सारथी कला निकेतन (सकलानि)

Monday, 27 May 2013

श्री सारथी उवाच .................

"उपलब्धि तो तुम्हे तभी होगी जब तुम कुछ सुन कर, पढ़ कर, पहले स्वयं को उपलब्ध होगे । वह जो लिखा और पढ़ा है उस का अर्थ और सार जानोगे और जानने के पश्चात स्वयं को अभ्यास में डालोगे और अभ्यास की चरमसीमा तक पहुँच जाओगे । फिर प्रयत्न की चरमसीमा तक पहुँच जाओगे क्योंकि प्रयत्न की चरम सीमा यहाँ समाप्त होती है वहां से उपलब्धि के संकेत मिलना प्रारंभ होते हैं । ... तो छोटे छोटे अभ्यास से, प्रयत्न से, प्रारंभ करो । अभी से एक संकल्प करो । पानी को अर्ग्य में लो और कहो .... सब कुछ मेरा, घर-सामान, सोना, दुकान, पुत्र और पत्नी सब मेरे हैं, परन्तु मैं किसी का नहीं हूँ । किसी का नहीं हूँ ।"
  • Om Bhuria thuari patni hai,putra bhi hai,tus unde nai? par sade te under o tus,nai hone da swal ge nai uthda ke je us us param tatva deunchh han jera hamesha raunda hai kade mukda nai ki ke glana hai thara
  • Kapil Anirudh मैं सब का हूँ परन्तु मेरा कोई नहीं का अर्थ है ,,, मैं सब के लिए हर क्षण उपलब्ध रहूँगा प्रत्न्तु अपने लिए किसी से कुछ नहीं चाहूँगा...
  • Joginder Singh जैसे मिट्टी से घड़ा बनता है वैसे ही मैं से मेरा बनता है. मिट्टी से सुराही, दिया, मूर्ति इत्यादि भी बनते हैं. मिट्टी की उत्पत्ति घड़े से नहीं हो सकती. वैसे ही मेरे से मैं उत्पन्न नहीं होता...इन वाक्यों में अपने-पन या पराये-पन का बोध न करें. ये बात दार्शनिक स्तर की है...

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