सारथी कला निकेतन (सकलानि)
Shree Sarathi uvaach
श्री सारथी उवाच ..................
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श्री सारथी उवाच ..................
...... "तुम क्यों न ऐसी स्थिति के लिए साधना करो, जो न दुःख की स्थिति है और न ही सुख की स्थिति है। बल्कि दोनों के मध्य की स्थिति है । एक ऐसा बिंदु, एक ऐसा मुकाम जिस पर पहुँच कर यह अहसास हो कि दुःख यहाँ पर समाप्त हो गया है, और यहीं से सुख प्रारंभ होने वाला है । और जहाँ पर सुख समाप्त हो गया है, और दुःख प्रारंभ होने को है । तुम ऐसी स्थित पर पहुँच सकते हो जहाँ न सुख हो और न ही दुःख हो । और फिर तुम्हे एक नए जीवन का, एक नए विश्व का और एक नए मानव का साक्षात्कार हो । और यह स्थिति काफी सहज है । तुम्हारे जितने दुःख हैं उन में से सब से बड़ा दुःख पहचानो । उसे नाम दो । और उस कि तलाश करो । और तलाश करने पर तुम्हे ज्ञान होगा कि जीवन में सब से बड़े दुःख का निर्माण और किसी ने नहीं किया, स्वयं तुम ने ही किया है । तो दुखों कि फैक्ट्री मत बनो दुखों को manufacture मत करो ।"
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