सारथी कला निकेतन (सकलानि)

Monday, 27 August 2012


घड़ी साज ---- गुरुदेव सारथी जी


जब तुम तैयार ही नहीं हो, तो गुरु को क्या करोगे ? जब तुम स्वयं ही डांवाडोल हो, स्वयं में ही तुम्हे विश्वास नहीं है, दृढ़ता नहीं है, तुम्हे अपने ही कुछ होने पर संशय है तो गुरु आकर क्या करेगा? यह एक सिद्धांत है जिस को तुम्हे अपनाना होगा कि जब तक स्वयं में थोड़ी बहुत भी गलत या सही चेतना का आभास होता रहेगा, तुम्हे हर गुरु जड़ ही लगेगा । जब तक तुम स्वयं को थोडा बहुत विद्वान समझते रहोगे तब तक तुम्हे गुरु मूर्ख लगेगा। जब तक तुम स्वयं को 'कुछ' समझते रहोगे गुरु तुम्हे "कुछ नहीं" दिखाई देगा ।

इस का कारण है । संसार में जितनी भी उपलब्धियां आज तक हुई हैं वे सारी साधक के अपने परिश्रम, अपनी लगन और अपने संघर्ष से हुई है । गुरु का महत्व प्रकाश का है । रास्ता अंधकारपूर्ण हो तो प्रकाश की अत्याधिक आवश्यकता पड़ती है । अन्धकार में तुम पग पग पर भटकते हो । ठोकर भी खाते ही हो । तो प्रकाश अनुपस्थित है । प्रकाश हो जाने की स्थिति में, परिस्थिति में, वातावरण में कुछ नहीं बदला। केवल इतना हुआ कि कौन वस्तु क्या और कैसी है और कहाँ पड़ी है , यह सब कुछ साफ़ दिखाई देने लगा है । तुम्हारे भीतर, तुम एक अँधेरे कमरे के समान हो और उस में तुम्हे स्वयं ही घूमना है । भीतर इतनी भयानकता है कि तुम भय के मारे अपने ही भीतर घुस नहीं सकते । भीतर झांकते हो तो तारीकी (अँधेरा) है, तुम्हे बस थोडा सा ज्ञान है कि उस कमरे में डरावने लोग रहते हैं । प्राय: वह तुम्हे अपने ही स्वार्थ, कामनाएं, वासनाएं, अभिलाषाएं तुम्हारे अपने ही काम, क्रोध, लोभ, मोह अहंकारदि ही हैं । परन्तु यह कमरा तुम्हारा ही है और तुम स्वामी हो कर इसकी और मुंह नहीं कर सकते । यह एक त्रासदी है । विघटन है। और दुखांत तुम्हारा है ।

गुरु केवल इतना ही करता है कि रौशनी जलाकर तुम्हारे अपने ही कमरे को प्रकाशमान कर देता है । और तुम देख सकते हो कि कहाँ कौन सा चोर बैठा है । यह तुम्हारा अपना कार्य है । गुरु को तुम्हारे घर से कोई गर्ज़ नहीं है जब तक कि तुम गुरु को इतना विश्वास नहीं दिलाते हो कि गुरु के बिना तुम बुरी मौत मरने वाले हो । और गुरु के मिलने पर ही तुम जीवन को प्राप्त हो सकते हो । और तुम एक उच्च कल्पना और धारणा के स्वच्छ जीवन, उस के द्वारा संघर्ष के लिए कटिबद्ध हो सकते हो ।

एक बात याद रखने की है पुत्र ! कोई यदि तुम्हे यह कहता फिरता है कि वह तुम्हारा उद्धार करेगा, उसे गुरु धारण करो । तो ऐसे महत्वकांक्षी आदमी को शिष्य भी बनाना शिष्य शब्द का अपमान है ।

एक बहुत ही प्रासंगिक कथा है । अति सुंदर! एक जागीरदार के भक्त नौकर ने कहा कि जागीरदार जी- आप के पास सब कुछ है । अच्छे से गुरु को धार कर जीवन सफल क्यों नहीं कर लेते ? जागीरदार के मन को बात लगी । चाबुक पकड़ी। घोड़ी पर चढ़ा । और दादू संत की कुटिया में पहुंचा । वहां शिष्यों से पुछा -महात्मा दादू, कहाँ हैं ? उत्तर मिला राह में कंकर पत्थर और कांटे चुन रहे हैं । जागीरदार लज्जित हुआ, कहा - मैं तो उन को गुरु धारण करने आया था । अब कौन सा मुंह ले कर उन के पास जाऊं । मैं आती बार उन्हें पांच सात चाबुक मार आया हूँ । उन से उन्ही का पता पूछा था । वह बोले नहीं । मुझे क्रोध आया । मैंने जड़ दी।

-हमारे गुरु दादू बड़े दयालु हैं । क्षमा की प्रतिमूर्ति हैं । आप जाएँ । वे आप की मनोकामना पूरी करेंगे । जागीरदार लौट कर गया और दादू जी के चरण पकड़ कर बोला - महाराज मुझे क्षमा करें । मैं तो आप को गुरु धारण करने आया था । परन्तु आप को पीट दिया ।

-तुम ने कुछ नहीं किया, दादू बोले । - एक आदमी चार आने की हंडिया खरीदता है तो बीस बार ठनका बजा कर । तुम तो गुरु धारण करोगे । परीक्षा लो

पुत्र! गुरु को परखो । अंतिम बिंदु तक परखो । परीक्षा लो।
उस के ज्ञान और धैर्य की । क्योंकि तुम अपना सर्वस्व उसे सौंपने वाले हो ।
 ·  ·  · August 11 at 11:29am
    • Surbhi Kesar wah.. it takes a mahapursh, a divine soul, the greatest of gurus to say that. i feel myself blessed to be the disciple of this great Soul. Wah
      August 11 at 2:17pm ·  · 2
    • Parth Shradhanand शिष्य तो ऐसा चाहिए जो गुरु को सब कुछ दे
      गुरु तो ऐसा चाहिए जो शिष्य से कछु न ले ...........संत कबीर
    • Kapil Anirudh गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है गढ़ी गढ़ी काढ़े खोट
      अंतर हाथ सहार दे बाहर बाहे चोट .................. संत कबीर जी
      August 12 at 8:25am ·  · 1
    • Parveen Sharma गुरु परकाश है जो हमारे भीतर के तम को हरने आते है और ज्ञान बन कर पल पल हमारे साथ हो जाते है
      August 12 at 2:21pm ·  · 2
    • Kapil Anirudh ati sunder
    • Joginder Singh ईश्वर गुरुः आत्मेति मूर्तिभेद विभागिनः -- अर्थात ईश्वर, गुरु और आत्म इन में भेद केवल स्थूल दृष्टि से ही दिखाई देता है, वास्तव में कोई भेद है नहीं...
      August 15 at 11:08pm ·  · 2
    • Kapil Anirudh अति सुंदर .............. सत्य वचन

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