सारथी कला निकेतन (सकलानि)

Thursday, 1 March 2012

Ghari saaj

घड़ी साज ----सारथी 

कुछ लोग तुमने अवश्य देखे होंगे जो हर क्षण अत्यंत अप्रसन्न रहते हैं, खीझे रहते हैं, हर वस्तु, पदार्थ और तत्व पर । उनका स्वभाव बहुत विचित्र होता है । संसार की कोई भी वस्तु उन्हें अच्छी नहीं लगती । संसार भर के लोग उन्हें मूर्ख लगते हैं । एक वही हर काम में पूर्ण होते हैं, प्रवीण और दक्ष होते हैं । और सब अपूर्ण, अधूरे और व्यर्थ । ऐसे लोगों में एक बहुत ही बड़ी बात यह होती है की वे अपने लिए अंतिम सीमा तक सूक्ष्मभावी एवं स्वार्थी होते हैं और दूसरों के लिए लापरवाह और हानिकारक । ऐसे लोग समाज में तो एक विकार रूप और रोग रूप और धरती के हेतु भार रूप होते हैं, परन्तु ध्यान से सुनो ऐसे लोग तुम्हारे लिए अत्युत्तम लाभकारी और मार्गदर्शक हो सकते हैं । तुम्हारे लिए हितैषी और शुभाकांक्षी होते हैं ।

संसार में कुछ भी अच्छा न लगे, एक तपस्वी इसीलिये तपस्या करता है । ऐसे लोगों और साधकों और भक्तों में मामूली सा एक अंतर होता है कि भक्त, योगी और साधक को केवल भगवान और उन के भक्त अतिप्रिय होते है और ऐसे अप्रसन्न लोगों को केवल अपने शरीर और अपने धन से ही प्रेम प्यार और घनिष्टता होती है, अन्य किसी भी वस्तु से नहीं ।

परन्तु इन में एक बात विशेष यह होती है कि ऐसे लोग अवसर पुत्र होते हैं । चाहते सभी कुछ हैं, पहले तो अपनी शर्तों पर और यदि काम न बने तो अक्षण ही बदल जाते हैं । और फिर एक सामान्य आदमी को संशय होता है कि ऐसा आदमी जो किसी भी आदमी से, यहाँ तक कि अपने हितैषियों से भी खुश नहीं है, एकदम कैसे मृदुभाषी और विनम्र हो गया ? वास्तव में ऐसा आदमी जब विनम्र हो तो उस का विष अधिक बढ़ा हुआ होता है । भीतर से वह आग-बबूला और अत्यंत कुटिल हो चुका होता है और समय की प्रतीक्षा में होता है की कब उस का स्वार्थ सिद्ध हो और कब वह एकदम पलट कर अपना असली रूप दिखाए ।

कई बार जब कर्मों के अनुसार और पूर्वजन्म के शुभ संस्कारों के कारण ऐसे आदमी को कोई गुण अथवा कला की प्राप्ति हो जाए तो उस की शान, छटा और अहंकार देखते ही बनता है । ऐसे आदमी को जहाँ से अर्थ अथवा सम्मान प्राप्त होने की आशा हो वहां तो वह अतिदीन और विनम्र हो जाता है और ऐसा भी हो सकता है कि अपना मूल्य डलवाने के लिए तैयार हो जाए । ऐसा व्यक्ति झट ही खरीदा और तत्काल ही बेचा जा सकता है । एक गुण और निकलता है, इन्हें सभ्यता और आचरण छू तक नहीं गया होता । इसलिए यह अधिक रिश्ते-नाते स्त्रियों से, सुंदर नारियों से स्थापित करने के प्रयास में रहते हैं। नारियों की एक अधिकाधिक दुर्बलता उन कि खुशामद और प्रशंसा कही जा सकती है। ऐसे स्वार्थी लोग अकेले में, एकांत में, नारी का, सद्पुरुषों का, विद्वानों का महानपुरुषों तथा कलाकारों और कलागुरुओं का सम्मान करते हैं, प्रशस्ति करते हैं, खुशामद करते हैं । यहाँ तक की एकांत में सीखते हैं परन्तु सम्मेलनों, गोष्ठियों और जनसभाओं में समूल बदल जाते हैं और व्यवहार उन का अजनबियों जैसा हो जाता है ।

मेरी कामना है की तुम ऐसा एक आदमी ( एक ही जन्म जन्मान्तर के लिए प्रयाप्त होता है) खोज कर उस से परिचय कर लो । यदि तुम सत्य निष्ठ, ज्ञान निष्ठ और भक्ति निष्ठ हो, सज्जनों में ही रहने के आदि हो तो होता यह है कि तुम निष्ठा, श्रद्धा और भक्ति और विनम्रता, इन भावों के प्रति आलसी हो जाते हो और कभी कभी तो तुम तुलनात्मक हो कर अपनी ही साधना का हनन कर सकते हो । परन्तु जब तुम एक ऐसे आदमी को अपना निकट मित्र बना लेने में सफल हो जाओगे तो तुम्हे पूर्णरूपेण जागृत रहना पड़ सकता है । ऐसा ही आदमी तुम्हे हर घडी यह अनुभूत करवा सकता है कि संसार कुछ नहीं । कोई पहचान, रिश्ता-नाता, सम्बन्ध सब छल, कपट और दिखावा है । यहाँ सब कुछ स्वार्थ का ही है और स्वार्थ के इलावा और कुछ नहीं है । यह संसार कृत्घन है । विश्वासघाती है । यह मायाजाल है, यह हिंसा से स्वार्थ और अनैतिकता से पूर्ण है । यहाँ कामी, क्रोधी, लोभी, मोही और अहंकारी ही बसते हैं और वही राज्य करते हैं । वही जगत का खंडन और मंडन करते हैं । ऐसा आदमी जो सर से पाँव तक स्वार्थी और कुटिल और अवसर पुत्र हो, तुम्हे थोड़े ही समय में भक्त से भगवान बना सकता है ।

परन्तु मुझे संशय है कि तुम ऐसा आदमी ढूंढ लो और उस से सम्बन्ध स्थापित कर सको । क्योंकि राम और भर्तृहरी बनने और होने में ऐसी ही प्रवृतियों कि मुख्य भूमिका रही है । उन की विरक्ति का लगभग कारण ऐसे ही कुटिल और छली लोग रहे हैं । मुझे ऐसा ही अनुभव होता हिया कि पिंघला और कैकेयी, राम और भर्तृहरी के लिए वरदान ही प्रमाणित हुई। दोनों ही अभी तक हमारे मस्तिष्क, मन और मनन में जीवित हैं। 
(गुरुदेव का यह लेख उन की पुस्तक 'अज्ञात' से लिया गया है )

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