सारथी कला निकेतन (सकलानि)

Thursday, 17 January 2013

Ghazal by Gurudev

ग़ज़ल (गुरुदेव 'सारथी' जी )
मुझ में क्या था कि मुझ को जान गए
बे बजह तुम भी ख़ाक छान गए

काफिले गुम हुए बगोलों में
खुद गए पावों के निशान गए

आसमां अश्कबार अब तक है
कैसे कैसे थे मेहरबान गए

अब बुलंदी की बात ख़त्म हुई
सर के ऊपर के आसमान गए

जब रुके तो पहाड़ जैसे रुके
जब गए तो सब जहान गए

क्या मिला जो उसे नहीं माना
क्या मिलेगा गर उस को मान गए

'सारथी' जो थे सूये दारो रसन
मंजिलों की वो बात जान गए

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