सारथी कला निकेतन (सकलानि)

Friday, 3 May 2013

ग़ज़ल (गुरुदेव 'सारथी' जी )
क़त्ल मेरी आरज़ू का कर गया 
बारहा फिर भी मैं उस के घर गया 

यूं तो वो था एक सन्नाटा मगर
मेरे सीने में सदायें भर गया

जिस्म के ज़ंदां में रहने के लिए
आदमी क्या क्या करिश्मे कर गया

जिस को सब ने टूट कर चाहा वही
सब की आँखों में अँधेरे भर गया

हिरोशिमा की तबाही देख कर
आदमी ईजाद ही से डर गया

उम्र भर जो मौत से लड़ता रहा
'सारथी' वो शख्स आखिर मर गया

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