोगरी उपन्यास का दर्जा प्राप्त है। राष्ट्रीय स्तर के सभी अनुवादकों, आलोचकों एवं समीक्षकों ने इस उपन्यास के सार्वभौमिक कथ्य एवं नवीन शिल्प को न केवल सराहा बल्कि इसे डोगरी के साथ-साथ भारतीय साहित्य की अनुपम कृति भी बताया।
नंगा रुक्ख का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत करने वाले साहित्यकार अशोक जेरथ उपन्यास की भूमिका में लिखते हैं-
-ओ पी शर्मा सारथी का उपन्यास नंगा रूक्ख जिसे पिछले वर्ष का अकादमी पुरस्कार मिला है, डोगरी साहित्य में तो एक उपलब्ध कृति है ही, मैं समझता हूं कि हिन्दी पाठक वर्ग के लिए भी यह कृति नवीनता के सौपानों को उजागर करेगी। वैसे तो डोगरी भाषा में अनेक छुटपुट प्रयोग हो रहे हैं किन्तु किसी प्रयोग को आन्दोलन के रूप में प्रस्तुत करने कर श्रेय सारथी को जाता है। प्रतीकात्मक शैली के कनवास पर यथार्थ के चौखटे खड़े कर अपने सटीक विचारों के रंग भरना उन के पांचों उपन्यासों में मुखरित हुआ। ‘नंगा रुक्ख’ इस आन्दोलन का आरम्भ था तो मकान, रेशम दे कीडे, पत्थर ते रंग और अपना अपना सूरज इस आन्दोलन की आधारशिला।
‘नंगा रूक्ख’ के हिन्दी संस्करण के विमोचन के अवसर पर इस उपन्यास पर अपने विचार व्यक्त करते हुए वे कहते हैं - नंगा रूक्ख में जिस यर्थाथ रूप को रचनाकार ने हमारे समक्ष रखा है वह शायद ही किसी दूसरे डोगरी उपन्यास में आया हो। मैं तो समझता हूँ कुल भारत के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में ‘नंगा रूक्ख’ को रखा जा सकता है।
........क्रमशः .......... कपिल अनिरुद्ध
No comments:
Post a Comment