सागर की कहानी (27)
श्री सारथी जी की चित्रकला और अधिक थाह लेने से पूर्व ऐसे रचनाकार की रचना प्रक्रिया को समझाना होगा जो साहित्य सृजन के साथ साथ रेखायों और चित्रों के माध्यम से भी स्वयं को व्यक्त करता हो। ऐसे में एक नाम जो मस्तिष्क पटल पर उभरता है वह गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर का है। बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि टैगोर ने 63 वर्ष की आयु में चित्रकला सीखनी आरंभ की थी और 4 वर्ष उपरांत उन्होंने क्लाकृतियाँ बनाना आरंभ कर दी थी ..... आने वाले अगले 14 वर्षों में उन्होंने भारतीय चित्रकला क्षेत्र में अपनी कलात्मकता की अमिट छाप छोड़ दी थी । टैगोर का मानना है की चित्रों के द्वारा वे ऐसी अभिव्यक्ति चाहते थे जो वे लेखनी द्वारा न कर पाए। टैगोर की अधिकतर चित्र कलाकृतियां प्रतीकात्मक है हालांकि उनकी लेखनी में प्रतीकों का कम ही इस्तेमाल हुआ है। कहने का भाव यह है कि चित्रों द्वारा उनके पास अभिव्यक्ति के लिए ऐसा बहुत कुछ था जो वे अपनी लेखनी द्वारा अभिव्यक्त न कर पाये थे।
इस के विपरीत सारथी जी ने सर्वप्रथम सुरों एवं रंगों को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया,साहित्य सृजन को उन्होने बाद में अपनाया। सुरों एवं रंगों में अज्ञात को ज्ञात करने की क्षमता शब्दों से कहीं अधिक है। यही कारण है सारथी जी साहित्य में प्रतीकों एवं संकेतों की बहुलता है । सारथी जी का साहित्य चिंतन प्रधान है जब की उन के चित्रों एवं रेखाचित्रों में भाव प्रधानता है। विषय के आधार पर उन के चित्रों एवं रेखा चित्रों को चार श्रेणियों में बांटा जा सकता है।
मानव चित्र portrait
भूदृश्य landscape
आंचलिक चित्र regional paintings
पौराणिक चित्र mythological paintings
सांकेतिक चित्र symbolic paintings
जब रविंद्र नाथ टैगोर के चित्रों की बात होती तो doodles का ज़िक्र होता ही है । doodles ऐसी drawings को कहते हैं जो चिंतन में व्यस्त कलाकार सहज ही बनाता चला जाता जिस का विशेष अर्थ हो सकता है और यह अमूर्त आकृतियों के रूप में भी हो सकते हैं। सारथी जी के बहुत कम doodles देखने को मिलते हैं क्योंकि साधारणतः वे जब भी कोई लेख कहानी इत्यादि लिखते तो साथ ही किसी रेखा चित्र की रचना भी हो ही जाती। पेंसिल से खींची गई उनकी रेखा में प्रकाश और छाया के अद्भुत प्रभाव को देखा जा सकता। घुमावदार, हल्की, गहरी, गोलाकार, अर्ध गोलाकार, बहुत गहरी, सहलाती, बलखाती रेखाएं। कहीं रेखा बहुत हल्की, कहीं थोड़ी गहरी, फिर और गहरी, फिर बहुत गहरी, फिर बिना पेंसिल ऊपर उठाए किसी भी रेखा चित्र को ऐसे बनाते मानो पेंसिल कागज पर चिपकी हुई हो और बिना रुके सहज ही अपने गंतव्य की ओर बढ़ रही हो। पैन से कोई रेखा चित्र बनाते हुए भी ऐसा ही चमत्कार देखने को मिलता। मैंने उन्हें कभी किसी रेखा को मिटाते हुए कभी नहीं देखा । किसी रेखा में किसी प्रकार का संशोधन करते हुए नहीं देखा। घड़ीसाज और चिंतन शीर्षक से छपी दैनिक कश्मीर टाइम्स में उनकी धारावाहिक लेखमाला के साथ एक रेखाचित्र सदैव रहता जिसे वे पैन से बनाते। पहले वे रेखा चित्र बनाते फिर बड़े से पन्ने पर लेख उतरने लगता। मैंने उन्हें कभी किसी वाक्य को दोहराते, संशोधित करते नहीं देखा। जो लिखा वही उनका अंतिम सत्य होता । एक बार आरंभ करने के बाद लेख की समाप्ति पर ही कलम को हाथ से छोड़ते।
श्री सारथी जी की चित्रकला और अधिक थाह लेने से पूर्व ऐसे रचनाकार की रचना प्रक्रिया को समझाना होगा जो साहित्य सृजन के साथ साथ रेखायों और चित्रों के माध्यम से भी स्वयं को व्यक्त करता हो। ऐसे में एक नाम जो मस्तिष्क पटल पर उभरता है वह गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर का है। बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि टैगोर ने 63 वर्ष की आयु में चित्रकला सीखनी आरंभ की थी और 4 वर्ष उपरांत उन्होंने क्लाकृतियाँ बनाना आरंभ कर दी थी ..... आने वाले अगले 14 वर्षों में उन्होंने भारतीय चित्रकला क्षेत्र में अपनी कलात्मकता की अमिट छाप छोड़ दी थी । टैगोर का मानना है की चित्रों के द्वारा वे ऐसी अभिव्यक्ति चाहते थे जो वे लेखनी द्वारा न कर पाए। टैगोर की अधिकतर चित्र कलाकृतियां प्रतीकात्मक है हालांकि उनकी लेखनी में प्रतीकों का कम ही इस्तेमाल हुआ है। कहने का भाव यह है कि चित्रों द्वारा उनके पास अभिव्यक्ति के लिए ऐसा बहुत कुछ था जो वे अपनी लेखनी द्वारा अभिव्यक्त न कर पाये थे।
इस के विपरीत सारथी जी ने सर्वप्रथम सुरों एवं रंगों को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया,साहित्य सृजन को उन्होने बाद में अपनाया। सुरों एवं रंगों में अज्ञात को ज्ञात करने की क्षमता शब्दों से कहीं अधिक है। यही कारण है सारथी जी साहित्य में प्रतीकों एवं संकेतों की बहुलता है । सारथी जी का साहित्य चिंतन प्रधान है जब की उन के चित्रों एवं रेखाचित्रों में भाव प्रधानता है। विषय के आधार पर उन के चित्रों एवं रेखा चित्रों को चार श्रेणियों में बांटा जा सकता है।
मानव चित्र portrait
भूदृश्य landscape
आंचलिक चित्र regional paintings
पौराणिक चित्र mythological paintings
सांकेतिक चित्र symbolic paintings
जब रविंद्र नाथ टैगोर के चित्रों की बात होती तो doodles का ज़िक्र होता ही है । doodles ऐसी drawings को कहते हैं जो चिंतन में व्यस्त कलाकार सहज ही बनाता चला जाता जिस का विशेष अर्थ हो सकता है और यह अमूर्त आकृतियों के रूप में भी हो सकते हैं। सारथी जी के बहुत कम doodles देखने को मिलते हैं क्योंकि साधारणतः वे जब भी कोई लेख कहानी इत्यादि लिखते तो साथ ही किसी रेखा चित्र की रचना भी हो ही जाती। पेंसिल से खींची गई उनकी रेखा में प्रकाश और छाया के अद्भुत प्रभाव को देखा जा सकता। घुमावदार, हल्की, गहरी, गोलाकार, अर्ध गोलाकार, बहुत गहरी, सहलाती, बलखाती रेखाएं। कहीं रेखा बहुत हल्की, कहीं थोड़ी गहरी, फिर और गहरी, फिर बहुत गहरी, फिर बिना पेंसिल ऊपर उठाए किसी भी रेखा चित्र को ऐसे बनाते मानो पेंसिल कागज पर चिपकी हुई हो और बिना रुके सहज ही अपने गंतव्य की ओर बढ़ रही हो। पैन से कोई रेखा चित्र बनाते हुए भी ऐसा ही चमत्कार देखने को मिलता। मैंने उन्हें कभी किसी रेखा को मिटाते हुए कभी नहीं देखा । किसी रेखा में किसी प्रकार का संशोधन करते हुए नहीं देखा। घड़ीसाज और चिंतन शीर्षक से छपी दैनिक कश्मीर टाइम्स में उनकी धारावाहिक लेखमाला के साथ एक रेखाचित्र सदैव रहता जिसे वे पैन से बनाते। पहले वे रेखा चित्र बनाते फिर बड़े से पन्ने पर लेख उतरने लगता। मैंने उन्हें कभी किसी वाक्य को दोहराते, संशोधित करते नहीं देखा। जो लिखा वही उनका अंतिम सत्य होता । एक बार आरंभ करने के बाद लेख की समाप्ति पर ही कलम को हाथ से छोड़ते।
श्री सारथी जी हमें बताया करते - वास्तव में चित्रकला के द्वारा हमें वहाँ पहुँचना चाहिए जो हम देख नहीं सकते। सन 1965-66 में उन्होंने इस दर्शन को कन्वास पर उतारना आरम्भ कर दिया। उन का कथन है - जब तक एक व्यक्ति जो दिखाई नहीं देता उस को देखना आरम्भ नहीं करता तब तक केवल पदार्थ की नकल का कोई औचित्य नहीं। इसी दौरान उन्होंने वेदों, उपनिषदों एवं भतृरिहरि के श्लोकोंपर आधारित चित्र बनाना आरम्भ कर दिया। उन के द्वारा बनाये पानी और तैल रंगों से बने चित्रों में रंगों की हारमोनी देखते ही बनती। स्वयं मास्टर संसारचन्द जी उन्हें रंगों का जादूगर कहा करते।
क्रमशः......कपिल अनिरुद्ध
क्रमशः......कपिल अनिरुद्ध
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