Tuesday, 10 December 2013
Wednesday, 27 November 2013
ज़िन्दगी दे टीसिया
ग़ज़ल-डोगरी (गुरुदेव 'सारथी' जी )
ज़िन्दगी दे टीसिया चढ़ने दी गल्ल
ज़िन्दगी ऐ दार पर चढ़ने दी गल्ल
प्यार सौखा हा कदें, हुन ऐ समां
बीज बनिए कंडिया रढ़ने दी गल्ल
बिज्ज दा कम्म आशियाने फूकना
शाख बनिये साढ़ी ऐ लड़ने दी गल्ल
जे सवेरे आहनने ते हुन करो
सूल आंगर न्हेरे च तड़ने दी गल्ल
छेक सारे जहाज गी डोबे' रदे
थल्ले पर आपूं गी ऐ जड़ने दी गल्ल
न्हेरा इय्यां दूर नई हुँदा यरो
लाट बनिए अग्गे ऐ थड़ने दी गल्ल
ज़िन्दगी दे टीसिया चढ़ने दी गल्ल
ज़िन्दगी ऐ दार पर चढ़ने दी गल्ल
प्यार सौखा हा कदें, हुन ऐ समां
बीज बनिए कंडिया रढ़ने दी गल्ल
बिज्ज दा कम्म आशियाने फूकना
शाख बनिये साढ़ी ऐ लड़ने दी गल्ल
जे सवेरे आहनने ते हुन करो
सूल आंगर न्हेरे च तड़ने दी गल्ल
छेक सारे जहाज गी डोबे' रदे
थल्ले पर आपूं गी ऐ जड़ने दी गल्ल
न्हेरा इय्यां दूर नई हुँदा यरो
लाट बनिए अग्गे ऐ थड़ने दी गल्ल
Thursday, 31 October 2013
Saturday, 28 September 2013
किस को अवसर है
ग़ज़ल (गुरुदेव 'सारथी' जी )
किस को अवसर है समेटे मुझे आ कर कोई
मैं हूँ हारा हुआ बिखरा हुआ लश्कर कोई
मैं आकारण ही यहाँ फैल गया हूँ कैसा
मुझ को आकाश संभाले न समंदर कोई
मैं तो इक ग्रन्थ पुराना हूँ बुझे शब्दों का
मैं भी जागूँ जो उभारे मेरे अक्षर कोई
स्वप्न के खेत हैं और नींद के नगमों की फसील
आये इस शहर में किस ओर से दिनकर कोई
देखते देखते इस शहर का क्या हश्र हुआ
दूर तक धड़ है धड़ों पर नहीं है सर कोई
यूं हकारत से न देखो मैं नहीं कोई खुदा
प्यार की भूख हूँ भर दे मुझे घर घर कोई
'सारथी' कान खड़े हैं यहाँ दीवारों के
बात कहने के लिए ढूँढ लो अवसर कोई
Thursday, 8 August 2013
ग़ज़ल-डोगरी (गुरुदेव 'सारथी' जी )
कम्बल गी छोड़, छोड़ नीन्दरै दा राग उट्ठ
सूरज ने बेह डै आई आखेआ तूं जाग उट्ठ
किच्चर तूं बलगना ए दौड़ खेतरै बक्खी
विमली पवै नीं फी कुतै भुक्खै दा नाग उट्ठ
धरती ऐ बैन पांदी जे पानी दी लौड़ ऐ
सूरज तूं बन हाँ दिक्खेयाँ बद्दल बी छाग उट्ठ
ओ बत्त लिशकदी ऐ दनां पैर तां बधा
पैंडे डा हर प डां तुगी रोहलां कराग उट्ठ
करना पवै बसां तां सेज कंडें दी बछा
टु रना पवै तां लेइये तूं धरती दे भाग उट्ठ
थुहना पवै जे गास तां तूं पहाड़ बनिये थूह
धरती संगारनी ऐ तां लेइये दमाग उट्ठ
छाले ते न्हेरे रौं न्कां न 'सारथी' दियां
बत्ते च दिये तेरियें अम्बर सजाग उट्ठ
ग़ज़ल-डोगरी (गुरुदेव 'सारथी' जी )
कम्बल गी छोड़, छोड़ नीन्दरै दा राग उट्ठ
सूरज ने बेह डै आई आखेआ तूं जाग उट्ठ
किच्चर तूं बलगना ए दौड़ खेतरै बक्खी
विमली पवै नीं फी कुतै भुक्खै दा नाग उट्ठ
धरती ऐ बैन पांदी जे पानी दी लौड़ ऐ
सूरज तूं बन हाँ दिक्खेयाँ बद्दल बी छाग उट्ठ
ओ बत्त लिशकदी ऐ दनां पैर तां बधा
पैंडे डा हर प डां तुगी रोहलां कराग उट्ठ
करना पवै बसां तां सेज कंडें दी बछा
टु रना पवै तां लेइये तूं धरती दे भाग उट्ठ
थुहना पवै जे गास तां तूं पहाड़ बनिये थूह
धरती संगारनी ऐ तां लेइये दमाग उट्ठ
छाले ते न्हेरे रौं न्कां न 'सारथी' दियां
बत्ते च दिये तेरियें अम्बर सजाग उट्ठ
कम्बल गी छोड़, छोड़ नीन्दरै दा राग उट्ठ
सूरज ने बेह डै आई आखेआ तूं जाग उट्ठ
किच्चर तूं बलगना ए दौड़ खेतरै बक्खी
विमली पवै नीं फी कुतै भुक्खै दा नाग उट्ठ
धरती ऐ बैन पांदी जे पानी दी लौड़ ऐ
सूरज तूं बन हाँ दिक्खेयाँ बद्दल बी छाग उट्ठ
ओ बत्त लिशकदी ऐ दनां पैर तां बधा
पैंडे डा हर प डां तुगी रोहलां कराग उट्ठ
करना पवै बसां तां सेज कंडें दी बछा
टु रना पवै तां लेइये तूं धरती दे भाग उट्ठ
थुहना पवै जे गास तां तूं पहाड़ बनिये थूह
धरती संगारनी ऐ तां लेइये दमाग उट्ठ
छाले ते न्हेरे रौं न्कां न 'सारथी' दियां
बत्ते च दिये तेरियें अम्बर सजाग उट्ठ
- You, Dhyanesh Kumar, Joginder Singh, Rekha Sharma and 2 others like this.
Saturday, 3 August 2013
श्री सारथी उवाच .................
"जब भी मैं और तुम या कोई अन्य आधे संकल्प, आधे सत्य से, आधी अधूरी निष्ठा और आधी अधूरी श्रद्धा से कार्य करेगा तो वह शीघ्र शक्ति खो कर थक जाएगा । थकेगा वही जो हाँ और नहीं के मध्य फंसा हुआ, आशा और निराशा के बीच फंसा हुआ, ईमानदारी और बेईमानी के मध्य फंसा हुआ कार्य कर रहा हो" ।
"जब भी मैं और तुम या कोई अन्य आधे संकल्प, आधे सत्य से, आधी अधूरी निष्ठा और आधी अधूरी श्रद्धा से कार्य करेगा तो वह शीघ्र शक्ति खो कर थक जाएगा । थकेगा वही जो हाँ और नहीं के मध्य फंसा हुआ, आशा और निराशा के बीच फंसा हुआ, ईमानदारी और बेईमानी के मध्य फंसा हुआ कार्य कर रहा हो" ।
Saturday, 6 July 2013
Tuesday, 25 June 2013
श्री सारथी उवाच .................
"गुरु मात्र वही नहीं जो ज्ञान और धैर्य और विनम्रता की प्रतिमूर्ति हो।
गुरु तो संकेत भी होता है। गुरु तो परिवर्तन भी होता है। गुरु तो संकेत और
परिवर्तन का कारण भी होता है। यदि तुम निष्ठा में हो और गुरु की अनुकम्पा
के प्रतीक्षक हो तो कहीं कोई मानव, जीव, पेड़, पौधा, जल, वायु, पृथ्वी,
अग्नि, आकाश, नारी, पिता, वैश्या कोई भी गुरु का स्थान प्राप्त कर सकता है।
विल्वमंगल और तुलसीदास के जीवन का आमूल परिवर्तन इस तथ्य का साक्षी है कि
गुरु कोई भी, कहीं भी और कैसे भी हो सकता है"
- You, Dhyanesh Kumar, Rekha Sharma and Joginder Singh like this.
- Joginder Singh महर्षि दत्तात्रेय जी के 24 गुरुओं की कथा याद दिलाने के लिए धन्यवाद मित्र...बचपन में माँ के श्रीमुख से सुनी हुई कथाओं में समुद्र-मंथन और 24 गुरुओं की कथाएँ मुझे अतिप्रिय हैं...
Sunday, 2 June 2013
Monday, 27 May 2013
श्री सारथी उवाच .................
"उपलब्धि तो तुम्हे तभी होगी जब तुम कुछ सुन कर, पढ़ कर, पहले स्वयं को
उपलब्ध होगे । वह जो लिखा और पढ़ा है उस का अर्थ और सार जानोगे और जानने के
पश्चात स्वयं को अभ्यास में डालोगे और अभ्यास की चरमसीमा तक पहुँच जाओगे ।
फिर प्रयत्न की चरमसीमा तक पहुँच जाओगे क्योंकि प्रयत्न की चरम सीमा यहाँ
समाप्त होती है वहां से उपलब्धि के संकेत मिलना प्रारंभ होते हैं । ... तो
छोटे छोटे अभ्यास से, प्रयत्न से, प्रारंभ करो । अभी से एक संकल्प करो ।
पानी को अर्ग्य में लो और कहो .... सब कुछ मेरा, घर-सामान, सोना, दुकान,
पुत्र और पत्नी सब मेरे हैं, परन्तु मैं किसी का नहीं हूँ । किसी का नहीं
हूँ ।"

"उपलब्धि तो तुम्हे तभी होगी जब तुम कुछ सुन कर, पढ़ कर, पहले स्वयं को उपलब्ध होगे । वह जो लिखा और पढ़ा है उस का अर्थ और सार जानोगे और जानने के पश्चात स्वयं को अभ्यास में डालोगे और अभ्यास की चरमसीमा तक पहुँच जाओगे । फिर प्रयत्न की चरमसीमा तक पहुँच जाओगे क्योंकि प्रयत्न की चरम सीमा यहाँ समाप्त होती है वहां से उपलब्धि के संकेत मिलना प्रारंभ होते हैं । ... तो छोटे छोटे अभ्यास से, प्रयत्न से, प्रारंभ करो । अभी से एक संकल्प करो । पानी को अर्ग्य में लो और कहो .... सब कुछ मेरा, घर-सामान, सोना, दुकान, पुत्र और पत्नी सब मेरे हैं, परन्तु मैं किसी का नहीं हूँ । किसी का नहीं हूँ ।"
- Om Bhuria thuari patni hai,putra bhi hai,tus unde nai? par sade te under o tus,nai hone da swal ge nai uthda ke je us us param tatva deunchh han jera hamesha raunda hai kade mukda nai ki ke glana hai tharaMay 18 at 11:48am · Like · 1
- Kapil Anirudh मैं सब का हूँ परन्तु मेरा कोई नहीं का अर्थ है ,,, मैं सब के लिए हर क्षण उपलब्ध रहूँगा प्रत्न्तु अपने लिए किसी से कुछ नहीं चाहूँगा...May 18 at 11:55am · Like · 2
- Joginder Singh जैसे मिट्टी से घड़ा बनता है वैसे ही मैं से मेरा बनता है. मिट्टी से सुराही, दिया, मूर्ति इत्यादि भी बनते हैं. मिट्टी की उत्पत्ति घड़े से नहीं हो सकती. वैसे ही मेरे से मैं उत्पन्न नहीं होता...इन वाक्यों में अपने-पन या पराये-पन का बोध न करें. ये बात दार्शनिक स्तर की है...May 18 at 3:29pm · Unlike · 1
Monday, 20 May 2013
Sunday, 12 May 2013
ग़ज़ल (गुरुदेव 'सारथी' जी )
आदमी के जिस्म में अब दर्द घर कर जायेंगे
रूह के ज़हनों के रिश्ते देखना मर जायेंगे
सब बयानों की हकीक़त एक ख़ामोशी में थी
लफ्ज़ और मानी के रेवड़ और क्या कर जायेंगे
रोशनी के भेस में तारीकियाँ हैं रूबरू
अब चिरागों के मुक़द्दर किस के दर पर जायेंगे
अब लहू की क्या ज़रूरत आशिकी के वास्ते
इश्क की सौदागिरी लाल-ओ -गुहर कर जायेंगे
सारथी अब दस्तकें देंगे कहाँ पर अहल-ए-फ़न
शोर इतना है कि हाथों के लहू मर जायेंगे
Monday, 6 May 2013
Saturday, 4 May 2013
Portrait of frontier Gandhi by Gurudev
Portrait of Khan Abdul Ghaffar Khan by Gurudev 'Sarathi" ji
Khan Abdul Ghaffar Khan (in Pashto خان عبد) الغفار خان)) (date of Birth 1890 – 20 January 1988), also known as or Badshah Khan ("King Khan") was a pashtun non-violent activist and close confidante of Mahatma Gandhi. He led his non-violent Khudai Khidmatgar movement against the British Raj in the 1930s and 1940s. As a consequence of his opposition to the partition of India he was considered a traitor or seccionist for much of his life after the creation of Pakistan in 1947. Post partition he fought for state/provincial rights as well as the eventual unification of Pashtuns on both sides of the Durand line.He is populartly known as frontier Gandhi or Sarhadi Gandhi.
Khan Abdul Ghaffar Khan (in Pashto خان عبد) الغفار خان)) (date of Birth 1890 – 20 January 1988), also known as or Badshah Khan ("King Khan") was a pashtun non-violent activist and close confidante of Mahatma Gandhi. He led his non-violent Khudai Khidmatgar movement against the British Raj in the 1930s and 1940s. As a consequence of his opposition to the partition of India he was considered a traitor or seccionist for much of his life after the creation of Pakistan in 1947. Post partition he fought for state/provincial rights as well as the eventual unification of Pashtuns on both sides of the Durand line.He is populartly known as frontier Gandhi or Sarhadi Gandhi.
Friday, 3 May 2013

क़त्ल मेरी आरज़ू का कर गया
बारहा फिर भी मैं उस के घर गया
यूं तो वो था एक सन्नाटा मगर
मेरे सीने में सदायें भर गया
जिस्म के ज़ंदां में रहने के लिए
आदमी क्या क्या करिश्मे कर गया
जिस को सब ने टूट कर चाहा वही
सब की आँखों में अँधेरे भर गया
हिरोशिमा की तबाही देख कर
आदमी ईजाद ही से डर गया
उम्र भर जो मौत से लड़ता रहा
'सारथी' वो शख्स आखिर मर गया
Friday, 12 April 2013
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