गुरुदेव 'सारथी' जी के कथनानुसार ---
( गुरुदेव का यह कथन 'घड़ी साज' के नाम से प्रकशित होने वाले उन के एक निबंध से लिया गया है ।)
......................"प्रिय बन्धु! मुझे ठीक से विदित नहीं कि तुम किस स्थिति में हो, परन्तु यह तो निश्चित है कि पूरे आनंद और शांति कि स्थिति के लिए तुम्हे थोडा सा संघर्ष करना पड़ेगा और तुम्हे मेरी सहायता की आवश्यकता पड़ेगी वह यह कि तुम क्यों न ऐसी स्थिति के लिए साधना करो, जो न दुख कि स्थिति है और न सुख की ही स्थिति है । बल्कि दोनों के मध्य की स्थिति । एक ऐसा बिंदु, एक ऐसा मुकाम जिस पर पहुँच कर यह अहसास हो कि दुःख यहाँ पर समाप्त हो गया है और यहीं से सुख प्रारंभ होने को है । तुम ऐसी स्थिति पर पहुँच सकते हो जहाँ न सुख हो, और न ही दुःख हो । जहाँ दोनों समाप्त हों । जहाँ खड़े हो कर तुम दोनों सन्दर्भों को देख सको । और फिर तुम्हे एक नए जीवन का, एक नए विश्व का और एक नए मानव का साक्षात्कार हो और यह स्थित काफी सहज है" .................
( गुरुदेव का यह कथन 'घड़ी साज' के नाम से प्रकशित होने वाले उन के एक निबंध से लिया गया है ।)
......................"प्रिय बन्धु! मुझे ठीक से विदित नहीं कि तुम किस स्थिति में हो, परन्तु यह तो निश्चित है कि पूरे आनंद और शांति कि स्थिति के लिए तुम्हे थोडा सा संघर्ष करना पड़ेगा और तुम्हे मेरी सहायता की आवश्यकता पड़ेगी वह यह कि तुम क्यों न ऐसी स्थिति के लिए साधना करो, जो न दुख कि स्थिति है और न सुख की ही स्थिति है । बल्कि दोनों के मध्य की स्थिति । एक ऐसा बिंदु, एक ऐसा मुकाम जिस पर पहुँच कर यह अहसास हो कि दुःख यहाँ पर समाप्त हो गया है और यहीं से सुख प्रारंभ होने को है । तुम ऐसी स्थिति पर पहुँच सकते हो जहाँ न सुख हो, और न ही दुःख हो । जहाँ दोनों समाप्त हों । जहाँ खड़े हो कर तुम दोनों सन्दर्भों को देख सको । और फिर तुम्हे एक नए जीवन का, एक नए विश्व का और एक नए मानव का साक्षात्कार हो और यह स्थित काफी सहज है" .................