साथियो, प्रस्तुतु हैं गुरुदेव सारथी जी की जीवनी के कुछ अंश, सुझावों का स्वागत है......................
सागर की कहानी (भाग -6)
जिस प्रकार सागर को जानने हेतु सागर की सम्पूर्ण विकास यात्रा के इतिहास को जानना पड़ेगा उसी प्रकार श्री सारथी जी को जानने के लिए उन की जीवन यात्रा में प्रवेश आवश्यक है। जीवन यात्रा ही एक पथिक के सारथी बनने का पूरा परिचय दे सकती है। सफरनामा में अपनी जीवन यात्रा का परिचय देते हुए सारथी जी लिखते हैं ....... ‘ओमी उठ के चला गया है क्योंकि दो-चार संगीत के रसिया ओर आ गए हैं। डॉ जसबंत सिंह, मोती लाला किलम, जिया लाल बसंत, गाश लाल और आशिक अली खाँ साहब। आशिक अली खाँ साहब दरबारी गायक हैं पर सदैव महफिलों से घिरे रहते हैं। महफिल उन्हें अफीम की तरह लगी है। वो आते ही पिता जी को म्हाशा करम चन्द जी के लिए पूछते हैं। म्हाशा जी बायलन वादक हैं। संगत कमाल की करते हैं। पिता श्री तो कहते हैं करमचन्द राग में डूब जाता है। महफिल के लिए तीन स्थान निश्चित हैं, घाट पर हनुमान जी का मन्दिर, बटमालू का राधा-कृष्ण मन्दिर और महाराजा बाज़ार के मास्टर हरि विलास हारमोनियम मेकर की वर्कशाप।पंड़ित मनसा राम जी इंकम टैक्स में क्लर्क हैं। वह दरबार मूब के साथ रहते हैं। जम्मू में वे मंड़ी वाले तालाव पर खड़ी दीवान अस्टेट में रहते हैं। ओमी श्रीनगर न्यूआरा हाई स्कूल में तथा जम्मू सनातन धर्म सभा हाई स्कूल में पड़ता है। जम्मू और श्रीनगर में मौसम ओमी को बड़ा कर रहे हैं। श्रीनगर प्रताप भवन में आयोजित रामलीला में ओमी गाता है और जम्मू वह रोज़ गाता है। रोज़ इसलिए क्योंकि जम्मू में सप्ताह के सातों दिन भजन कीर्तन के दिन हैं। रविवार रामचन्द्र शाह के घर कीर्तन होता है, सोमबार लाला ईश्वर दास के घर, वीरवार बोधराज भाटिया के घर। शुक्रवार परसराम नागर के घर और शनीवार रानी तालाब वाले राधाकृष्ण के मंदिर। रोज़ रियाज़ और रोज़ गाना। रविवार को दुर्गा संगीत अकादमी की साप्ताहिक गोष्ठी होती है। वहाँ सभी संगीतकार हाज़िरी देते हैं। अब ओमी हारमोनियम बढ़िया बजाने लगा है।....मेरा बचपन कहाँ खो गया कुछ पता ही नहीं। मैं पैदा होने के कुछ ही वर्ष बाद बूढ़ा हो गया। ’
घड़ी साज में वे लिखते हैं- ‘मैंने प्रारम्भ में अपने पिता जिया लाल बसन्त, फिर पिता के मित्र आशिक अली खाँ साहब से संगीत सीखा। उन दिनों महफिल में पंड़ित सरूप नाथ, जगन्नाथ सोपुरी, मास्टर हरी विलास और एक फकीर सांई मस्त यह विद्वान गायन को जीवित रखे हुए थे। फिर मैंने मास्टर कृष्णराव, पंड़ित उमादत्त, पंड़ित जानकी नाथ रावल और मास्टर कन्ठुराम जी का गायन भी सुना। उन दिनों श्री ऋषिकेश उपाध्याय, खानम जी और कुलभूशण जी भी इन संगीतकारों से शिक्षा प्राप्त करते थे। पंड़ित जगदीश राज और डा जगदीश शर्मा, और प्रेम जी का नाम अब भी लिया जा सकता है। संगीत प्रेमियों में हकीम परसराम नागर, पंड़ित बाँके बिहारी, रामचन्द शाह और लाला ईश्वर दास जी को स्मरण किया जा सकता है।
वादकों में तबले के उस्ताद पंडित जगदीश, मास्टर त्रिलोकीनाथ (निक्का) ने परम्परा स्थापित की और अब भी तबले की परम्परा को मास्टर लक्षमण दास, श्री करतार सिंह, श्री ओम प्रकाश ( थोड़ू) और मेरे मित्र श्री ब्रह्म स्वरूप सच्चर ने कायम रखा है। एक तबला परम्परा पंड़ित उमादत्त जी की है। जिस में प्रसिद्ध संतूरवादक शिवकुमार और कृष्ण लाल वर्मा जी भी है , लक्ष्मीकान्त जोशी भी इसी घराने से थे। हमारे शहर के आदरणीय श्री सुरेन्द्र वाली जी संगीत के भारी प्रसंशक थे। घर में महफिलें जुटाते थे। उनके सुपुत्र श्री बलदेव बाली पंड़ित भीमसेन जोशी के घराने से सम्बन्धित हैं। और पंड़ित वाचस्पति शर्मा सुविख्यात सितारवादक पंड़ित रविशंकर के घराने के कलाकार हैं। इस समय श्री राजनारायण, राज रैना, श्री केाहली ( नृत्य), पंड़ित मालवीय तबला और कुछेक कलाकार संगीत के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत्त हैं।.............................क्रमशः ........................................................कपिल अनिरुद्ध
घड़ी साज में वे लिखते हैं- ‘मैंने प्रारम्भ में अपने पिता जिया लाल बसन्त, फिर पिता के मित्र आशिक अली खाँ साहब से संगीत सीखा। उन दिनों महफिल में पंड़ित सरूप नाथ, जगन्नाथ सोपुरी, मास्टर हरी विलास और एक फकीर सांई मस्त यह विद्वान गायन को जीवित रखे हुए थे। फिर मैंने मास्टर कृष्णराव, पंड़ित उमादत्त, पंड़ित जानकी नाथ रावल और मास्टर कन्ठुराम जी का गायन भी सुना। उन दिनों श्री ऋषिकेश उपाध्याय, खानम जी और कुलभूशण जी भी इन संगीतकारों से शिक्षा प्राप्त करते थे। पंड़ित जगदीश राज और डा जगदीश शर्मा, और प्रेम जी का नाम अब भी लिया जा सकता है। संगीत प्रेमियों में हकीम परसराम नागर, पंड़ित बाँके बिहारी, रामचन्द शाह और लाला ईश्वर दास जी को स्मरण किया जा सकता है।
वादकों में तबले के उस्ताद पंडित जगदीश, मास्टर त्रिलोकीनाथ (निक्का) ने परम्परा स्थापित की और अब भी तबले की परम्परा को मास्टर लक्षमण दास, श्री करतार सिंह, श्री ओम प्रकाश ( थोड़ू) और मेरे मित्र श्री ब्रह्म स्वरूप सच्चर ने कायम रखा है। एक तबला परम्परा पंड़ित उमादत्त जी की है। जिस में प्रसिद्ध संतूरवादक शिवकुमार और कृष्ण लाल वर्मा जी भी है , लक्ष्मीकान्त जोशी भी इसी घराने से थे। हमारे शहर के आदरणीय श्री सुरेन्द्र वाली जी संगीत के भारी प्रसंशक थे। घर में महफिलें जुटाते थे। उनके सुपुत्र श्री बलदेव बाली पंड़ित भीमसेन जोशी के घराने से सम्बन्धित हैं। और पंड़ित वाचस्पति शर्मा सुविख्यात सितारवादक पंड़ित रविशंकर के घराने के कलाकार हैं। इस समय श्री राजनारायण, राज रैना, श्री केाहली ( नृत्य), पंड़ित मालवीय तबला और कुछेक कलाकार संगीत के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत्त हैं।.............................क्रमशः ........................................................कपिल अनिरुद्ध
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