सारथी कला निकेतन (सकलानि)

Wednesday, 6 September 2017

सागर की कहानी (20)

सागर की कहानी - श्री सारथी जी की जीवनी को धारावाहिक रूप में प्रस्तुत करने का एक प्रयास 
सागर की कहानी (20)
सागर भूमध्य रेखा की असहनीय गर्मी को झेलते हुए भी शान्त बना रहता है तभी महासागर कहलाता है। उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों में यह सागर ठिठुरती ठण्ड़ भी झेलता है। कहीं यह रत्नाकर इतना शान्त है कि शांति की पराकाष्ठा के इस में दर्शन किए जा सकते हैं। दूसरी ओर यह आँधी और तूफानों के बीच नृत्य करता भी दिखाई देता है। समुद्र के आगोश में कहीं भीष्ण गर्जन करती लहरों का ताण्डव होता है तो कहीं मन्द गति से उठती लहरों द्वारा पैदा किया गया मधुर संगीत सुनाई देता है। परन्तु इतना सब होने पर भी हर रोज़ एक नया सूर्य सागर के आगोश से उदय होता है और शाम को उसी में समा भी जाता है।
श्री सारथी जी रुपी सागर के वक्ष पर खेलता एक नया सूर्य उन के प्रकृति प्रेम का सूर्य है। यह सूर्य उन का पौधों एवं वृक्षों से प्यार का सूरज है। वे जंगल-जंगल, घाटी-घाटी घूमे हैं। उन्होंने पौधों के चित्र बनाये हैं। छाया चित्र खींचे हैं और फिर उन का ज़िक्र यूँ किया है जैसे वह किसी विशिष्ट जाति के औरतों और मर्दों का ज़िक्र करते हैं। वे कहते - मैं ईमली का पेड़ हूँ। देखो मैं जामुन का पेड़ हूँ। मेरी ओर देखो, यह दोनों कुछ नहीं, मैं आम हूँ। फिर घरेलू पौधों का ज़िक्र तो वे घर के जीवों की भान्ति करते। एक बार घर में रखा हुआ आलू स्फुटित हो गया तो उन्होंने उसे एक गमले में लगवा दिया। पाँच-सात दिन के बाद जब वह पौधा बन गया तो कहने लगे- देखो बेटा जबान हो गया है।
पौधों की बहुत गहरी और लम्बी-चौड़ी दुनिया प्रकृति प्रेमी सारथी जी ने देखी है। पौधों से वर्षों तक बातें की हैं। लेटे हुए पौधों से, बालिश्त भर ज़मीन से उगे हुए पौधों से, रेंग कर खड़े होने की कोशिश करते हुए पौधों से। घरती की छाती फाड़ कर निकलते हुए वृक्षों से तथा ऐसे वृक्षों से बातें की हैं जो हमेशा ही आकाश की पगड़ी पहने रहते हैं और उन का मन करे तो बादलों से अपना मुँह धो लेते हैं।
श्री सारथी जी ने पोधों की morphology की है उन के द्वारा चित्रित पौधों के chromosomic characte हैरान कर देते । कभी किसी परिचित अपरिचित साथी के साथ टहलते हुए जब वे वनस्पति जगत के किसी पौधे को देखते तो उस का वैज्ञानिक नाम, देसी नाम, आयुर्वेदिक महत्व इत्यादि जानकारियाँ सहज ही उन के द्वारा सामने आने लगती और सुनने वाला आवाक सा यह सारा विवरण सुनता चला जाता। अपने एक संस्मरण में हिन्दी डोगरी के प्रख्यात साहित्यकार डा निर्मल विनोद लिखते हैं-ओ पी शर्मा सारथी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और अनेकमुखी व्यक्तित्व के स्वामी थे। वे अपनी तरह के अकेले रचनाकार थे.......... 'सारथी जी चित्रकला के शैदाई थे और यह उन का पेशा भी था। मैं बाटनी का विद्यार्थी हूं और क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला में जब भी उनके पास जाता, देखता वो फूल-पत्तों और पेड़ों का कितना जीवन्त चित्रण करते थे। वे कहते यदि पौधा न हो, कार्बन न हो, कुछ भी न हो। हम लोग पौधा पहनते हैं, पौधा खाते हैं, पौधा पीते हैं और पौधे हमारी अन्तिम यात्रा में भी सहायक होते हैं।' उन के द्वारा रचित पर्यावरण गीतों में उन के पर्यावरण प्रेम और पौधों से उन के अत्याधिक लगाव के ही दर्शन होते हैं।
........क्रमशः....कपिल अनिरुद्ध

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