सागर की कहानी - श्री सारथी जी की जीवनी को धारावाहिक रूप में प्रस्तुत करने का एक प्रयास। आप के सुझाबों का इंतज़ार रहेगा।
सागर की कहानी (36)
महान विराट एवं अनन्त सागर कभी अकर्मण्यता का शिकार नहीं होता। कभी थक के नहीं बैठता। कभी आलस्य एवं प्रमाद में नहीं घिरता। अनन्त एवं विराट सदा कर्मठ बना रहता है। सदा ही कुछ करने की प्रक्रिया में रहता है यह रत्नाकर। ऊपरी दृष्टि से देखने पर लगता है कि कर्महीन सागर कर्म से पलायन कर रहा है परन्तु सूक्ष्म दृष्टि के द्वारा ही सागर की सक्रियता को, सतत् प्रक्रिया को देखा जा सकता है। यह सागर ही कभी भाष्प बन कर वायुमण्ड़ल में तैरता है और बारिश की बूंदों में भी तो सागर ही होता है। यदि दृष्टि हो तो नदियों और नालों के प्रवाह में भी सागर को देखा जा सकता है।
मन्दिरों के शहर जम्मू में जैन बाज़ार का अपना एक विशेष स्थान है। इसी जैन बाज़ार में स्वर्णकारों के रहीम जी के शब्दों में अन्न (कनक) से सौ गुणा अधिक मादकता प्रदान करने वाले कनक अर्थात स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित शौ रूम हैं और इसी जैन बाज़ार में स्थित रावलपिंडी स्वीट शॉप भी सब की जानी पहचानी है।
रावलपिंडी स्वीट शॉप से नीचे ढलान की तरफ जाती गली बाबा लाल जी की गली कहलाती है। वैसे इस गली को ढक्की हजामा और विजयगढ़ के नाम से जाना जाता रहा है। शेकस्पेयर तो कह गए हैं व्हट इज़ इन ए नेम (whats in a name) अर्थात नाम में क्या रखा है। शेकस्पेयर की इस दलील से अधिक्तर लोग सहमत होंगे परन्तु नाम के महत्व एवं उपयोगिता से इन्कार भी नहीं किया जा सकता। फिर भारतीय दर्शन तो नाम के महत्व का गुणगान सदियों से करता आ रहा है। खैर इस समय बाबा लाल जी की गली ही इस का प्रचलित नाम है और बाबा लाल जी का प्रसिद्ध मन्दिर गली की पहचान भी। आईये इस गली में प्रवेश करते हैं। दस बीस कदम चलने के उपरान्त दायीं ओर बीर जी की करियाने की दुकान है। थोड़ा सम्भल के ढलान ज्यादा है। यह दूध वाले मनसुक्ख की दुकान है तथा और पाँच सात कदम चलने के बाद जब गली अपना कोण हल्का सा बदलती है, उसी स्थान पर एक घर है। इस घर में प्रवेश करते ही आप स्वयं को एक बरामदे में पाओगे जिस की बायीं ओर खुला द्वार स्वागत करता प्रतीत हो रहा है। इस के सामने एक और द्वार है। स्वागत कर रहे द्वार में प्रवेश करते हैं। गर्मियों के दिन हैं। शाम 6-7 के बीच का समां। कमरे में कुछ अंधेरा होने के कारण टयूब लाईट जल रही है। टयूब लाईट का दुधिया प्रकाश कमरे में फैल रहा है कमरे की एक तरफ कम्बलों की तह पर थोड़ा झुक कर बैठे सारथी साहब दीवार के साथ सटे कन्वास पर रंगों का जादू बिखेर रहे हैं। उन्हें घेर कर बैठे जिज्ञासु आवाक से हैं, कोई हिलजुल नहीं, जैसे वो सब पत्थर के बुत हों। इधर सारथी जी का ब्रश कन्वास पर घूम रहा है। छोटी सी पैलेट को लगातार देखने पर भी यह पता लगाना मुश्किल है कि रंग कौन सा किस में मिला कर कन्वास पर लगाया जा रहा है, परन्तु परिणाम गज़ब का है। टयूब लाईट के दुधिया प्रकाश और पंखे की विलम्बित गति में उन्हें काम करते देखना भी एक उपलब्धि है। कन्वास पे रंगों का चमत्कार देखते ही बाहर की मारू गर्मी का अहसास भूल सा जाता है। कमरे की दीवारें रचनाकार की रचनात्मक्ता की सशक्त प्रमाण हैं। कहीं त्रिकुटा पर्वत सुशोभित है तो कहीं तवी की रवानगी का आनन्द लिया जा सकता है। कर्नल सर आर एन चोपड़ा, रविन्द्र नाथ टैगोर तथा सारथी जी के पिता पंडित मनसा राम जी के portriat भी कमरे की सृजनात्मक्ता को बढ़ा रहे हैं। कमरे के एक भाग में लटकी घड़ी की टिक टिक की आवाज़ भी कमरे के मौन को तोड़ती है और आभास हेाता है कमरे की सृजनात्मक्ता की साक्षी यह टिक टिक पुरातन काल से चलती आ रही है और इसी प्रकार चलती रहेगी।
..............क्रमशः ................कपिल अनिरुद्ध
सागर की कहानी (36)
महान विराट एवं अनन्त सागर कभी अकर्मण्यता का शिकार नहीं होता। कभी थक के नहीं बैठता। कभी आलस्य एवं प्रमाद में नहीं घिरता। अनन्त एवं विराट सदा कर्मठ बना रहता है। सदा ही कुछ करने की प्रक्रिया में रहता है यह रत्नाकर। ऊपरी दृष्टि से देखने पर लगता है कि कर्महीन सागर कर्म से पलायन कर रहा है परन्तु सूक्ष्म दृष्टि के द्वारा ही सागर की सक्रियता को, सतत् प्रक्रिया को देखा जा सकता है। यह सागर ही कभी भाष्प बन कर वायुमण्ड़ल में तैरता है और बारिश की बूंदों में भी तो सागर ही होता है। यदि दृष्टि हो तो नदियों और नालों के प्रवाह में भी सागर को देखा जा सकता है।
मन्दिरों के शहर जम्मू में जैन बाज़ार का अपना एक विशेष स्थान है। इसी जैन बाज़ार में स्वर्णकारों के रहीम जी के शब्दों में अन्न (कनक) से सौ गुणा अधिक मादकता प्रदान करने वाले कनक अर्थात स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित शौ रूम हैं और इसी जैन बाज़ार में स्थित रावलपिंडी स्वीट शॉप भी सब की जानी पहचानी है।
रावलपिंडी स्वीट शॉप से नीचे ढलान की तरफ जाती गली बाबा लाल जी की गली कहलाती है। वैसे इस गली को ढक्की हजामा और विजयगढ़ के नाम से जाना जाता रहा है। शेकस्पेयर तो कह गए हैं व्हट इज़ इन ए नेम (whats in a name) अर्थात नाम में क्या रखा है। शेकस्पेयर की इस दलील से अधिक्तर लोग सहमत होंगे परन्तु नाम के महत्व एवं उपयोगिता से इन्कार भी नहीं किया जा सकता। फिर भारतीय दर्शन तो नाम के महत्व का गुणगान सदियों से करता आ रहा है। खैर इस समय बाबा लाल जी की गली ही इस का प्रचलित नाम है और बाबा लाल जी का प्रसिद्ध मन्दिर गली की पहचान भी। आईये इस गली में प्रवेश करते हैं। दस बीस कदम चलने के उपरान्त दायीं ओर बीर जी की करियाने की दुकान है। थोड़ा सम्भल के ढलान ज्यादा है। यह दूध वाले मनसुक्ख की दुकान है तथा और पाँच सात कदम चलने के बाद जब गली अपना कोण हल्का सा बदलती है, उसी स्थान पर एक घर है। इस घर में प्रवेश करते ही आप स्वयं को एक बरामदे में पाओगे जिस की बायीं ओर खुला द्वार स्वागत करता प्रतीत हो रहा है। इस के सामने एक और द्वार है। स्वागत कर रहे द्वार में प्रवेश करते हैं। गर्मियों के दिन हैं। शाम 6-7 के बीच का समां। कमरे में कुछ अंधेरा होने के कारण टयूब लाईट जल रही है। टयूब लाईट का दुधिया प्रकाश कमरे में फैल रहा है कमरे की एक तरफ कम्बलों की तह पर थोड़ा झुक कर बैठे सारथी साहब दीवार के साथ सटे कन्वास पर रंगों का जादू बिखेर रहे हैं। उन्हें घेर कर बैठे जिज्ञासु आवाक से हैं, कोई हिलजुल नहीं, जैसे वो सब पत्थर के बुत हों। इधर सारथी जी का ब्रश कन्वास पर घूम रहा है। छोटी सी पैलेट को लगातार देखने पर भी यह पता लगाना मुश्किल है कि रंग कौन सा किस में मिला कर कन्वास पर लगाया जा रहा है, परन्तु परिणाम गज़ब का है। टयूब लाईट के दुधिया प्रकाश और पंखे की विलम्बित गति में उन्हें काम करते देखना भी एक उपलब्धि है। कन्वास पे रंगों का चमत्कार देखते ही बाहर की मारू गर्मी का अहसास भूल सा जाता है। कमरे की दीवारें रचनाकार की रचनात्मक्ता की सशक्त प्रमाण हैं। कहीं त्रिकुटा पर्वत सुशोभित है तो कहीं तवी की रवानगी का आनन्द लिया जा सकता है। कर्नल सर आर एन चोपड़ा, रविन्द्र नाथ टैगोर तथा सारथी जी के पिता पंडित मनसा राम जी के portriat भी कमरे की सृजनात्मक्ता को बढ़ा रहे हैं। कमरे के एक भाग में लटकी घड़ी की टिक टिक की आवाज़ भी कमरे के मौन को तोड़ती है और आभास हेाता है कमरे की सृजनात्मक्ता की साक्षी यह टिक टिक पुरातन काल से चलती आ रही है और इसी प्रकार चलती रहेगी।
..............क्रमशः ................कपिल अनिरुद्ध
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