सागर की कहानी( 47)
यात्रा कहानी संग्रह की भूमिका में सारथी जी लिखते हैं – ‘कहानी का जन्म आदमी के साथ ही हुआ जब वह कंदराओं गुफाओं में रहता था। पता नहीं था क्या खाना है, क्या नहीं खाना। बोलने के लिए भाषा तो एक तरफ इशारे भी नहीं थे। कहानी तो उस समय भी उसके अंग संग थी और फिर सभ्यता की पहली सुबह से लेकर अब तक मनुष्य आगे आगे और कहानी परछाई की तरह पीछे पीछे। पहली कहानी में हर बात चमत्कारपूर्ण थी और अब हर बात काम की। पर कहानी का मूल केंद्र व्यक्ति की वृतियों का उद्घाटन रहा है। चाहे वह सारात्मक थी या विस्तारात्मक। आज कहानी विस्तार की कम और सार की अधिक मांग करने वाली रचना होती जा रही है चाहे सार तबील हो, लंबा हो।
साहित्य क्षेत्र में उनका प्रवेश कहानी के माध्यम से ही होता है। सेना के कार्यकाल के दौरान 1965 उनका प्रथम कहानी संग्रह ‘उमरे’ और उसके 1 वर्ष बाद उर्दू कहानी संग्रह ‘लकीरें’ प्रकाशित हुआ। ‘उमरे’ कहानी संग्रह में उनके राष्ट्रप्रेम सैनिक जीवन के अनुशासन और सैनिक की कर्तव्यनिष्ठा के स्पष्ट दर्शन दर्शन होते हैं। इसी कहानी संग्रह की एक कहानी ‘बड़ी मां’, में मां के वात्सल्य, प्रेम, त्याग तथा लेखक के धरती मां के प्रति अपना सर्वस्व अर्पित कर देने के भाव ने मां को लिखी एक चिट्ठी के रुप में अभिव्यक्ति पाई है। उनकी प्रयोगधर्मिता के संकेत उनकी इस कहानी में भी देखे जा सकते हैं। इस कहानी की कुछ पंक्तियां उद्धृत हैं ‘तू तो मेरी माँ है ही, लेकिन एक माँ तुझ से बड़ी है, सब माताओं से बड़ी - यह चलते फिरते सभी शरीर उस की देन हैं - उस ने बहुत संकट झेलें हैं हम सब के लिए । आज उस पर फिर से संकट है । आज वह भी अपना क़र्ज़ मुझ से मांग रही है’।
फिर 4 साल के अंतराल के उपरांत डोगरी भाषा में उनका पहला कहानी सुक्का बरुद 1971 में छपकर सामने आता है और इसके 1 वर्ष बाद 1972 में वे डोगरी का एक अन्य कहानी संग्रह लोक गै लोक मां बोली के चरणों में अर्पित करते हैं।इस बीच 1972 में ही उन्हें डोगरी कहानी संग्रह सुक्का बरूद के लिए जम्मू कश्मीर काला, भाषा एवं संस्कृति अकादमी द्वारा सम्मानित किया गया। इसी वर्ष उनका एक काव्य संग्रह ‘तन्दां’ प्रकाशित हुआ। इस काव्यसंग्रह के संबंध में पदम श्री राम नाथ शास्त्री जी लिखते हैं - डोगरी भाषा की साहित्य साधना के यज्ञ में ओ पी शर्मा इन्हीं कहानियों के फूलों की भेंट लेकर सम्मिलित हुए। एक ही वर्ष में दो कहानी संग्रहों के अतिरिक्त 40-42 पन्नों तक फैली ‘तन्दां’ उन की एक लंबी स्वच्छंद कविता है। डोगरी भाषा में यह अपनी तरह की पहली कवितामयी रचना है। 50 पन्नों की यह लघु रचना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस रचना की भूमिका उनकी बड़ी बहन श्रीमती सुशीला शर्मा ने लिखी है इसमें वह लिखती हैं- ‘वह मेरा छोटा भाई है। मैंने उसे उठा उठा कर खेल खिलाये हैं। मेरे से तीसरे स्थान पर छोटा होने के बावजूद जिस समय उसके साथ साहित्य संबंधी और आध्यात्मिक चर्चा चलती है तो लगता है कि वह बड़ा है। बहुत बार उसके मुंह से सुना है बोबो, दुनिया के व्यापार में यही अच्छा है कि दूसरे से कुछ लेना ही बाकी रहे, देना कुछ ना रह जाए। बहुत बार वह कहता है मैं स्वयं लिखकर बहुत बार अनुभव करता हूं कि लिखने वाला कोई और था, मैं मात्र देख रहा था।‘
यात्रा कहानी संग्रह की भूमिका में सारथी जी लिखते हैं – ‘कहानी का जन्म आदमी के साथ ही हुआ जब वह कंदराओं गुफाओं में रहता था। पता नहीं था क्या खाना है, क्या नहीं खाना। बोलने के लिए भाषा तो एक तरफ इशारे भी नहीं थे। कहानी तो उस समय भी उसके अंग संग थी और फिर सभ्यता की पहली सुबह से लेकर अब तक मनुष्य आगे आगे और कहानी परछाई की तरह पीछे पीछे। पहली कहानी में हर बात चमत्कारपूर्ण थी और अब हर बात काम की। पर कहानी का मूल केंद्र व्यक्ति की वृतियों का उद्घाटन रहा है। चाहे वह सारात्मक थी या विस्तारात्मक। आज कहानी विस्तार की कम और सार की अधिक मांग करने वाली रचना होती जा रही है चाहे सार तबील हो, लंबा हो।
साहित्य क्षेत्र में उनका प्रवेश कहानी के माध्यम से ही होता है। सेना के कार्यकाल के दौरान 1965 उनका प्रथम कहानी संग्रह ‘उमरे’ और उसके 1 वर्ष बाद उर्दू कहानी संग्रह ‘लकीरें’ प्रकाशित हुआ। ‘उमरे’ कहानी संग्रह में उनके राष्ट्रप्रेम सैनिक जीवन के अनुशासन और सैनिक की कर्तव्यनिष्ठा के स्पष्ट दर्शन दर्शन होते हैं। इसी कहानी संग्रह की एक कहानी ‘बड़ी मां’, में मां के वात्सल्य, प्रेम, त्याग तथा लेखक के धरती मां के प्रति अपना सर्वस्व अर्पित कर देने के भाव ने मां को लिखी एक चिट्ठी के रुप में अभिव्यक्ति पाई है। उनकी प्रयोगधर्मिता के संकेत उनकी इस कहानी में भी देखे जा सकते हैं। इस कहानी की कुछ पंक्तियां उद्धृत हैं ‘तू तो मेरी माँ है ही, लेकिन एक माँ तुझ से बड़ी है, सब माताओं से बड़ी - यह चलते फिरते सभी शरीर उस की देन हैं - उस ने बहुत संकट झेलें हैं हम सब के लिए । आज उस पर फिर से संकट है । आज वह भी अपना क़र्ज़ मुझ से मांग रही है’।
फिर 4 साल के अंतराल के उपरांत डोगरी भाषा में उनका पहला कहानी सुक्का बरुद 1971 में छपकर सामने आता है और इसके 1 वर्ष बाद 1972 में वे डोगरी का एक अन्य कहानी संग्रह लोक गै लोक मां बोली के चरणों में अर्पित करते हैं।इस बीच 1972 में ही उन्हें डोगरी कहानी संग्रह सुक्का बरूद के लिए जम्मू कश्मीर काला, भाषा एवं संस्कृति अकादमी द्वारा सम्मानित किया गया। इसी वर्ष उनका एक काव्य संग्रह ‘तन्दां’ प्रकाशित हुआ। इस काव्यसंग्रह के संबंध में पदम श्री राम नाथ शास्त्री जी लिखते हैं - डोगरी भाषा की साहित्य साधना के यज्ञ में ओ पी शर्मा इन्हीं कहानियों के फूलों की भेंट लेकर सम्मिलित हुए। एक ही वर्ष में दो कहानी संग्रहों के अतिरिक्त 40-42 पन्नों तक फैली ‘तन्दां’ उन की एक लंबी स्वच्छंद कविता है। डोगरी भाषा में यह अपनी तरह की पहली कवितामयी रचना है। 50 पन्नों की यह लघु रचना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस रचना की भूमिका उनकी बड़ी बहन श्रीमती सुशीला शर्मा ने लिखी है इसमें वह लिखती हैं- ‘वह मेरा छोटा भाई है। मैंने उसे उठा उठा कर खेल खिलाये हैं। मेरे से तीसरे स्थान पर छोटा होने के बावजूद जिस समय उसके साथ साहित्य संबंधी और आध्यात्मिक चर्चा चलती है तो लगता है कि वह बड़ा है। बहुत बार उसके मुंह से सुना है बोबो, दुनिया के व्यापार में यही अच्छा है कि दूसरे से कुछ लेना ही बाकी रहे, देना कुछ ना रह जाए। बहुत बार वह कहता है मैं स्वयं लिखकर बहुत बार अनुभव करता हूं कि लिखने वाला कोई और था, मैं मात्र देख रहा था।‘
1974 में उनका तीसरा डोगरी कहानी संग्रह ‘पागल दा ताजमहल छपकर आया तथा इसी वर्ष उनका एक और का डोगरी काव्य संग्रह ‘परतां’ प्रकाशित हुआ । सारथी जी ने चारों भाषाओं यदा हिंदी, उर्दू, पंजाबी और डोगरी में कहानियां
लिखी है हालांकि उनकी अधिकतर कहानियां डोगरी भाषा में है। इन कहानियों में युद्ध द्वारा लाए गए विनाश (लाम), असहाय किसान(सुक्का बरुद ), जमीदारों के उत्पीड़न(सलामती ताई), आधुनिक युग की पेचीदगियों ( परिवर्तन), आंतरिक यात्रा (परते), राजनीतिक षड्यंत्र(भेत), स्वयं की तलाश(त्राह) तथा अन्य राजनीतिक, मनोवैज्ञानिक एवं अध्यात्मिक विषयों ने अभिव्यक्ति पाई है । इस बीच उन्होंने मंच एवं आकाशवाणी दोनों के लिए नाटक लिखे। उनके तीन उर्दू नाटक राष्ट्रीय प्रसारण हेतु भी चुने गए। वे थिएटर के साथ लेखक और निर्देशक के नाते भी जुड़े रहे।
.......क्रमशः .........कपिल अनिरुद्ध
लिखी है हालांकि उनकी अधिकतर कहानियां डोगरी भाषा में है। इन कहानियों में युद्ध द्वारा लाए गए विनाश (लाम), असहाय किसान(सुक्का बरुद ), जमीदारों के उत्पीड़न(सलामती ताई), आधुनिक युग की पेचीदगियों ( परिवर्तन), आंतरिक यात्रा (परते), राजनीतिक षड्यंत्र(भेत), स्वयं की तलाश(त्राह) तथा अन्य राजनीतिक, मनोवैज्ञानिक एवं अध्यात्मिक विषयों ने अभिव्यक्ति पाई है । इस बीच उन्होंने मंच एवं आकाशवाणी दोनों के लिए नाटक लिखे। उनके तीन उर्दू नाटक राष्ट्रीय प्रसारण हेतु भी चुने गए। वे थिएटर के साथ लेखक और निर्देशक के नाते भी जुड़े रहे।
.......क्रमशः .........कपिल अनिरुद्ध
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