घड़ी साज ----सारथी
...................इसी रहस्य को मैं यूं भी सुना सकता हूँ कि तुम्हे जादू का खेल अच्छा लगता है । तुम प्रतिदिन टिकट खरीद कर हाल में जा बैठते हो और देखने का, दृष्ट और हृदय दोनों का आनंद लेते हो । परन्तु एक स्थिति तुम्हारी यूं भी और यह भी आ सकती है कि सोचो - रोज़ पैसे खर्च करता हूँ । रोज़ एक ही टिकट ? एक ही हाल ? एक ही तमाशा? एक ही जादूगर । एक ही वही मैं ? तो अब यह संभव है कि तुम इस प्रक्रिया से मुक्त होना चाहो । तो इस सब नाटक में प्रधानता भेद की है । ट्रिक की है । महज हाल को और तमाशे को त्याग देने से तुम्हारा समाधान कठिन है । संतुष्टि कठिन है । समाधान तो संभव है समझने में ।ज्ञान में और विवेक में । जादूगर से दोस्ती करने में । जिज्ञासा का समाधान होगा जब तुम जादूगर के घर पहुँच जाओगे और किसी भी प्रकार उस से जादू के सारे चमत्कार और भेद जान जाओगे । और जब पता लग जाएगा कि जादू वादू तो कुछ नहीं था । केवल अपनी ही दृष्टि का भ्रम था । मैं ही धोखा खा रहा था तो अपनी मूर्खता पर, अज्ञानता पर, निद्रा पर जितना हंस सको हंसो ।................
(गुरुदेव के लेख का यह अंश उन की ललित निबंधों की पुस्तक 'अज्ञात' में छपा है ।
...................इसी रहस्य को मैं यूं भी सुना सकता हूँ कि तुम्हे जादू का खेल अच्छा लगता है । तुम प्रतिदिन टिकट खरीद कर हाल में जा बैठते हो और देखने का, दृष्ट और हृदय दोनों का आनंद लेते हो । परन्तु एक स्थिति तुम्हारी यूं भी और यह भी आ सकती है कि सोचो - रोज़ पैसे खर्च करता हूँ । रोज़ एक ही टिकट ? एक ही हाल ? एक ही तमाशा? एक ही जादूगर । एक ही वही मैं ? तो अब यह संभव है कि तुम इस प्रक्रिया से मुक्त होना चाहो । तो इस सब नाटक में प्रधानता भेद की है । ट्रिक की है । महज हाल को और तमाशे को त्याग देने से तुम्हारा समाधान कठिन है । संतुष्टि कठिन है । समाधान तो संभव है समझने में ।ज्ञान में और विवेक में । जादूगर से दोस्ती करने में । जिज्ञासा का समाधान होगा जब तुम जादूगर के घर पहुँच जाओगे और किसी भी प्रकार उस से जादू के सारे चमत्कार और भेद जान जाओगे । और जब पता लग जाएगा कि जादू वादू तो कुछ नहीं था । केवल अपनी ही दृष्टि का भ्रम था । मैं ही धोखा खा रहा था तो अपनी मूर्खता पर, अज्ञानता पर, निद्रा पर जितना हंस सको हंसो ।................
(गुरुदेव के लेख का यह अंश उन की ललित निबंधों की पुस्तक 'अज्ञात' में छपा है ।
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