सारथी कला निकेतन (सकलानि)

Sunday, 6 August 2017

सागर की कहानी (भाग -3)

सागर की कहानी (भाग -3)
4 अप्रैल 1933 को रामनबमी के पावन दिन मट्टन ( मार्तण्ड़) कश्मीर में पैदा हुए श्री ओ पी शर्मा ‘सारथी’ जी के बारे में किसी पत्रिका में छपा हुआ है कि वे तबले और तानपुरे की गोद में पैदा हुए थे। श्री सारथी जी अक्सर कहा करते-”संगीत की शिक्षा तो मुझे जन्म में जन्मघुटी मिली थी“। वे बताया करते कि जब वे हारमोनियम के पीछे बैठे हुए दिखाई भी नहीं देते थे तभी से उन्होंने हारमोनियम पर संगत करना आरम्भ कर दी थी। अपने पिता पंड़ित मनसा राम (प्रख्यात संगीतकार एवं गायक) जी से उनहोंने संगीत की आरम्भिक शिक्षा प्राप्त की। 10 वर्ष की छोटी सी आयु में वे कई राग एवं रागनियाँ गा बजा लेते थे तथा उन्हें तुलसी, मीरा, सूरदास, कबीर इत्यादि महान भक्तों के कई भजन कण्ठस्थ हो गए थे।
वे बताया करते कि घर का वातावरण इतना सुखद एवं संगीतमय था कि बाहर की कोई भी घटना इन के परिवार की संगीतमयता को नष्ट न कर पाती। उन की माता पूजनीय रामरक्खी जी बहुत ही धार्मिक विचारों की महिला थी जब कि पिता निरन्तर उपनिषदों के शलोक गा कर उन्हें कण्ठस्थ करवाया करते।
अपने सफरनामा में श्री सारथी जी लिखते हैं---- अमीरा कदल पुल पार करने के उपरान्त यदि दस कदम चला जाए तो हरि सिँह हाई सट्रीट दाहिनी ओर है तथा एक छोटे बाज़ार की नुक्कर पर पंड़ित दयाराम दाने वाले की दुकान है और उस के सामने पंड़ित भीमसेन हलबाई की दुकान। इन दोनों दुकानों के बीच एक छोटी सड़क मुहल्ला सराएवाले की ओर जाती है। इस चौगान के एक तरफ श्री हरिराम एवं श्री वलदेव प्रकाश का मकान है दूसरी ओर पंजाबी धर्मशाला है। धर्मशाला के पीछे पंजाबी मुहल्ला पड़ता है, जिस में कृष्ण दास जी, पंड़ित भीमसेन, हांडा फडियेवाला तथा पंड़ित मनसा राम का मकान है। इस समय पंड़ित मनसा राम जी हारमोनियम ले कर बैठे हैं। शायद श्याम कल्याण की कोई बंदिश गा रहे हैं। तबला भीमसेन जी बजा रहे हैं। एक सात आठ वर्श का बालक गाने में पंड़ित जी का साथ दे रहा है। इस बालक का नाम ओमी है। इसे न तो राग की पहचान है और न ही यह बंदिश के बारे में जानता है। पर इस छोटी सी उम्र में भी यह 10-12 रागों की बंदिशॉ को तीन ताल, एक ताल, झपताल और रुपक आदि तालों में गा लेता है। जिस समय वह गाता है तो पंड़ित मनसा राम जी उस के साथ तबला बजाते हैं। यदि वह चूक जाता है तो उसे घड़ी के सामने बैठ कर घंटे भर के लिए उस ताल का रियाज़ ताली दे-दे कर करना पड़ता है। पंड़ित जी की इच्छा है कि ओमी बहुत बड़ा संगीतकार बने। वह ओमी को दो बातें समझाते हैं -बेटा बेसुरा तो चल जाता है पर बेताले की बहुत दुर्गति होती है। दूसरी बात यह कि जो व्यक्ति तबला जानता है वह बहुत बड़ा गायक बन सकता है।
श्री सारथी जी के कथनानुसार - ताल गायन और जीवन दोनों का मूल है। ताल को भली प्रकार जान लेना समय को और उस की समस्त शक्तियों को जान लेना है। वे जब भी लय ताल और संगीत की बात करते तो यही समझाते कि मानव शरीर और पृथ्वी दोनों लयवद्ध हैं। जो लोग संगीत में, चित्रकला में तथा काव्याधि में बीमार हैं वे वास्तव में लय-ताल में बीमार हैं तथा उन का सुधार लय-ताल ही से हो सकता है। वे कहा करते सात रंगों की भान्ति सात ही अलंकार हैं। सातों का अपना-अपना स्वभाव एवं महत्व है।
क्रमशः(Kapil Anirudh)

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