सागर की कहानी - श्री सारथी जी की जीवनी को धारावाहिक रूप में प्रस्तुत करने का एक प्रयास।
सागर की कहानी (17)
श्री सारथी जी के प्रथम डोगरी उपन्यास त्रेह समुन्दरै दी में भी सेना में उनके आरम्भिक कार्यकाल की झलक मिलती है। वे लिखते हैं- सेना की वह इकाई छोटी थी। कोई डेढ़ सौ के करीब सैनिक थे। जंगल में मंगल बाली बात थी। डेस्क एनo सीoओo से काई बीस कदम चल कर क्वार्टर गार्ड। उस के साथ कोत। कोत से मिलता वस्त्र भंडार। फिर दूसरी कतार चालू। रिक्रिएशन व कैन्टीन। आगे दो बडे टैंट रीडिंग रूम के। उनके ठीक सामने गोलाई में लगे हुए पांच सात टैंट कार्यालय के। रीडिंग रूम का इंचार्ज हवलदार हरीचन्द था। लायब्रेरी, स्पोटर्स व रिक्रिएशन का कार्यभार वही सम्भालता। भानुदत्त (उपन्यास का नायक) की डयूटी उसी के पास लगी।................... सब से बड़ी बात यह कि हवलदार हरी चन्द ने उस को पुस्तकें पढ़ने को कहीं, एक एक पुस्तक उस ने कईं बार पढ़ी और हर बार उसे लगा कि वह सैर कर रहा है, बंगाल की, बंगाल के गाँव की, बंगाल के लोगों से मिल रहा है। उन से कह रहा है मैंने आप को पहचान लिया है। आप की रस्में पहचान ली हैं। क्या आप भी मुझे पहचानते हैं। उस ने उत्तर प्रदेश के कई स्थानों को अपनी आँखों के सामने से गुज़रते देखा। वहाँ के लोगों को अपने साथ वार्तालाप करते अनुभूत किया।..................... उस ने उक आध कहानी लिखी जो सेना की ही पत्रिका में सैर शीर्षक से छपी।
..................................अब भानु की युनिट को स्थानांतरित हो कर ऊधमपुर जाना था। तीन वर्ष भानु ऊधमपुर रहा। हर सप्ताह घर आता रहा। उस की यूनिट नगर से दूर थी इस कारण से कभी कभी ही शहर का चक्कर लगता था। कभी कभार वह ऊधमपुर शहर जाता और घूमता। लोगों से बातचीत करता। परन्तु उसे यह अनुभव होता कि लोग उसे अपने से अलग समझ रह हैं।................................................... वह यूनिट थी या परिबार। बड़ा सा कुन्बा। जिस का हर व्यक्ति एक दूसरे के प्रति कुछ भी करने को हर क्षण तत्पर था। समूचे समाज की भान्ति। उस छोटे से यूनिट के कार्य बटे हुए थे। झाडू देने का कार्य, पानी लाने का कार्य। कपड़े धोने का कार्य। पढ़ने पढ़ाने का कार्य। शस्त्र लेने व देने तथा संभाल कर रखने का कार्य। वह तो एक सम्पूर्ण समाज था। छोटा सा चल समाज। इधर नगर में रहने वाले इस समाज में रहने वाले लोगों को क्या समझते थे।
श्री सारथी जी द्वारा द्वारा लिखित आरम्भिक कहानियों में एक सैनिक की सोच, दर्द एवं पीडा़ओ ने अभिव्यक्ति पाई है। 1965 में लिखित प्रथम उर्दू कहानी संग्रह उमरें उन्होंने उन वीरों के नाम समर्पित किया जिन्होंने देश रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्यौछाबर कर दिये। इसी काव्य संग्रह की एक कहानी रमता योगी सैनिक जीवन के अनुशासन तथा एक सैनिक की कर्मठता एवं राष्ट्रप्रेम को व्यक्त करती है। उन की इस कहानी का सैनिक उस योगी की तरह है जो एक स्थान पर अधिक नहीं ठहरता। जिस प्रकार माना जाता है कि रमता योगी और बहता पानी पवित्र होते हैं बैसी ही पवित्रता उन्हें एक सैनिक में नज़र आती है। उन के प्रथम डोगरी संग्रह त्रेह समुन्दरै दी में उन्होंने शहरी नागरिकों द्वारा एक सैनिक की अवहेलना को भी उजागर किया है जब कि उन के प्रथम डोगरी कहानी संग्रह सुक्का बरूद की कहानी लाम में युद्ध द्वारा लाये गए विनाश की पीड़ा को अभिव्यक्ति मिली है। उन का मानना है कि युद्ध मानव एवं मानवता दोनों का शत्रु है।
सैनिक जीवन के संघर्ष का क्रम जारी रखते हुए वे लिखते हैं -हरिचन्द के पास ही यूनिट का recreation था। हारमोनियम, तबला, ढ़ोलक, खंजरी, चिमटा सब मौजूद था। रोज़ शाम को यूनिट में महफिल सजने लगी, साहब रामचन्द्रन भी आने लगे। मेरा हारमोनियम सुन कर बहुत खुश हुए तथा उन्हें हैरानी भी हुई। अपने क्वाटर्र में ले गए। मुझे मिसेज रामचन्द्रन को हारमोनियम सिखाने को कहा। यूनिट में मेरे भविष्य की कोठियाँ पक्की होने लगीं। एक बड़ा I.P.Tent लगा। चन्द्रन साहब ने recreation और library room का उद्घाटन किया। मेरा कार्यक्षेत्र स्टाफ कारों के नम्बरों से आगे बढ़ा। मैने उमर-ए-ख्य्याम और कुछ भूदृष्य (landscape) बनाए और वहाँ लगाए। कला यात्रा और संवरती गई। यूनिट में बेशुमार रंग, फ्रेम की लकड़ी special grade कन्वास मौजूद थे। यूनिट का काम करने के उपरान्त मैं चित्रों की कापियाँ और नकलें लगातार करने लगा। उन्हीं दिनों मुझे पता चला कि देवीदास भी किसी गोरखा यूनिट में बतौर पेंटर काम कर रहा है। गा़लि़ब का एक शेअर है।
लताफत बे कसाफत जलबा पैदा कर नहीं सकती
चमन जंगार है आईना-ए-बादा-ए बहारी का
लुत्फ का आनन्द का कोई विषेश अहसास नहीं हो सकता जब तक उस की प्राप्ति में कठिनाईयाँ, रुकाबटें और कड़बाहटें न हों।
एक और सूरज निकलने के साथ पता चला कि रामचन्द्रन साहब जा रहे हैं। मैं ऐसा रोआ मानों पिता मृत्यु को प्राप्त हो रहे हों। मैंने उन से कहा कि मैं यूनिट छोड़ दूँगा। उन्होंने समझाया- फोजी कहीं भी जाये वह भारत में ही होगा। मैं भारत में हूँ, सब भारत में हैं। कुछ दिनों के उपरान्त पता चला कि प्रोवेस्ट यूनिट उधमपुर जा रही है। मैं यूनिट के साथ उधमपुर आ गया।
.........क्रमशः .......कपिल अनिरुद्ध
सागर की कहानी (17)
श्री सारथी जी के प्रथम डोगरी उपन्यास त्रेह समुन्दरै दी में भी सेना में उनके आरम्भिक कार्यकाल की झलक मिलती है। वे लिखते हैं- सेना की वह इकाई छोटी थी। कोई डेढ़ सौ के करीब सैनिक थे। जंगल में मंगल बाली बात थी। डेस्क एनo सीoओo से काई बीस कदम चल कर क्वार्टर गार्ड। उस के साथ कोत। कोत से मिलता वस्त्र भंडार। फिर दूसरी कतार चालू। रिक्रिएशन व कैन्टीन। आगे दो बडे टैंट रीडिंग रूम के। उनके ठीक सामने गोलाई में लगे हुए पांच सात टैंट कार्यालय के। रीडिंग रूम का इंचार्ज हवलदार हरीचन्द था। लायब्रेरी, स्पोटर्स व रिक्रिएशन का कार्यभार वही सम्भालता। भानुदत्त (उपन्यास का नायक) की डयूटी उसी के पास लगी।................... सब से बड़ी बात यह कि हवलदार हरी चन्द ने उस को पुस्तकें पढ़ने को कहीं, एक एक पुस्तक उस ने कईं बार पढ़ी और हर बार उसे लगा कि वह सैर कर रहा है, बंगाल की, बंगाल के गाँव की, बंगाल के लोगों से मिल रहा है। उन से कह रहा है मैंने आप को पहचान लिया है। आप की रस्में पहचान ली हैं। क्या आप भी मुझे पहचानते हैं। उस ने उत्तर प्रदेश के कई स्थानों को अपनी आँखों के सामने से गुज़रते देखा। वहाँ के लोगों को अपने साथ वार्तालाप करते अनुभूत किया।..................... उस ने उक आध कहानी लिखी जो सेना की ही पत्रिका में सैर शीर्षक से छपी।
..................................अब भानु की युनिट को स्थानांतरित हो कर ऊधमपुर जाना था। तीन वर्ष भानु ऊधमपुर रहा। हर सप्ताह घर आता रहा। उस की यूनिट नगर से दूर थी इस कारण से कभी कभी ही शहर का चक्कर लगता था। कभी कभार वह ऊधमपुर शहर जाता और घूमता। लोगों से बातचीत करता। परन्तु उसे यह अनुभव होता कि लोग उसे अपने से अलग समझ रह हैं।................................................... वह यूनिट थी या परिबार। बड़ा सा कुन्बा। जिस का हर व्यक्ति एक दूसरे के प्रति कुछ भी करने को हर क्षण तत्पर था। समूचे समाज की भान्ति। उस छोटे से यूनिट के कार्य बटे हुए थे। झाडू देने का कार्य, पानी लाने का कार्य। कपड़े धोने का कार्य। पढ़ने पढ़ाने का कार्य। शस्त्र लेने व देने तथा संभाल कर रखने का कार्य। वह तो एक सम्पूर्ण समाज था। छोटा सा चल समाज। इधर नगर में रहने वाले इस समाज में रहने वाले लोगों को क्या समझते थे।
श्री सारथी जी द्वारा द्वारा लिखित आरम्भिक कहानियों में एक सैनिक की सोच, दर्द एवं पीडा़ओ ने अभिव्यक्ति पाई है। 1965 में लिखित प्रथम उर्दू कहानी संग्रह उमरें उन्होंने उन वीरों के नाम समर्पित किया जिन्होंने देश रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्यौछाबर कर दिये। इसी काव्य संग्रह की एक कहानी रमता योगी सैनिक जीवन के अनुशासन तथा एक सैनिक की कर्मठता एवं राष्ट्रप्रेम को व्यक्त करती है। उन की इस कहानी का सैनिक उस योगी की तरह है जो एक स्थान पर अधिक नहीं ठहरता। जिस प्रकार माना जाता है कि रमता योगी और बहता पानी पवित्र होते हैं बैसी ही पवित्रता उन्हें एक सैनिक में नज़र आती है। उन के प्रथम डोगरी संग्रह त्रेह समुन्दरै दी में उन्होंने शहरी नागरिकों द्वारा एक सैनिक की अवहेलना को भी उजागर किया है जब कि उन के प्रथम डोगरी कहानी संग्रह सुक्का बरूद की कहानी लाम में युद्ध द्वारा लाये गए विनाश की पीड़ा को अभिव्यक्ति मिली है। उन का मानना है कि युद्ध मानव एवं मानवता दोनों का शत्रु है।
सैनिक जीवन के संघर्ष का क्रम जारी रखते हुए वे लिखते हैं -हरिचन्द के पास ही यूनिट का recreation था। हारमोनियम, तबला, ढ़ोलक, खंजरी, चिमटा सब मौजूद था। रोज़ शाम को यूनिट में महफिल सजने लगी, साहब रामचन्द्रन भी आने लगे। मेरा हारमोनियम सुन कर बहुत खुश हुए तथा उन्हें हैरानी भी हुई। अपने क्वाटर्र में ले गए। मुझे मिसेज रामचन्द्रन को हारमोनियम सिखाने को कहा। यूनिट में मेरे भविष्य की कोठियाँ पक्की होने लगीं। एक बड़ा I.P.Tent लगा। चन्द्रन साहब ने recreation और library room का उद्घाटन किया। मेरा कार्यक्षेत्र स्टाफ कारों के नम्बरों से आगे बढ़ा। मैने उमर-ए-ख्य्याम और कुछ भूदृष्य (landscape) बनाए और वहाँ लगाए। कला यात्रा और संवरती गई। यूनिट में बेशुमार रंग, फ्रेम की लकड़ी special grade कन्वास मौजूद थे। यूनिट का काम करने के उपरान्त मैं चित्रों की कापियाँ और नकलें लगातार करने लगा। उन्हीं दिनों मुझे पता चला कि देवीदास भी किसी गोरखा यूनिट में बतौर पेंटर काम कर रहा है। गा़लि़ब का एक शेअर है।
लताफत बे कसाफत जलबा पैदा कर नहीं सकती
चमन जंगार है आईना-ए-बादा-ए बहारी का
लुत्फ का आनन्द का कोई विषेश अहसास नहीं हो सकता जब तक उस की प्राप्ति में कठिनाईयाँ, रुकाबटें और कड़बाहटें न हों।
एक और सूरज निकलने के साथ पता चला कि रामचन्द्रन साहब जा रहे हैं। मैं ऐसा रोआ मानों पिता मृत्यु को प्राप्त हो रहे हों। मैंने उन से कहा कि मैं यूनिट छोड़ दूँगा। उन्होंने समझाया- फोजी कहीं भी जाये वह भारत में ही होगा। मैं भारत में हूँ, सब भारत में हैं। कुछ दिनों के उपरान्त पता चला कि प्रोवेस्ट यूनिट उधमपुर जा रही है। मैं यूनिट के साथ उधमपुर आ गया।
.........क्रमशः .......कपिल अनिरुद्ध
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