सारथी कला निकेतन (सकलानि)

Sunday, 13 August 2017

सागर की कहानी (7)

सागर की कहानी (7)
शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में जो जिज्ञासु-पिपासु पदार्पण करता श्री सारथी जी उसे हारमोनियम पर प्रशिक्षण आरम्भ करने को कहते परन्तु वे साधक का हारमोनियम पर आश्रित होना एक अवगुण ही मानते। बैसे जब उनके लम्बे हाथों की लम्बी उंगलियां हारमोनियम पर दौड़तीं तो बाजा भी बोलने लगता, गाने लगता, नृत्य करने लगता। इस संदर्भ में वे मिर्ज़ा ग़ालिब का यह शेअर अक्सर सुनाते
पुर हूँ मैं शिकवे से यूँ राग से जैसे बाजा।
इक ज़रा छेड़िये फिर देखिये क्या होता है।
फिर कहते यही कारण है पेटी बजाने का। एक राग, दो राग, दस राग। एक दर्द, दो दर्द, सैंकडों दर्द। फिर स्वरों के मेल से उभरने वाले तारतम्य का हृदय और स्नायु पर प्रभाव। आप यदि हारमोनियम बजायें तो हर स्वर में स्वयं को बजता हुआ महसूस करेंगे।
वे कहते गायक कईं बार पूरी मदद हारमोनियम ही से लेना चाह सकता है, जो सर्वदा असम्भव है। हारमोनियम पर सधा हुआ गायक स्वतन्त्रता से वादी-सम्वादी की ठीक पहचान कर सके, इस में संदेह है। वह सपाट अथवा दानेदार तान अथवा पलटा इन का प्रदर्शन क्षमता से कर सके, यह भी ठीक से नहीं कहा जा सकता।
वे कहते -तानपुरे का निरन्तर अभ्यास गायक को स्वर लेने, स्वर उठाने, बढ़त करने, सरगम और अंग उठाने के क्षणों के लिए धीरे-धीरे स्वतन्त्र करता जाता है। प्रारम्भ ही से अलंकारों का तानपुरे पर अभ्यास, स्वरों-अलंकारों और ग्राम के स्थानों को अन्तस चेतन में, अन्तःकरण में अंकित करता जाता है। वे कहते- मेरा विश्वास है कि खामोशी में गायन का अभ्यास अति कठिन और उतना ही प्रभावपूर्ण होता है। आदमी वाणी के द्वारा बाहिर ही नहीं गाता बल्कि वाणी भीतर भी गाती है। वास्तव में मानव की सभी ज्ञानेन्द्रियां समयानुसार भीतर और बाहिर देख, सुन, बोल और स्पर्शादि कर सकती हैं। और भीतर की ओर चुपचाप गाने बाला अभ्यासी विद्यार्थी ही नाम कमा सकता है। और यह बात तानपुरे पर अभ्यास ही से सम्भव है, हारमोनियम पर कदापि नहीं। वे कहते यह सत्य वर्णनीय है कि स्व० उस्ताद अमीर खाँ साहिब ने बहुत सारे ख्याल गाये हैं तो मात्र तानपुरे की संगत हुई है। वे अपनी पूरी गायन शक्ति और उस में अभ्यास से पैदा किये चमत्कार, मूर्धना, तान, पलटा, सरगम आदि को स्वतन्त्रता से अभिव्यक्त करने के लिए तानपुरे को उपयुक्त समझते थे। वे संगत में मदद की अपेक्षा नहीं करते थे। ....क्रमशः........(कपिल अनिरुद्ध)

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