सारथी कला निकेतन (सकलानि)

Sunday, 12 May 2013

ग़ज़ल (गुरुदेव 'सारथी' जी )

आदमी के जिस्म में अब दर्द घर कर जायेंगे
रूह के ज़हनों के रिश्ते देखना मर जायेंगे 

सब बयानों की हकीक़त एक ख़ामोशी में थी
लफ्ज़ और मानी के रेवड़ और क्या कर जायेंगे

रोशनी के भेस में तारीकियाँ हैं रूबरू
अब चिरागों के मुक़द्दर किस के दर पर जायेंगे

अब लहू की क्या ज़रूरत आशिकी के वास्ते
इश्क की सौदागिरी लाल-ओ -गुहर कर जायेंगे

सारथी अब दस्तकें देंगे कहाँ पर अहल-ए-फ़न
शोर इतना है कि हाथों के लहू मर जायेंगे

No comments:

Post a Comment