बंधुओं गुरुदेव सारथी जी की जीवनी को इस आशय से भी यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ ताकि आप अपने अमूल्य सुझाबों एवं संशोधनों द्वारा जीवनी को जीवंत रूप देने में सहयोगी हो सकें।
सागर की कहानी (भाग -4)
अश्रू संवेदनशीलता के ही तो परिचायक हैं। जब हमारा सम्पूर्ण अस्तित्व संवेदना से भरा होता है तभी अश्रुधारा बहती है और जब सम्पूर्ण अस्तित्व ही जलमय हो जाता है तो संवेदना सौन्दर्य में रुपांतरित होती है। जल का भण्ड़ार सागर संवेदनाओं के समूह का ही तो नाम है और इन्हीं संवेदनाओं में से उमंगों की तरंगे पैदा होती हैं तथा इन्हीं संवेदनाओं से उठने वाली जलतरंगे आनन्द की परिचायक हैं। श्री सारथी जी की संवेदनाओं के दायरे से बाहर कोई भी नहीं होता। उन के संवेदनाओं के घेरे में मानव समूह के साथ-साथ पशु और पक्षियों को भी स्थान प्राप्त होता। उन के प्रेम का पात्र बनने का सौभाग्य गंगू (श्री सारथी जी के तोते का नाम) को भी प्राप्त हुआ। उन की दिनचर्या में गंगू का विशेष महत्व रहता। गंगू का पिंजरा साफ करना, उसे खाने हेतु सोगी, काजू, छुआरा, अमरुद, बेर इत्यादि देना और फिर अपने दिव्य स्पर्श द्वारा उसे आनिन्दत करना। गंगू को कब क्या देना है इस का उन्हें सदैव ध्यान रहता। सप्ताह में एक दिन गंगू कि लिए उन के द्वारा तैयार किया गया मिश्री, सौंफ और अजबायन का मिश्रण रहता। वे बताया करते यह मिश्रण इसे अपचन से बचायेगा। खाने के लिए मिर्च देने पर यह बातें तो खूब करेगा परन्तु इस से इस का यकृत (liver) खराब हो जायेगा। गंगू 35 वर्षों (1967 से 2002) तक श्री सारथी जी का प्रेमपात्र बना रहा। वे बताया करते कि गंगू घायल अवस्था में झाड़ियों में फसा तड़प रहा था जब उन की माता श्री उसे अपने साथ ले आईं और फिर गंगू का उपचार आरम्भ हो गया। ठीक होने पर गंगू को उड़ा देने का भरसक प्रयत्न किया गया परन्तु गंगू अपने परिवार को छोड़ने को हरगिज़ तैयार न था। जब भी कोई व्यक्ति श्री सारथी जी से मिलने के लिए आता गंगू अपनी सांकेतिक ध्वनि द्वारा आगन्तुक के आने की सूचना उन्हें दे देता। उस का संकेत बड़ा कमाल का होता। यदि वह हारमोनियम के मंद्र सप्तक पर स्थित हो पुकारता तो इस का अर्थ होता श्री सारथी जी गंगू के समीप बड़े कमरे में विद्यमान है तथा यदि वह हारमोनियम के तार सप्तक पर स्थित हो पुकारता तो संकेत होता सारथी जी गंगू से दूर बरामदे के बाई तरफ स्थित बैठक में मौजूद हैं। उन के सानिध्य में गंगू सदैव अपनी गर्दन घुमा कर तथा एक विशेष ताल में कटोरी हिला कर, एक विशेष ध्वनि पैदा कर अपने हर्षोल्लास का इज़हार करता और श्री सारथी जी अपने लम्बे हाथों की लम्बी उंगलियाँ गंगू की गर्दन पर घुमा कर उस के हर्षोल्लास को आनन्द उत्सव में परिवर्तित कर देते। उन से जो भी मिलने आता वह गंगू को देख तथा फिर उस की आयु के बारे में जान कर विस्मित हुए बिना न रहता। ....................क्रमश: ............................कपिल अनिरुद्ध
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