सागर की कहानी - श्री सारथी जी की जीवनी को धारावाहिक रूप में प्रस्तुत करने का एकप्रयास
सागर की कहानी (26)
सफरनामा के द्वारा श्री सारथी जी की जीवन यात्रा और आगे बढ़ती है - 1959 में आर्मी की नौकरी छोड़ने के उपरान्त मैं मास्टर जी, मास्टर संसारचन्द से मिला। वे डोगरी संस्था के संस्थापकों में से एक थे और उस समय संस्था के प्रधान थे। उन के होते हुए मेरे जीवन ने एक नया रंग इख्तियार किया। प्रोo रामनाथ शास्त्री जी से मिलना हुआ। फिर नारायण मिश्र, राम लाल शर्मा, मधुकर, दीप से मिलना हुआ। साथ ही हिन्दी के मुजाहिद श्री बंसी लाल सूरी जी से मिलना हुआ। फिर हिन्दी के लेखकों से परिचय हुआ। एक नये प्रकार की बाकफियत मदन मोहन शर्मा, वेद राही, वेदपाल दीप, विद्यारत्न खजुरिया, श्यामलाल शर्मा, गंगा दत्त शास्त्री विनोद तथा कईं सदस्यों के साथ होने के साथ मेरे परिचय का आकाश विस्तृत हुआ। 1962-63 में चित्रकला -एकल- प्रदर्शनियाँ डोगरी संस्था की आर्थिक सहायता से कीं।
उन के चित्रों में डोगरी और डुग्गर के प्रति उन के प्रेम की पराकाष्ठा के दर्शन होते। चाहे portrait हो या landscape उस में जम्मू का जुगराफिया और कुदरत ही झाँकेगी। कहीं किसी चित्र में कोई गारड़ी नई सुहागिन को घर की खबर देता दिखाई देता तो कहीं कोई औरत छबील का पानी पिलाती नज़र आती।
डुग्गर लोकजीवन एवं डुग्गर सभ्यता एवं संस्कृति ने भी उन के चित्रों के माध्यम से अभिव्यक्ति पाई है। उन के द्वारा चित्रित बावे का किला, तवी की रबानगी, समाधियाँ, पुराने मन्दिर, त्रिकुटा पर्वत एवं जम्मू के अन्य पर्वत डुग्गर धरती की सुन्दरता का ही बखान करते नज़र आते हैं।
श्री सारथी जी बताया करते कि उन्होंने श्री देवदास जी के साथ पगड़ी दे कर एवं लड्डू खिला कर मास्टर जी की शिष्यता ग्रहण की थी। उन के अनुसार - जब मास्टर जी कार्य करते तो हम दोनों मैं और देवदास ड्राइंग करते हुए चोरी नज़रों से उन्हें देखते। उन की पैलेट बहुत ही संक्षिप्त और गर्म मिज़ाज की पैलेट थी। वह शायद कण्ड़ी और गर्मी का प्रभाव रहा होगा। दूसरी ओर मास्टर जी तस्बीर पूर्ण करने में उताबले बहुत होते थे। इतने उताबले कि निरन्तर एक टक देखने पर भी कोई यह ग्रहण करने में सक्षम नहीं हो सकता था कि रंग कौन सा किस में मिला कर लगा दिया गया है परन्तु परिणाम गज़ब का होता। मास्टर जी का figure पर पूर्ण अधिकार था। वे अक्सर ड्राईंग करते, figure design करते, परन्तु स्वभाव के उताबलेपन को छुपा न सकते और शीघ्र अति शीघ्र ड्राईंग को मुकम्मल कर देते।
श्री सारथी जी का Figure design करने में अनोखा अंदाज़ था। वे कागज़ को यूँ देखते जैसे उस पर कुछ बनाने से पहले सब कुछ बन चुका है। फिर एक अदा से पैंसिल की परछाई सी उस पर से घुमाते और बहुत हल्के से रेखाओं को आकार में ला कर गूढ़ा करते। पैंसिल चलाते हुए वो इस प्रकार उस पर दबाव बनाते कि प्रकाश ओर छाया का प्रभाव दिखाई देने लगता। यह उन का कमाल ही था कि कोई भी figure या landscape बनाते हुए उन के द्वारा खींची गई रेखा सार्थक एवं हर रेखा अपने महत्व की कहानी कहती प्रतीत होती।
दो प्रकार के कमाल मुझे श्री सारथी जी के याद आते हैं। पहला कमाल तो यह था कि उन की शैली water colour में direct application of colour की थी। वे mixing भी बहुत कम करते और पैलेट से सीधा रंग काग़ज़ पर चिपका कर उसे वहीं बिछाते। उन्हें figure और landscape पर पूर्ण अधिकार था। विशेषतः जब वे पुराणों और रामायण आदि के पात्रों को, देवी-देवताओं के रुप-स्वरुप को चित्रित करते उन में सौंदर्य अपनी पराकाष्ठा पर दिखाई देता था।
श्री सारथी जी बताते - मैं और देवदास वर्षों तक पैंसिल स्कैचिंग करते रहे। कभी ड्राईंग कुछ ठीक बनती और कभी बहुत ही ग़लत और त्रुटिपूर्ण। अक्षण ही वे त्रुटि ठीक कर के उठ जाते । जब कभी हम दोनों देर से पहुँचते, वे हमें डाँट कर लौटाने लगते । परन्तु शीघ्र ही बैठने और काम करने को कह देते। मास्टर जी ने दो विवाह किए थे। दोनों ही महिलायें वात्सल्य और प्रेम की प्रतिमूर्ति थीं। यह ऐसा देवी चमत्कार था कि एक घर में दो महिलायें इतने प्रेम, सौहार्द और सदव्यवहार से रहती थी कि प्रारम्भ में पता लगाना मुश्किल हो जाता कि इन का कहीं सौत का रिश्ता है।
........क्रमशः.... कपिल अनिरुद्ध
सफरनामा के द्वारा श्री सारथी जी की जीवन यात्रा और आगे बढ़ती है - 1959 में आर्मी की नौकरी छोड़ने के उपरान्त मैं मास्टर जी, मास्टर संसारचन्द से मिला। वे डोगरी संस्था के संस्थापकों में से एक थे और उस समय संस्था के प्रधान थे। उन के होते हुए मेरे जीवन ने एक नया रंग इख्तियार किया। प्रोo रामनाथ शास्त्री जी से मिलना हुआ। फिर नारायण मिश्र, राम लाल शर्मा, मधुकर, दीप से मिलना हुआ। साथ ही हिन्दी के मुजाहिद श्री बंसी लाल सूरी जी से मिलना हुआ। फिर हिन्दी के लेखकों से परिचय हुआ। एक नये प्रकार की बाकफियत मदन मोहन शर्मा, वेद राही, वेदपाल दीप, विद्यारत्न खजुरिया, श्यामलाल शर्मा, गंगा दत्त शास्त्री विनोद तथा कईं सदस्यों के साथ होने के साथ मेरे परिचय का आकाश विस्तृत हुआ। 1962-63 में चित्रकला -एकल- प्रदर्शनियाँ डोगरी संस्था की आर्थिक सहायता से कीं।
उन के चित्रों में डोगरी और डुग्गर के प्रति उन के प्रेम की पराकाष्ठा के दर्शन होते। चाहे portrait हो या landscape उस में जम्मू का जुगराफिया और कुदरत ही झाँकेगी। कहीं किसी चित्र में कोई गारड़ी नई सुहागिन को घर की खबर देता दिखाई देता तो कहीं कोई औरत छबील का पानी पिलाती नज़र आती।
डुग्गर लोकजीवन एवं डुग्गर सभ्यता एवं संस्कृति ने भी उन के चित्रों के माध्यम से अभिव्यक्ति पाई है। उन के द्वारा चित्रित बावे का किला, तवी की रबानगी, समाधियाँ, पुराने मन्दिर, त्रिकुटा पर्वत एवं जम्मू के अन्य पर्वत डुग्गर धरती की सुन्दरता का ही बखान करते नज़र आते हैं।
श्री सारथी जी बताया करते कि उन्होंने श्री देवदास जी के साथ पगड़ी दे कर एवं लड्डू खिला कर मास्टर जी की शिष्यता ग्रहण की थी। उन के अनुसार - जब मास्टर जी कार्य करते तो हम दोनों मैं और देवदास ड्राइंग करते हुए चोरी नज़रों से उन्हें देखते। उन की पैलेट बहुत ही संक्षिप्त और गर्म मिज़ाज की पैलेट थी। वह शायद कण्ड़ी और गर्मी का प्रभाव रहा होगा। दूसरी ओर मास्टर जी तस्बीर पूर्ण करने में उताबले बहुत होते थे। इतने उताबले कि निरन्तर एक टक देखने पर भी कोई यह ग्रहण करने में सक्षम नहीं हो सकता था कि रंग कौन सा किस में मिला कर लगा दिया गया है परन्तु परिणाम गज़ब का होता। मास्टर जी का figure पर पूर्ण अधिकार था। वे अक्सर ड्राईंग करते, figure design करते, परन्तु स्वभाव के उताबलेपन को छुपा न सकते और शीघ्र अति शीघ्र ड्राईंग को मुकम्मल कर देते।
श्री सारथी जी का Figure design करने में अनोखा अंदाज़ था। वे कागज़ को यूँ देखते जैसे उस पर कुछ बनाने से पहले सब कुछ बन चुका है। फिर एक अदा से पैंसिल की परछाई सी उस पर से घुमाते और बहुत हल्के से रेखाओं को आकार में ला कर गूढ़ा करते। पैंसिल चलाते हुए वो इस प्रकार उस पर दबाव बनाते कि प्रकाश ओर छाया का प्रभाव दिखाई देने लगता। यह उन का कमाल ही था कि कोई भी figure या landscape बनाते हुए उन के द्वारा खींची गई रेखा सार्थक एवं हर रेखा अपने महत्व की कहानी कहती प्रतीत होती।
दो प्रकार के कमाल मुझे श्री सारथी जी के याद आते हैं। पहला कमाल तो यह था कि उन की शैली water colour में direct application of colour की थी। वे mixing भी बहुत कम करते और पैलेट से सीधा रंग काग़ज़ पर चिपका कर उसे वहीं बिछाते। उन्हें figure और landscape पर पूर्ण अधिकार था। विशेषतः जब वे पुराणों और रामायण आदि के पात्रों को, देवी-देवताओं के रुप-स्वरुप को चित्रित करते उन में सौंदर्य अपनी पराकाष्ठा पर दिखाई देता था।
श्री सारथी जी बताते - मैं और देवदास वर्षों तक पैंसिल स्कैचिंग करते रहे। कभी ड्राईंग कुछ ठीक बनती और कभी बहुत ही ग़लत और त्रुटिपूर्ण। अक्षण ही वे त्रुटि ठीक कर के उठ जाते । जब कभी हम दोनों देर से पहुँचते, वे हमें डाँट कर लौटाने लगते । परन्तु शीघ्र ही बैठने और काम करने को कह देते। मास्टर जी ने दो विवाह किए थे। दोनों ही महिलायें वात्सल्य और प्रेम की प्रतिमूर्ति थीं। यह ऐसा देवी चमत्कार था कि एक घर में दो महिलायें इतने प्रेम, सौहार्द और सदव्यवहार से रहती थी कि प्रारम्भ में पता लगाना मुश्किल हो जाता कि इन का कहीं सौत का रिश्ता है।
........क्रमशः.... कपिल अनिरुद्ध
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