सागर की कहानी - श्री सारथी जी की जीवनी को धारावाहिक रूप में प्रस्तुत करने का एक प्रयास।
सागर की कहानी (16)
सफरनामा में अपने जीवन-वृतांत का व्यौरा जारी रखते हुए वे लिखते हैं - सितम्बर माह में, बाढ़ में तवी का पुल टूट गया। मैं काम के लिए अफरा-तफरी कर रहा था। पुल पार करते ही ware house के स्थान पर M.P Head Quarter (47 lofc provost unit CMP) थी। मैं उस के गेट के पास खड़ा था। एक घनघोर घटा आई और मुझ पर बरस गई। यूनिट में से जीप निकली, जीप में मेरे भाग्य थे। जीप में एक मशहूर पेंटर करतार अबरोल जंज़ीरों में झकड़ा हुआ था। साथ में अफसर तथा दो एनoसीoओ। जीप मेरे पास से निकली तो करतार ने आबाज़ लगाई - ओए ओम, यहाँ क्या कर रहा है, इधर आ।
-जीप के ड्राइवर (कैप्टन रामचन्द्रन) ने जीप एकदम रोक दी और मुझ से पूछा-तुम पेंटर मास्टर को जानते हो।
मैने कहा- हाँ सर जानता हूँ। यह बहुत मशहूर आर्टिस्ट है। यह मार्किट में जहां भी काम करते हैं हम सब रुक कर देखने लगते हैं।
- यह पागल हो गया है। इस को mental hospital में भर्ती करबाने ले जा रहे हैं। इस ने दो जबानों को पीट डाला है।
रामचन्द्रन साहब फिर लहजा बदल कर बोले। - तुम भी पेंटर हो।
-हाँ साहब! मैं भी काम जानता हूँ। मैं ड्राईंग बहुत अच्छी जानता हूँ।
रामचन्द्रन ने एक J.C.O को बुलाया और कहा- यह पेंटर है। इस को डैस्क एनoसीoओ के पास बिठाओ। हम आ कर इस का काम देखेंगे। डूबते को तिनके का सहारा। घर में ताई पिता जी पर ज़ोर भर रही थी कि इस को मैकेनिक के पास रखबा दो बर्ना यह भूखा मर जाएगा। यह निक्कमा अपने आप पर भी भार है और आप पर भी।
रामचन्द्रन साहब ने सौ रुपये की नौकरी, लंगर, रोटी का फौरन आर्डर दिया। साथ में यह भी कहा कि यदि मैं चाहूँ तो सारे civilians के साथ unit में भी रह सकता है। यूनिट में हिन्दी का मास्टर सतपाल, चार धोबी, चार-पाँच लोग वहाँ काम करने वाले रहते थे। मैने साहब को कहा- साहब मैं यूनिट में ही रहूँगा। साहब ने झट ही क्वार्टर मास्टर को बुला कर बिस्तर दिला दिया और कहा- कोई तकलीफ हो तो सीधा आ कर बताओ, मैं रुआंसा हो गया।
हरिचन्द एजूकेशन मास्टर कांगड़े का रहने वाला था। वह साहित्य प्रेमी था। उन दिनों वह चरित्रहीन पढ़ रहा था। मुझे पढ़ने के लिए पहला उपन्यास उस ने चरित्रहीन ही दिया। मेरे लिए एक आसमान खुला। मैने चाची को सुनाया कि नोकरी के लिए मुझे बाहर रहना पड़ेगा। उस ने रोते हुए हामी भरी। उधर यूनिट में रहना गुरूकुल का रहना हो गया। सारा शरत साहित्य, मुंशी प्रेमचन्द, नक्श-ए-फरियादी और ज़न्दा नामा(फैज) और कुछ अनुवाद वहीं पढ़े।
............क्रमशः..........कपिल अनिरुद्ध
सागर की कहानी (16)
सफरनामा में अपने जीवन-वृतांत का व्यौरा जारी रखते हुए वे लिखते हैं - सितम्बर माह में, बाढ़ में तवी का पुल टूट गया। मैं काम के लिए अफरा-तफरी कर रहा था। पुल पार करते ही ware house के स्थान पर M.P Head Quarter (47 lofc provost unit CMP) थी। मैं उस के गेट के पास खड़ा था। एक घनघोर घटा आई और मुझ पर बरस गई। यूनिट में से जीप निकली, जीप में मेरे भाग्य थे। जीप में एक मशहूर पेंटर करतार अबरोल जंज़ीरों में झकड़ा हुआ था। साथ में अफसर तथा दो एनoसीoओ। जीप मेरे पास से निकली तो करतार ने आबाज़ लगाई - ओए ओम, यहाँ क्या कर रहा है, इधर आ।
-जीप के ड्राइवर (कैप्टन रामचन्द्रन) ने जीप एकदम रोक दी और मुझ से पूछा-तुम पेंटर मास्टर को जानते हो।
मैने कहा- हाँ सर जानता हूँ। यह बहुत मशहूर आर्टिस्ट है। यह मार्किट में जहां भी काम करते हैं हम सब रुक कर देखने लगते हैं।
- यह पागल हो गया है। इस को mental hospital में भर्ती करबाने ले जा रहे हैं। इस ने दो जबानों को पीट डाला है।
रामचन्द्रन साहब फिर लहजा बदल कर बोले। - तुम भी पेंटर हो।
-हाँ साहब! मैं भी काम जानता हूँ। मैं ड्राईंग बहुत अच्छी जानता हूँ।
रामचन्द्रन ने एक J.C.O को बुलाया और कहा- यह पेंटर है। इस को डैस्क एनoसीoओ के पास बिठाओ। हम आ कर इस का काम देखेंगे। डूबते को तिनके का सहारा। घर में ताई पिता जी पर ज़ोर भर रही थी कि इस को मैकेनिक के पास रखबा दो बर्ना यह भूखा मर जाएगा। यह निक्कमा अपने आप पर भी भार है और आप पर भी।
रामचन्द्रन साहब ने सौ रुपये की नौकरी, लंगर, रोटी का फौरन आर्डर दिया। साथ में यह भी कहा कि यदि मैं चाहूँ तो सारे civilians के साथ unit में भी रह सकता है। यूनिट में हिन्दी का मास्टर सतपाल, चार धोबी, चार-पाँच लोग वहाँ काम करने वाले रहते थे। मैने साहब को कहा- साहब मैं यूनिट में ही रहूँगा। साहब ने झट ही क्वार्टर मास्टर को बुला कर बिस्तर दिला दिया और कहा- कोई तकलीफ हो तो सीधा आ कर बताओ, मैं रुआंसा हो गया।
हरिचन्द एजूकेशन मास्टर कांगड़े का रहने वाला था। वह साहित्य प्रेमी था। उन दिनों वह चरित्रहीन पढ़ रहा था। मुझे पढ़ने के लिए पहला उपन्यास उस ने चरित्रहीन ही दिया। मेरे लिए एक आसमान खुला। मैने चाची को सुनाया कि नोकरी के लिए मुझे बाहर रहना पड़ेगा। उस ने रोते हुए हामी भरी। उधर यूनिट में रहना गुरूकुल का रहना हो गया। सारा शरत साहित्य, मुंशी प्रेमचन्द, नक्श-ए-फरियादी और ज़न्दा नामा(फैज) और कुछ अनुवाद वहीं पढ़े।
............क्रमशः..........कपिल अनिरुद्ध