सारथी कला निकेतन (सकलानि)

Sunday, 23 September 2012

श्री सारथी उवाच .................






"प्रिय बंधु... कभी कभी तुम्हारे भीतर भी सर्व को जानने, सारी सृष्टि को देखने की प्रबल इच्छा पैदा होती है । यदि सारी सृष्टि को देखने कि इच्छा है, सारी सृष्टि के साथ वार्तालाप करने और इस से भी अधिक यदि सारी सृष्टि का स्पर्श करने कि इच्छा है तो बंधु, कर्ता को जानना कारण को जान लेना हैं । प्रभु के तीन गुणों के नाटक को समझना है तो मात्र प्रभु को जान लो । क्योंकि प्रभु ही ज्ञान हैं , वही स्पर्श हैं । वही श्रवण और वाक् हैं । उन का ध्यान ही सर्वोपरि ज्ञान है । "

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